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.डा. वेदप्रताप वैदिक
संजय बारू की पुस्तक ह्यद एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टरह्ण में दो-चार व्यक्तिगत घटनाओं को छोड़कर सारे तथ्य और निष्कर्ष सारी दुनिया को पता हैं। यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने आंखों देखी घटनाओं के संस्मरण सार्वजनिक कर दिए और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में दस वर्ष पूर्व घटी दुर्घटना सत्यापित हो गई। 10 वर्ष तक देश के प्रधानमंत्री रहे डा. मनमोहन सिंह ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से स्वयं ही प्रमाणित किया कि वे देश के लोकतंत्र के लिए एक बड़ी दुर्घटना सिद्ध हुए हैं।
संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी अपनी शक्ति और सीमा जानती थीं। इसलिए उनकी भी इच्छा यही थी कि प्रधानमंत्री के पद पर ऐसे व्यक्ति को बिठाया जाए जो उनके आदेश का पालन करने वाला और उनसे भी अयोग्य हो। मनमोहन सिंह इसी खेाज का परिणाम थे और आज देश की जो दुर्दशा हर क्षेत्र में दिखाई दे रही है वह इस जोड़ी का कमाल है। यदि देश में आज से चार वर्ष पूर्व प्रभावी नेतृत्व नजर आता तो संप्रग सरकार का काम तमाम तभी हो जाता, लेकिन अपने देश में तो नकली आंदोलनकारी कुर्सी के फेर में नकली नेताओं को भी मात देने में लगे हैं। बारू को असल में यह भी बताना चाहिए था कि आखिर डा. मनमोहन सिंह सोनिया गांधी के किन मानकों पर खरे उतरकर उस कुर्सी तक पहुंचे, यह दुर्घटना हुई कैसे? यदि इस बात को पता लगाने की भी कोशिश की जाती तो ज्यादा अच्छा रहता। वैसे प्रधानमंत्री की गरिमा पर प्रश्नचिह्न लगाती अभी यह पहली पुस्तक है, अभी रहस्य के कई पर्दे हटेंगे, देश के साथ आंख-मिचौली खेलने वाली इतनी बड़ी धांधली को तार-तार करने में समय तो लगेगा ही, तभी देश की जनता को मालूम पड़ेगा कि सवा अरब देशवासियों की अपेक्षा व आकांक्षाओं का हरण किस प्रकार हुआ और संविधान की आंख में कैसे धूल झोंकी गई।
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