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– तरुण विजय-
पिछले दिनों हैदराबाद, गोरखपुर, प्रयाग, वाराणसी और पठानकोट के चुनावी दौरों के बाद अचानक दो दिवसीय सभाओं के लिए अमरीका के दो बड़े नगरों टैम्पा,फ्लोरिडा और वाशिंगटन जाना पड़ा। भाजपा (विदेश) द्वारा दो बड़े कार्यक्रमों का आयोजन था और उसी सिलसिले में भगवान स्वामनारायण के दो विशाल मंदिरों में भी दर्शन लाभ तथा सत्संग हुआ। वाशिंगटन में अमरीका-भारत बिजनेस काउंसिल की शिखर बैठक थी जिसमें मुझे भारत की अर्थव्यवस्था और भावी नीतियों के संबंध में बोलना था। इन सभी चर्चाओं में लगभग पन्द्रह सौ अमरीकी भारतीयों तथा सौ प्रसिद्ध अमरीकी उद्योगपतियों एवं थिंक टैंक सदस्यों से भेंट हुई जो वर्तमान परिदृश्य में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी देने वाली सिद्ध हुई।
अमरीका में सामान्य स्तर पर भारत के लिए नई उत्कंठा और कौतुहल का भाव है। वहां के भारतीय मूल वाले अमरीकी नागरिक भारत में मोदी लहर से चमत्कृत और प्रसन्न हैं और दस से पन्द्रह प्रतिशत वाम या कट्टर जिहादी मानसिकता वालों को छोड़ दिया जाए तो बहुसंख्यक अमरीकी भारतीय भारत के लिए मोदी को सुखद भविष्य का प्रतीक ही मानते हैं। बहुत बड़ी संख्या में ये अमरीकी भारतीय दो सप्ताह से लेकर एक महीने तक की छुट्टी लेकर अपने-अपने गांव और शहरों में नरेन्द्र भाई मोदी के लिए काम करने भारत गए। जो नहीं जा सके वे रात-रात भर जागकर भारत के लाखों मतदाताओं को फोन करके समझाते हैं कि मोदी का जीतना भारत के लिए क्यों जरूरी है। उनका कहना है कि वे वर्षों से भारत को विदेशियों की निगाह में पिछड़ा हुआ देखकर दुखी और चिंतित थे। वे चाहे भाजपा को समर्थन करना चाहें या न चाहें लेकिन मोदी को देखकर उन्हें लगता है कि यह व्यक्ति भारत की अर्थव्यवस्था को सुधारेगा, दुनिया की निगाह में भारत की छवि फिर से एक शक्तिशाली और समृद्ध देश के नाते उभारेगा। दुनिया में भारतीय मूल के नागरिक चाहे किसी भी देश का पासपोर्ट रखते हों लेकिन उनका दिल भारत की धड़कन से धड़कता है। भारत का उठना और गिरना उनके माथे को उठाता और झुकाता है। जब अटल जी ने पोकरण-2 का विस्फोट किया, कारगिल विजय प्राप्त की, राजमार्गों और संचार व्यवस्था को सुधारा तो दुनिया में भारत की छवि भी ऊंची उठी और उसी अनुपात में जो भी भारतीय मूल का व्यक्ति किसी भी देश में था, उसका वहां सम्मान बढ़ गया। जब दुनिया के विभिन्न बड़े अखबारों और पत्रिकाओं में भारत को सबसे भ्रष्ट और आर्थिक गिरावट का देश कहा जाता है तो इन भारतीयों की नजरें खुद-ब-खुद झुक जाती हैं और वे मुट्ठियां भींचकर गुस्सा करते हैं कि एक महान देश का नेतृत्व इतना असफल क्यों हो रहा है।
यही वजह है कि भारत के वर्तमान चुनाव दुनिया भर में बसे भारतीय मूल के नागरिकों को आकृष्ट कर रहे हैं।
पिछले दस वर्षों से भारत के कट्टर जिहादी, वामपंथी और ईसाई समूहों द्वारा अमरीका तथा यूरोप में मोदी के नाम पर एक ऐसा विषवमन किया गया जिससे भारत का नाम खराब हुआ। अपनी घरेलू लड़ाई ये लोग विदेश ले गए और जैसे पुराने जमाने में विदेशी हमलावरों को भारत के स्वार्थी मददगार मिल जाते थे वैसे ही यूरोप तथा अमरीका की सरकारों ने इन गुटों का मजा ही लिया। इनमें अमरीका और यूरोप से बहुत बड़ी मात्रा में डालर की मदद लेने वाले ईसाई संगठनों की संख्या काफी बड़ी थी। राज्यसभा के एक मुस्लिम सांसद ने तो कुछ तथाकथित सांसदों के हस्ताक्षर करवाकर अमरीकी सरकार को पत्र भी लिख दिया कि वह मोदी को कतई वीजा न दें। ये कैसी देशभक्ति है कि हम अपने देश के ही एक व्यक्ति के विरुद्ध लड़ाई विदेश में ले जाते हैं। इन सबका परिणाम यह हुआ कि भारत के प्रति विदेशियों के मन में अच्छी धारणा नहीं बनी।
अमरीका ने तो श्री नरेन्द्र भाई मोदी को वीजा न देने का मामला कुछ ज्यादा ही तल्खी के साथ एकतरफा ढंग से उछाला। जबकि सत्य है कि श्री नरेन्द्र भाई मोदी ने अमरीका के वीजा के लिए कभी आवेदन किया ही नहीं था। जब सारी दुनिया यह मान चुकी कि मोदी विकास पुरुष हैं और अगली सरकार उनके ही नेतृत्व में बनने वाली है तब कहीं आखिर में जाकर अमरीकी राजदूत नैंसी पॉवल उनसे मिलने गईं। ऐसा लगता है शायद अब अमरीका को अपनी बहुत बड़ी गलती का अहसास हुआ और कारण क्या रहा होगा, हम नहीं कह सकते, लेकिन नैंसी पॉवल ने इस्तीफा दे दिया।
सच की मार जैसी इस मामले में अमरीका पर हुई और मोदी को वीजा देने से मना करने वाला देश अब खुद मोदी का वीजा लेने की लाइन में खड़ा दिखता है, वैसा ही ईश्वर हर सत्यकामी को विजयी बनाए। यह अद्भुत घटनाक्रम हुआ है। अमरीका अहंकार और भारत के एक लोकप्रिय नेता को नीचा दिखाने की कोशिश उलटी पड़ी और अब अमरीका को समझ नहीं आ रहा है कि वह उसी मोदी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार के प्रति अपनी नीतियां कैसे बदले और कैसे उस सरकार के साथ सरल, सहज एवं सफल कामकाजी रिश्ता कायम करे।
बहरहाल, यह नीति बनाना या न बनाना अमरीका की समस्या है। वहां जो माहौल इस समय है वह पूरी तरह मोदी को भारत का भाग्यपुरुष मानता है। अमरीका भारत बिजनेस काउंसिल और एशिया सोसायटी एवं सीएसआईएस जैसे थिंक टैंक के वरिष्ठ सदस्य भारत के साथ अपनी दृष्टि की पुन: समीक्षा कर रहे हैं। भारत के जेएनयू छाप, पूर्वाग्रहग्रस्त वामपंथी -जिहादी- ईसाई गुटों ने केवल झूठ और तर्कहीन आरोपों के आधार पर मोदी पर जहरीले वार करते हुए भारत का भी अहित कर डाला। ये तमाम अमरीकी संस्थान अब समझते हैं कि दिल्ली में मजबूत, पारदर्शी, ईमानदार और लोकतांत्रिक सरकार विश्व शांति ही नहीं अमरीका और यूरोप के भी हित में है।
अमरीकी उद्योगों के वरिष्ठ पदाधिकारी मोदी सरकार में विश्वास करते हुए भारत में बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश के इच्छुक हैं तथा मोदी की अर्थनीति जानने के लिए अब हरसंभव उपाय कर रहे हैं। जिस देश ने कभी मोदी को वीजा के लिए मना किया था उसी का अब मोदी का वीजा लेने के लिए लालायित दिखना एक सुखद भारतीय संयोग है। ल्ल
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