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-प्रशांत पोल-
जिस भी व्यक्ति ने कम्प्यूटर से संबंधित कोई शिक्षा ली होगी, उसका सामना 8080, 8085 या 8086 इन आंकड़ों से निश्चित रूप से पड़ा होगा। यह सब प्रारंभिक स्वरूप के 'इक्रोप्रोसेसर'हैं। मतलब हमारे कम्प्यूटर का सी़ पी़ यू़ (सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट) यानी 'दिमाग'है।
पिछले 30-40 वर्षों में हमने इस दिमाग का तेज दौड़ना देखा है। इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर या आईटी का विषय लेने वाले सभी को अनिवार्य रूप से इंटेल के 8085 या 8086 प्रोसेसर पढ़ने पड़ते हैं। यदि कम्प्यूटर सीखना हो तो इन प्रोसेसर को समझना अनिवार्य है। जैसे गणित के क्लिष्टतम सूत्र समझने के लिए विद्यार्थी को जोड़ और घटा अनिवार्य रूप से समझना पड़ता है, वैसे ही इसे भी समझना पड़ता है।
इस 8085 माइक्रोप्रोसेसर की गति 3 मेगा हर्ट्स थी। 80 के दशक में जब इंटेल ने ये माइक्रोप्रोसेसर दुनिया के सामने रखे थे, तब यह अपने ढंग का एक अजूबा था। आज अपने लैपटॉप या डेस्कटॉप कम्प्यूटर में जो प्रोसेसर होते हैं, उनकी गति 3 गीगा हर्ट्स से भी ज्यादा होती है। ऊपर जो 3 मेगा हर्ट्स लिखा है, उसमें 'एम'का अर्थ होता है 'मेगा' वहीं 3जी हर्ट्स में जी का अर्थ होता है 'गीगा'यानी इसकी गति 3 मेगा हर्ट्स से 'हजार'गुना ज्यादा है। मतलब यह कि पिछले 30-35 वर्षों में कम्प्यूटर के दिमाग की गति एक हजार गुना से भी ज्यादा तेज हो गयी है। यह तेजी बढ़ ही रही है। कम्प्यूटर के भविष्य की तकनीक पर दृष्टि रखने वाले वैज्ञानिक भी इस तेज गति से दौड़ने वाले कम्प्यूटर के दिमाग को लेकर अचंभित हैं। यह गति कहां तक जायेगी, कम्प्यूटर की बढ़ने वाली तीव्र गति और क्या-क्या गुल खिलायेगी, इस पर विश्व के अनेक भागों में अध्ययन चल रहा है। कम्प्यूटर की ताकत या कम्प्यूटर के दिमाग की ताकत इस बात पर निर्भर करती है कि वह दी हुई जानकारी को कितनी जल्दी, कितनी त्वरित गति से प्रोसेस कर सकती है, यह जितनी जल्दी वह कर सकेगा, उतनी जल्दी वह प्रश्नों के उत्तर तलाश सकेगा।
पहली-दूसरी पीढ़ी के प्रोसेसर समानांतर काम नहीं करते थे। वे सारे सीरियल प्रोसेसर थे यानी एक बार में एक काम, किन्तु बाद में समानांतर प्रोसेसिंग शुरू हुई। विंडोज जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम में 'मल्टी-टास्किंग' अर्थात एक साथ अनेक काम करना यह एक प्रमुख मुद्दा बन गया। इसी के साथ, एक माइक्रोप्रोसेसर में अनेक प्रोसेसर, यह कल्पना सामने आई। एक ही प्रोसेसर 'चिप' में एक से ज्यादा प्रोसेसर बिठाना शुरू हुआ। उसे नाम दिया गया 'कोर'। आज के माइक्रोप्रोसेसर 'मल्टी-कोर'होते हैं अर्थात 6 कोर, 8 कोर व 16 कोर आदि कम्प्यूटर की गति बढ़ाने में ये सारे प्रयोग मददगार साबित हुए।
कम्प्यूटर का इतिहास पुराना है, 60 के दशक तक कम्प्यूटर में वौल्व का प्रयोग होता था, किन्तु सेमीकंडक्टर के आने से सारा दृश्य ही बदल गया। छोटी-छोटी चिप तैयार होने लगीं, जो ट्रांजिस्टर से बनी हुई थीं। उस समय 1965 में, 'मूर्स लॉ'सामने आया। अनेक वर्षों तक कम्प्यूटर की चिप बनाने के व्यवसाय में एकछत्र साम्राज्य खड़ा करने वाली 'इंटेल'कंपनी के सह-संस्थापक गोर्डन एर्ले मूर ने यह नियम बनाया था। बड़ा सीधा-सरल नियम हैं यह 'इंटीग्रेटेड सर्किट (अर्थात इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में उपयोग में लाई जाने वाली 'चिप' में उपयोग में लाये जाने वाले ट्रांजिस्टर हर दो साल में दोगुने हो जाते हैं।' ट्रांजिस्टर का दोगुना होना यानी गति का दोगुने से ज्यादा होना। मूर का यह नियम अभी तक सही साबित हो रहा है। सेमीकंडक्टर उद्योग में यह नियम, भविष्य के नियोजन तथा अनुसंधान के लिए उपयोग में लाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मूर का यह नियम 2020 तक तो सही साबित होगा, किन्तु बाद में तकनीक में होने वाले नए बदलावों के कारण यह झुठलाया जाएगा।
कम्प्यूटर को तेज गति से दौड़ाने में सबसे बड़ी बाधक वस्तु क्या है? प्रोसेसिंग की गति आदि तो गौण है। मुख्य है, माइक्रोप्रोसेसर से निकलने वाली ऊष्मा या गर्मी। यह प्रोसेसर जितनी तेज गति से काम करते हैं, उतनी ही ऊर्जा, ऊष्मा के रूप में बाहर फेंकते हैं। इस ऊष्मा का ठीक से विलयन नहीं किया गया तो कम्प्यूटर काम करना बंद कर देता है। इसीलिए तीव्र गति से चलने वाले कम्प्यूटर (जिन्हें सर्वर कहते हैं) वातानुकूलित वातावरण के बिना काम नहीं कर सकते।
इस तेज गति का फायदा भी है। पहले बड़ी संख्या में चित्र या वीडियो एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं भेजे जाते थे। इसका कारण था, तेज गति से उनकी प्रोसेसिंग नहीं हो पाती थी, इसलिए बहुत समय लगता था। लेकिन आज की परिस्थिति बिल्कुल अलग है। कम्प्यूटर की बढ़ती गति ने कम्प्यूटर से संबंधित सभी तकनीक को भी तीव्रगामी बना दिया है। अभी दो-चार वर्ष पहले ही मोबाइल कैमरे की गति तीन या पाच मेगा पिक्सल होती थी, वह बहुत अच्छा माना जाता था। आज तो 12-15 मेगा पिक्सल वाले कैमरे हैं, ऐसे मोबाइल फोन सामान्य रूप से दिखते हैं। यह इसलिए संभव हुआ है कि मोबाइल के अंदर जो माइक्रोप्रोसेसर है, उसकी गति भी तीव्र हो चली है। अब तो माइक्रोप्रोसेसर के स्थान पर पिकोप्रोसेसर और नेनोप्रोसेसर उपलब्ध हो रहे हैं। इन प्रोसेसर की गति बढ़ने का परिणाम ही है कि आतंरिक नेटवर्क (लोकल एरिया नेटवर्क) ह्यलानह्ण ऑफिस, उद्योग, बैंक, कारखाने, शिक्षा संस्थान आदि सभी स्थानों पर रहता है, की गति भी जबरदस्त बढ़ी है। अनेक वर्षों तक इस नेटवर्क की गति 10 एमबीपीएस ही थी, लेकिन अब तो 1 जीबीपीएस गति के आन्तरिक नेटवर्क सहज रूप में दिख जाते हैं। डाटा सेंटर्स में तो 10 जीबीपीएस और 100 जीबीपीएस गति के आंतरिक नेटवर्क होते हैं। स्वाभाविक ही इस बढ़ती गति का असर इन्टरनेट पर होना था। आज से 10 वर्ष पहले, जब ब्रॉडबैंड नहीं था, थ्री-जी के डोंगल्स नहीं थे, तब डायल-अप मोडम्स से इंटरनेट का कनेक्शन जोड़ा जाता था। उसकी गति रहती थी 36 केबीपीएस या 48 केबीपीएस मात्र।
अब तो चित्र बिल्कुल ही बदल गया है। ब्रॉडबैंड अब 2 एमबीपीएस या 4 एमबीपीएस की गति से सहज रूप से मिलता है। विकसित देशों में यही गति सामान्य रूप से 12 एमबीपीएस या 20 एमबीपीएस है। ऑप्टिकल फाइबर से इस गतिशीलता में क्रांति आई है। अब तो इंटरनेट के लिए घर तक ऑप्टिकल फाइबर उपलब्ध है। अपने यहां बीएसएनएल ने ह्यफाइबर टू द होमह्ण परियोजना प्रारंभ की है। इसके द्वारा 4 एमबीपीएस तक अबाधित रूप से इंटरनेट उपलब्ध रहता है। अर्थात इस गति से मिलने वाला इंटरनेट कनेक्शन यदी आपके पास है और आप आधुनिकतम लैपटॉप का प्रयोग कर रहे हैं, तो कोई भी पूरी लम्बाई का ह्यहाई डेफिनिशनह्ण सिनेमा हम मात्र 2 से 5 मिनट में डाउनलोड कर सकते हैं। प्रश्न यह उठता है कि कम्प्यूटर की गति में होने वाली प्रगति हमें कहां तक लेकर जाएगी? इसका भविष्य क्या होगा ?
कम्प्यूटर की गति में तीव्रता तो आती रहेगी। वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि जो लैपटॉप आज 3 गीगा हर्ट्स की गति से चलते हैं, वर्ष 2020 तक वे ही 120-200 गीगा हर्ट्स की गति से चलेंगे।
मैमोरी सस्ती होगी, आज जो 8 जीबी और 16 जीबी की पेन ड्राइव मिलती है, वह 256 से 512 जीबी की मिलने लगेगी, कम कीमत में और छोटे आकार में़, इसी प्रकार कम्प्यूटर की रेम 500-750 जीबी तक रहेगी।
2020 तक कम्प्यूटर की तकनीक में भी अनेक क्रांतिकारी बदलाव अपेक्षित हैं। ह्यकार्बन नेनो ट्यूबह्ण या इससे मिलती-जुलती तकनीक सामने आएगी, जो प्रोसेसिंग की गति को अति तीव्र करेगी। सुपर-कम्प्यूटर के क्षेत्र में भी अनेक बदलाव होंगे। मनुष्य के दिमाग की पूर्ण प्रतिकृति वर्ष 2025 तक संभव है। 2030 तक वायुमंडल की पूर्ण जानकारी तथा वातावरण में बदलाव बताने की क्षमता 99 फीसदी तक पहुंचेगी।
ऐसा बहुत कुछ होगा, इनका मुख्य आधार रहेगा गति। मनुष्य की मुख्य स्पर्धा कम्प्यूटर की इस गति से चलती रहेगी, जिसमें मनुष्य हमेशा असंतुष्ट रहेगा।
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