मिस्र में 683 लोगों को फांसी की सजा
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मिस्र में 683 लोगों को फांसी की सजा

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May 3, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 May 2014 15:29:58

28 अप्रैल को मिस्र में अल मिनया की एक अदालत ने 683 लोगों को मौत की सजा सुनाई है। मार्च महीने में भी इसी अदालत ने 529 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी। विश्व में शायद यह पहली अदालत है,जिसने एक साथ इतने लोगों को मौत की सजा सुनाई है। जिन लोगों को यह कठोर सजा हुई है वे लोग मुस्लिम ब्रदरहुड के लड़ाके और समर्थक हैं। सजा पाने वालों में मुस्लिम ब्रदरहुड के नीति निर्धारक कहे जाने वाले मोहम्मद बादी भी शामिल हैं। बादी और उसके 682 समर्थकों को गत वर्ष मिनया में हुई हिंसा का दोषी पाया गया है। बादी का कहना है कि सैन्य सरकार इतने लोगों को मौत की सजा दिलाकर अपने ताबूत में अन्तिम कील ठोक रही है। उल्लेखनीय है कि 2013 में मिस्र की सेना ने मुस्लिम ब्रदरहुड समर्थक राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को अपदस्थ कर सत्ता की चाबी अपने हाथ में ले ली थी। इसके बाद पूरे देश में हिंसा भड़क गई थी। वह हिंसा कई दिनों तक चली थी और उसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी। अब सैन्य सरकार उस हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों पर मुकदमा चला रही है। आरोपियों में कुछ लोग पकड़े गए हैं,कुछ फरार चल रहे हैं,कुछ को जमानत मिली हुई है,तो कुछ की मौत हो गई है। इतने लोगों को मौत की सजा देने के निर्णय का अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी निन्दा हो रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार आयुक्त नवी पिल्लई ने कहा है कि यह अन्तरराष्ट्रीय कानूनों का सरासर उल्लंघन है। इन मुकदमों की सुनवाई के दौरान गलत प्रक्रिया अपनाई गई और अनेक आरोपियों को वकील भी रखने का मौका नहीं दिया गया। जबकि अमरीका ने इस फैसले को अनुचित कहा है। उल्लेखनीय है कि मुस्लिम ब्रदरहुड एक कट्टरवादी गुट के रूप में कुख्यात है। यह पिछले कई वर्षों से मिस्र की सरकार के विरुद्ध आन्दोलन चला रहा है। इसी आन्दोलन के कारण तीन साल पहले हुस्नी मुबारक को गद्दी छोड़नी पड़ी थी। ल्ल
गूगल पर अमरीकी गुप्तचर संस्था सीआईए की नजर
यूक्रेन को लेकर अमरीका और रूस के बीच जारी वाक्युद्ध रोज एक नया मोड़ ले रहा है। अमरीका बार-बार रूस को चेता रहा है कि वह यूक्रेन के मामलों में हस्तक्षेप न करे,लेकिन रूस अमरीका की एक नहीं सुन रहा है। रूसी समर्थक सैनिक पूर्वी यूक्रेन के अनेक शहरों पर कब्जा कर चुके हैं और वे निरन्तर आगे बढ़ रहे हैं। खिसियाए अमरीका ने रूस की अनेक कम्पनियों और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के नजदीकी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। उधर व्लादिमीर पुतिन ने इंटरनेट को अमरीकी गुप्तचर संस्था सीआईए का एक महत्वपूर्ण ह्यहथियारह्ण बताते हुए रूस के लोगों को गूगल के प्रति सचेत किया है। पिछले दिनों व्लादिमीर पुतिन ने सेंट पीटर्सबर्ग में मीडिया से जुड़े एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि ह्यवर्ल्ड वाइड वेबह्ण को सीआईए ने विकसित किया था और अब भी इस पर अमरीका का नियंत्रण है। उन्होंने यह भी कहा कि अमरीका के पूर्व गुप्तचर अधिकारी एडवर्ड स्नोडेन ने अमरीका द्वारा इंटरनेट की जासूसी का जो भंडाफोड़ किया है उससे पता चलता है कि अमरीका इंटरनेट के जरिए दूसरे देशों पर निगरानी रखता है। पुतिन ने यह भी संकेत दिया कि रूस इंटरनेट पर अमरीका के एकाधिकार खत्म करने की कोशिश कर रहा है। माना जा रहा है कि इसी कोशिश के तहत रूसी संसद ने एक ऐसा कानून बनाया है जिसके अनुसार सोशल मीडिया वेबसाइट्स को न केवल अपने ह्यसर्वरह्ण रूस में लगाने होंगे, बल्कि उपभोक्ताओं से जुड़ी जानकारियां कम से कम छह महीने तक सार्वजनिक नहीं की जा सकती हैं। इसी कानून के आधार पर रूस की सरकार जब चाहे किसी भी वेबसाइट को काली सूची में डाल सकती है। इसके लिए उसे न्यायालय से भी अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। पुतिन का यह भी कहना है कि गूगल पर जो कुछ भी जानकारियां उपलब्ध की जाती हैं पहले वह उन सर्वर से होकर गुजरती हैं, जो अमरीका में हैं। पुतिन ने यह भी कहा कि आने वाले समय में रूस में सबसे अधिक लोकप्रिय खोज पटल (सर्च इंजन)ह्ययांदेक्सह्ण पर भी अंकुश लगाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि यांदेक्स के 60 प्रतिशत उपभोक्ता रूस के हैं, पर इसमें विदेशी निवेशकों की पंूजी लगी है।
रूस का मानना है कि ये विदेशी निवेशक
इस खोज पटल के जरिए रूस की निगरानी कर रहे हैं।
उधर चीन भी अपने यहां इंटरनेट की आजादी पर लगाम कसने की तैयारी कर रहा है। कहा जा रहा है कि चीन सरकार इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री पर पकड़ मजबूत करना चाहती है। चीन सरकार की मंशा है कि
कब और कितनी देर चीनी नागरिक इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं,यह सरकार
तय करेगी।
भगत सिंह पर जारी है कानूनी लड़ाई
आज भारत का बच्चा-बच्चा क्रांतिकारी भगत सिंह को ह्यशहीद भगत सिंहह्ण के नाम से जानता है। अंग्रेजों ने उन्हें मात्र 23 वर्ष की उम्र में 23 मार्च,1931 को लाहौर में फांसी पर लटका दिया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने 1928 में लाहौर के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जॉन पी. सांडर्स की गोली मारकर हत्या की थी। किन्तु आपको यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा कि उन पर चल रहे इस मुकदमे का निपटारा अभी तक नहीं हुआ है। कहा जाता है कि इस मामले की सुनवाई कर रहे प्राधिकरण ने न तो गवाहों की बात सुनी थी और न ही भगत सिंह के वकीलों को जिरह करने का मौका दिया था। यानी भगत सिंह के साथ न्याय नहीं हुआ है। अब भगत सिंह को न्याय दिलाने का मामला जोर पकड़ने लगा है। इस मामले को लाहौर में भगत सिंह मेमोरियल के अध्यक्ष इम्तियाज राशिद कुरैशी ने उठाया है। कुरैशी ने लाहौर उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर मांग की है कि वह भगत सिंह के मामले को फिर से खोलने का आदेश दे। इस मुकदमे को आगे बढ़ाने के लिए कुरैशी ने लाहौर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय में याचिका दायर कर निवेदन किया था कि अदालत लाहौर पुलिस को आदेश दे कि वह याचिकाकर्ता को भगत सिंह के विरुद्ध 1928 में दर्ज प्रथम सूचना रपट(एफआईआर) की प्रति उपलब्ध कराए। याचिका की सुनवाई करने के बाद न्यायालय ने 11 अप्रैल को पुलिस को आदेश दिया था कि वह कुरैशी को उस एफआईआर की एक प्रति दे। लेकिन पुलिस ने कुरैशी को प्रति नहीं दी।अदालत ने लाहौर पुलिस के अधीक्षक चौधरी शफीक को न्यायालय के आदेश का पालन करवाने के लिए नोटिस
भेजा है। प्रस्तुति : अरुण कुमार सिंह

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