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ऐसे दर्जनों घोटाले हैं जिनमें लगभग हर अपराधी बच निकला। कुछ खुशकिस्मत लोग तो फैसला आने के पहले ही भगवान के घर चले गए और उनके खिलाफ केस फाइल कर दिये गए।
राजेन्द्र कुमार मिश्र
जैसे ही यह स्पष्ट होने लगता है कि किसी तानाशाह या ऊंचे आसन पर विराजमान कठपुतली राजनीतिज्ञ के दिन लद गए हैं और अब वह किसी का बुरा-भला कुछ नहीं कर सकता तब उसके चापलूस दरबारी ही नहीं बल्कि उसके अधीन काम कर रहे ईमानदार अधिकारी भी चाहने लगते हैं कि उसके शासन की असलियत का उद्घाटन किया जाना चाहिए। और इनमें से कुछ ऐसा करते भी हैं।
मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू ने ह्यएक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टरह्ण लिखकर तहलका मचा दिया है। कुछ लोगों ने उन्हें विश्वासघाती और असत्यवादी घोषित किया है तो कुछ ने कहा कि उन्होंने मूलभूत सत्य को रिकार्ड कर देश का भला किया है, मेरी राय में संजय बारू के संस्मरण कितने सच हैं और कितने काल्पनिक, यह प्रश्न अप्रासंगिक है। यही बात सेवामुक्त केन्द्रीय कोयला सचिव श्री पी.सी.पारेख के संस्मरण के बारे में कही जा सकती है।
केवल प्रधानमंत्री की ही नहीं बल्कि उनके मंत्रिमंडल की नपुंसकता तो उसी दिन साबित हो गई थी जिस दिन उनके द्वारा राष्ट्रपति को अनुमोदन के लिए भेजे गए मंत्रिमंडल के एक प्रस्ताव को राहुल गांधी ने पढ़कर रद्दी की टोकरी में फेंक देने की सार्वजनिक रूप से सिफारिश की थी। उनकी इस राय के तत्काल बाद प्रस्ताव वापस ले लिया गया और राहुल अनौपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद के दावेदार मान लिए गए। इतने ऊंचे पद के लिए उत्तराधिकारी के नाम की आधिकारिक या परोक्ष घोषणा जितने अशोभनीय ढंग से हुई वह आधुनिक इतिहास में बेमिसाल है।
सेवामुक्त अधिकारी अपने भूतपूर्व राजनीतिक आकाओं की निंदा में जो संस्मरण लिखते हैं उनका उद्देश्य कुछ अपवादों को छोड़ कर, राजनीतिज्ञों तथा राजनीतिक माहौल के प्रति उनकी वितृष्णा होती है जो वे अपने सेवाकाल में खुलकर व्यक्त नहीं कर सकते। उनकी राय और आम जनता की राय में विशेष फर्क नहीं होता। अपना संविधान और उसके अंतर्गत कायदा और कानून इतना शिथिल, जटिल और निर्बंध है कि बड़े से बड़ा अपराधी भी जनता पर शासन कर सकता है। उदाहरण के लिए जब लालू प्रसाद यादव पशुपालन घोटाले के अपराध में, जिसे बोफर्स से बड़ा घोटाला माना जाता है, जेल में थे तब भी वे बिहार के राजा थे, उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवा दिया था और जेल से उन्हें सूचित करते रहते थे कि क्या शासकीय निर्णय लिए जाएं, फाइल पर क्या नोटिंग की जाए, जेल से छूटने और बिना अपराध मुक्त हुए कई साल बाद वे केन्द्र की मनमोहन सरकार में केबिनेट मंत्री बन गए। अपने इस मंत्रित्वकाल के दौरान उन्होंने गोधरा कांड की जांच के लिए एक न्यायिक कमीशन नियुक्त करवाने में अहम भूमिका निभाई थी। इस कमीशन ने निर्णय दिया था कि गोधरा में रेल के डिब्बे में आग लगाने वाले आरोपी निर्दोष थे और उन्हें साम्प्रदायिक शक्तियों द्वारा मुजरिम करार दिया गया था। अंतत: इस जांच कमीशन की रपट रद्द कर दी गई और इसके जज की बदनामी हुई किंतु लालू दूध के धुले सेकुलरिज्म के झंडाबरदार बने रहे। कुछ समय पहले गुजरात उच्च न्यायालय ने गोधरा के अभियुक्तों में से ग्यारह लोगों को फांसी की सजा और कई को आजन्म कारावास की सजा सुनाई। अभी कुछ दिन पहले लालू ने फिर जेल की हवा खाई और नीतीश कुमार की निंदा करते हुए उन्हें सिद्धांतहीन कांग्रेस पार्टी का तोता घोषित किया। कुछ समय बाद ही उन्होंने कांग्रेस से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन कर लिया। उनकी पत्नी ने हाल ही में पत्रकारों से कहा कि वे अपने पति को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान देखना चाहती हैं। इन घटनाओं के कई साल पहले एक और घटना हुई जो दिलचस्प है-पी.वी.नरसिंह राव की सरकार संसद में अविश्वास प्रस्ताव से निपटने की तैयारी कर रही थी। उसे हार से बचाने के लिए सत्तारूढ़ दल के महामंत्री वी.सी.शुक्ला, आर.के.धवन, कैप्टन सतीश शर्मा, अजीत सिंह, भजनलाल, ललित सूरी वगैरह ने कुछ संसद सदस्यों को खरीदने की योजना बनाई, जैसे लोग गाय, बैल, भैंस का सौदा करते हैं। कई करोड़ खर्च करके उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के चार संसद सदस्यों को क्रय कर लिया। इस जुर्म की शिकायत की गई लेकिन मामला सालों लटका रहा। क्योंकि अपने संविधान के अंतर्गत पार्लियामेंट के पवित्र स्थल पर कुछ भी बुरा भला करने के लिए संसद सदस्यों को सजा नहीं हो सकती। एक और केस में सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने अपनी एक किताब में लिखा है कि अल्पकालीन प्रधानमंत्री और दूध के धुले बुद्धिजीवी आई.के.गुजराल ने उनसे इस बात पर अप्रसन्नता जाहिर की थी कि वे स्विस बैंक घोटाले में जांच अनावश्यक तेजी से कर रहे हैं। धीमी गति उपयुक्त होगी, उन्होंने कहा था। ऐसे दर्जनों घोटाले हैं जिनमें लगभग हर अपराधी बच निकला। कुछ खुशकिस्मत लोग तो फैसला आने के पहले ही भगवान के घर चले गए और उनके खिलाफ केस फाइल कर दिये गए। ल्ल
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं)
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