मुसलमानों पर नजर रखने वाला विभाग बन्द
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.आखिर अमरीका ने उस विभाग को बन्द करने का निर्णय लिया है जिसके जरिए अमरीका के मुसलमानों पर गुपचुप तरीके से नजर रखी जाती थी। वहां के मुसलमान इस विभाग का शुरू से विरोध कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि 11 सितम्बर, 2001 को अमरीका पर पहली बार बड़ा जिहादी हमला हुआ था। इसके बाद 2003 में अमरीकी गुप्तचर संस्था सीआईए की देखरेख में ह्यडेमोग्राफिक यूनिटह्ण के नाम से इस विभाग का गठन किया गया था। इससे जुड़े लोग अमरीकी मुसलमानों की गतिविधियों पर नजर रखते थे। जैसे मुसलमान कहां और क्या काम करते हैं, कहां दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीदते हैं, कहां नमाज पढ़ते हैं इत्यादि। ऐसा इसलिए किया जाता था क्योंकि अमरीकी सुरक्षा एजेंसियों को यह भनक लगी थी कि अमरीका में जिहादी तत्वों को स्थानीय मुसलमान शह दे रहे हैं। अमरीकी मुसलमान इस विभाग के खिलाफ बराबर सड़कों पर उतरते थे। कुछ अमरीकी सांसदों ने भी इस विभाग को बन्द करने का सुझाव दिया था।
नाइजीरिया के उत्तरी भाग को इस्लामी देश बनाने के लिए जिहादी गुट बोको हराम बेलगाम होता जा रहा है। बोको हराम से जुड़े जिहादियों ने इस वर्ष अब तक 1500 से अधिक निर्दोष लोगों को मार दिया है। आतंकवादियों ने 14 अप्रैल को नाइजीरिया की राजधानी अबुजा में एक बम विस्फोट कर 75 लोगों की जान ले ली। इसके दूसरे ही दिन आतंकवादियों ने बोरनो शहर के एक स्कूल से लगभग 200 लड़कियों का अपहरण कर लिया। कहा जा रहा है कि रात के समय हथियारों से लैस आतंकवादियों ने स्कूल के छात्रावास को चारों ओर से घेर लिया और वहां रह रही लड़कियों को खाली ट्रकों में बैठाकर चलते बने। नाइजीरियाई मीडिया के अनुसार आतंकवादियों ने छात्रावास की सुरक्षा में तैनात दो सुरक्षाकर्मियों की हत्या की और छात्रावास के कुछ हिस्सों में आग भी लगा दी। जैसे ही यह खबर फैली, पूरे नाइजीरिया में हाहाकार मच गया। उल्लेखनीय है कि बोको हराम काफी समय से पूर्वी नाइजीरिया में सामान्य शिक्षा की जगह इस्लामी शिक्षा की मांग कर रहा है। अपनी मांग मनवाने के लिए बोको हराम के लड़ाके इससे पहले भी कई विद्यालयों को निशाना बना चुके हैं। पता हो कि नाइजीरिया में ईसाई और मुसलमान करीब-करीब बराबर हैं। नाइजीरिया के उत्तरी भाग में मुसलमानों की आबादी ईसाइयों से थोड़ी अधिक है। यह देखने में आता है कि दुनिया के जिस भी भाग में मुसलमानों की आबादी अधिक हो जाती है वहीं अलग इस्लामी राज्य, इस्लामी शिक्षा आदि की मांग शुरू हो जाती है। यही नाइजीरिया के उत्तरी भाग में भी हो रहा है।
यूक्रेन में बहने लगा अपनों का ही खून
रूस की सीमा से सटे यूक्रेन में इन दिनों गृह युद्ध चल रहा है। यूक्रेन की सेना अपने ही लोगों पर गोलियां बरसा रही है। इन ह्यअपनोंह्ण पर आरोप है कि ये लोग रूसी समर्थक हैं और यूक्रेन के खिलाफ रूस के साथ मिलकर लड़ाई लड़ रहे हैं। यूक्रेन की वर्तमान स्थिति को टालने के लिए अमरीका और रूस के बीच कई दौर की बात हुई, पर बात बनी नहीं। इसके बाद यूक्रेन ने अपने यहां मौजूद रूसी समर्थकों और सैनिकों पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों यूक्रेन के अन्तरिम राष्ट्रपति एलेक्जेंडर तुर्चिनोव ने संसद को जानकारी दी है कि दोनेत्स्क क्षेत्र के उत्तरी भाग में विद्रोहियों के विरुद्ध कार्रवाई शुरू कर दी गई है। उन्होंने यह भी बताया कि इलाके में बहुत ही सावधानीपूर्वक कदम दर कदम कार्रवाई की जा रही है। यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा कि यह कार्रवाई यूक्रेनी लोगों की सुरक्षा और यूक्रेन को बांटने की मंशा को विफल करने के लिए की गई है।
कहा जा रहा है कि कार्रवाई शुरू करने से पहले अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन से बात की और उनसे आग्रह किया कि वे दोनेत्स्क और यूक्रेन के पूर्वी भागों से विद्रोहियों को वापस बुलाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करें। लेकिन पुतिन ने इस आरोप से साफ मना कर दिया कि रूस यूक्रेन संकट में किसी तरह का हस्तक्षेप कर रहा है। रूसी मीडिया के अनुसार यूक्रेन की सेना ने सबसे पहले उस हवाई अड्डे पर हमला किया जिस पर रूसी समर्थक सुरक्षाबलों का कब्जा है। उल्लेखनीय है यूक्रेन में बहने लगा अपनों का ही खून
कि रूसी समर्थक सुरक्षाबलों ने यूक्रेन के पूर्वी भाग में दस नगरों और अनेक सरकारी भवनों पर कब्जा कर लिया है। यह इलाका उद्योग-धंधों के लिहाज से अपना एक अलग स्थान रखता है। उधर यह भी खबर है कि यूक्रेन की इस कार्रवाई के बाद रूस ने अपनी सेना को यूक्रेन की सीमा पर तैनात कर दिया है। आशंका जताई जा रही है कि यदि यूक्रेन की सेना हद पार करेगी तो रूस इस लड़ाई में कूद पड़ेगा। यदि ऐसा होता है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि यूक्रेन के साथ अमरीका और अनेक यूरोपीय देश हैं। इस लड़ाई में रूस के कूदने पर अमरीका और उसके साथी देश भी रूस को रोकने के लिए आगे आ सकते हैं। यूक्रेन का यह संकट इस वर्ष के जनवरी माह से ही बरकरार है। इस संकट को बढ़ाने में अमरीका और यूरोपीय देशों का हाथ माना जाता है। जनवरी माह में इन्हीं देशों के इशारे पर यूक्रेन की राजधानी कीव में जबरदस्त प्रदर्शन हुआ था। परिणामस्वरूप उस समय के रूसी समर्थक यूक्रेन के राष्ट्रपति को पदत्याग कर रूस की शरण लेनी पड़ी थी। प्रस्तुति : अरुण कुमार सिंह
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