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.अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
अधेर नगरी के चौपट राजा ने दीवार के नीचे बकरी के दबकर मर जाने के लिए जिसे जिम्मेदार ठहराकर फांसी की सजा सुनायी थी वह भाग्यशाली निकला। फांसी का फंदा मोटा था और उसकी गर्दन पतली। अत: तय हुआ कि सजा का हकदार वह होगा जिसकी गर्दन फांसी के फंदे में फिट बैठेगी। तभी एक चतुर साधु ने बताया कि उस शुभ घड़ी में फांसी पर चढ़ने वाला स्वर्ग जाएगा और राजा स्वयं फांसी पर लटक गए। चौपट राजा के वंशजों का राज अभी भी चल रहा है। पर वे अब इतने मूर्ख नहीं हैं। वर्तमान व्यवस्था ये है कि फांसी पर चढ़ाने के लिए हमेशा कई उम्मीदवार तैयार
रखे जाएं। जब जरूरत पड़े उनमे से किसी को भी लटका दिया जाए। तब तक बलि के बकरों की तरह उन्हें भी खिला-पिला कर खुश
रखा जाए।
बात बलि पर चढ़ाए जाने की थी अत: इस व्यवस्था का श्रीगणेश वहां से किया गया, जहां उम्मीदवार बलिदान के लिए पहले ही मानसिक रूप से तैयार होकर आते थे। इसके चलते कुछ बलि के बकरों को थल सेना, वायु सेना और नौसेना प्रमुख के पद दे दिए गए। समयानुसार उनका उपयोग होने लगा। पर थलसेना वाला थोड़ा जिद्दी निकला। एक बार शोर मचा-मचाकर मिमियाने लगा कि सेना को नए और आधुनिक उपकरणों की सख्त जरूरत है और देश के आयुध भण्डार खाली पड़े हैं। बस विश्वासपात्रों के जरिये अफवाह उड़वाई गयी कि वह सशस्त्र क्रान्ति का षड्यंत्र रच रहा था और उसे तुरंत फांसी के तख्ते की तरफ कूच करने को कह दिया गया। राजा ने एक
और पाठ सीखा कि बकरों के स्वभाव में जिद्दीपन की जांच कर लेने के बाद ही उन्हें यह पद सौंपना चाहिए वरना वे राजा के स्थान पर शायद स्वयं बलि पर चढ़ने से ना-नुकुर करने लगें।
इस पाठ को राजवंश की उस पीढ़ी तक ने याद रखा, जिसे नागरिकों के बदलते मिजाज के परिणामस्वरूप संन्यास लेने की आवश्यकता स्पष्ट हो गयी थी। न जाने किस उम्मीद में उसने संन्यास लेकर जाते-जाते भी अपनी पसंद के बकरे को ही इन फौजी बकरों के प्रमुख पद पर आसीन किये जाने की मंशा जाहिर की, शायद सिर्फ इसलिए कि चौपट राज रहे न हे,चौपटपन की निशानियां विरासत में बनी रहें।
कुछ अन्य बलि के बकरे, जो वायुसेना प्रमुख बनाये गए, दशकों से गिड़गिड़ाते आये थे कि राज्य के लड़ाकू हवाई जहाज अब ह्यउड़ने वाले ताबूतह्ण कहलाने लगे थे। देशसेवा के लिए आने वाले युवाओं को इन ह्यउड़ने वाले ताबूतोंह्ण में उड़ान भरने का आदेश देने में उन्हें अपराध बोध होता था। पर मजबूरी थी। चौपट राजा के कुछ स्वामिभक्त कारिंदों को सेनाओं के उपकरणों को स्वर्ण भंडारों में बदल देने वाले जादूगरों से साठगांठ रखने के आरोप में जबसे पकड़ा गया था बाकियों ने कोई निर्णय लेना ही बंद कर दिया था। ईमानदारी के लिए एक नया शब्द ह्यनिकम्मापनह्ण प्रयोग में आ गया था। नए अस्त्र-शस्त्र आते कहां से? स्वयं चौपट राजा को चिंता करने का न तो समय था और न इच्छा। तंग आकर उसकी सेनाओं के प्रमुख चुपचाप अपना-अपना कार्यकाल समाप्त करके संन्यास आश्रम में चले जाते थे। पर एक वायुसेना प्रमुख थोड़ा लालची निकला। अपनी हैसियत भूलकर उस नांद में मुंह मार बैठा, जिसमें चौपटराज के पालतू सांड दावत उड़ाते थे। दूसरे सांडों का तो कुछ न बिगड़ा पर उसकी गर्दन बलि पर चढ़ाने के लिए पकड़ ली गयी।
सबसे सीधा निकला नौसेना वाला बकरा। चौपटनगरी की बाबा आदम के जमाने की पनडुब्बियों और जहाजों के पेंदे गल गए थे। उनमें सुराखों के कारण भयंकर दुर्घटनाएं हो सकती थीं। पर न तो चौपट राजा के पास समय था और न ही उसके वजीर को इन फौजी बकरों को मुंह लगाना पसंद आता था। इधर पनडुब्बियों और युद्घपोतों में समुचित देखरेख और पुजोंर् के नवीनीकरण के अभाव से आयेदिन विस्फोट होने लगे।
बेचारा नौसेना वाला आजिज आकर जब स्वयं ही फांसी के फंदे पर लटक गया तो राजा ने लाइन में खड़े अगले बकरे के ऊपर सारा दोष मढ़कर उसे भी संन्यास लेने के लिए प्रोत्साहित किया और उसके भी बाद लाइन में खड़े अगले बलि के बकरे को मोटा करने के उपक्रम में व्यस्त हो गया। पर सुना गया है अब चौपट नगरी के नागरिक तंग आकर स्वयं राजा को अगला बलि का बकरा बनाने पर आमादा हैं।
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