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गोकशी की बढ़ती घटनाओं से हिन्दू समाज एवं गोभक्त चिंतित
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पुलिस व सफेदपोश नेताओं के संरक्षण मंे बडे़ पैमाने पर गोहत्या जारी है। इतना ही नहीं गाय के मांस को गुपचुप तरीके से बेचने का काम भी यहां धड़ल्ले से बिना रोक-टोक किया जा रहा है। यहां कुछ अधिकारी और नेता मिलकर निजी हितों की पूर्ति के लिए समझौता कर गोवध के मामलों को दबाकर इसमें संलिप्त लोगों को बचाने का काम कर रहे हैं। पुलिस एवं नेताओं की इस कार्यप्रणाली से जहां एक तरफ गो भक्त एवं हिंदू संगठन बड़े चिंतित हैं, वहीं दूसरी ओर उनमें भारी रोष भी पनप रहा है।
हिंदू संगठनों एवं गोभक्तों का गोवंश तस्करों और गोहत्या करने वालों के साथ सीधा टकराव भी हो रहा है। गोकशी करने वाले इतने हठी हैं कि उन पर दारूल उलूम देवबंद के फतवों और उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी की मुहिम का भी कोई असर नहीं हो रहा है। ध्यान रहे, दारूल उलूम, देवबंद हर वर्ष ईद उल जुहा के मौके पर मुसलमानों से गाय की कुर्बानी न करने की लिखित में अपील जारी करता है। दारूल उलूम ने अनेक बार मुसलमानों से अपील भी की है कि वे गाय के प्रति हिंदू भावनाओं का सम्मान करते हुए गोवध के खिलाफ बने कानून का पालन करने की खातिर किसी भी कीमत पर गोहत्या न करें। गांधीवादी अजीज कुरैशी ने उत्तराखंड का राज्यपाल बनने के बाद प्रदेश में अपने समुदाय द्वारा की जाने वाली गोकशी की घटनाओं पर संज्ञान लिया और इस पूरे इलाके में इस धंधे में जुटे प्रभावशाली लोगों की बैठक बुलाकर अपील की थी कि वे गोकशी से बाज आएं और हिंदुओं के लिए पूजनीय गो माता का सम्मान करें। लेकिन राज्यपाल की इस मुहिम का भी आज तक किसी पर कोई असर नहीं हुआ।
गायों के रोजाना हो रहे वध से चिंतित देवबंद के मौहल्ला कानूनगोयान निवासी पर्यावरणविद् एवं गो-गंगा प्रेमी शशांक जैन कहते हैं कि हिंदू धर्म ही नहीं, बल्कि दूसरे सभी पंथों के लोगों द्वारा भी गाय को पाला जाना बेहद जरूरी है क्योंकि गाय से मिलने वाली हर वस्तु सिर्फ एक जाति या संप्रदाय के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मनुष्य जाति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। शशांक कहते हंै कि कोई भी पंथ गाय का वध करने की अनुमति नहीं देता है और हिंदू धर्म में तो गाय की पूजा की जाती है क्योंकि गाय में करोड़ों देवी-देवताओं का वास माना गया है। वह कहते हैं कि यदि गोवंश का आएदिन इसी तरह वध होता रहा तो एक दिन आएगा जब गाय का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा और उससे प्राप्त दूध, दही एवं घी को भी लोग पूरी तरह से तरस जाएंगे, फिर भी न जाने क्यों भारत सरकार गोहत्या को रोकने के लिए कोई कठोर कानून क्यों नहीं बनाती।
मुजफ्फरनगर के शाहपुर, बसीकला, कसेरवा, हरसौली, तावली, निरवानी, बसदाडा, कैराना एवं कांधला आदि ऐसे इलाके हैं, जहां सबसे ज्यादा गोकशी होती है। सहारनपुर में बेहट, देवबंद और सरसावा में प्रतिदिन गोहत्याएं होती हैं। सहारनपुर जिला गो तस्करी का गढ़ बन चुका है। यहां आए दिन गोवंश एवं गो मांस से भरे वाहन हिंदू संगठनों द्वारा पकड़े जाते हैं। पुलिस मामले तो दर्ज करती है, लेकिन सफेदपोश नेताओं के दबाव में वह गो तस्करों और गोकशों को जेल नहीं भेजती है। इससे इस अवैध कृत्य पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इस स्थिति से विधानसभा चुनाव में सपा को सर्वसमाज का जो वोट मिला था लोकसभा चुनाव में वह बिखरेगा। सबसे ज्यादा खामियाजा सपा को भुगतना पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश में लागू गोवध निवारक अधिनियम के अंतर्गत न केवल सभी प्रकार के गोवंश की हत्या पर प्रतिबंध है, बल्कि गोवंश को राज्य में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने या बाहर ले जाने पर भी प्रशासनिक पाबंदी है। इसके बावजूद प्रदेश भर में गोवंश की तस्करी और अंधाधुंध हत्या जारी है। आजादी के समय भारत में 18 करोड़ से ज्यादा गोवंश था जिसमें से 40 प्रतिशत अकेले उत्तर प्रदेश में था। वर्ष 1993 की पशु गणना के अनुसार गाय-बैल-बिजार-बछडे़-बछिया आठ करोड़ 90 लाख थे, जो वर्ष 2003 में घटकर आठ करोड़ 30 लाख रह गए। बढ़ते मांस निर्यात के कारण 2003 से गोवध और गोवंश की तस्करी विकराल हो चुकी है।
देश में गोवंश की 26 प्रमुख नस्लों में से 16 बिल्कुल खत्म हो चुकी हैं। सरकार ने 2007 की 18वीं पशु गणना के आंकड़े इस डर से जारी नहीं किए हंै कि वास्तविकता जान कहीं जनता भड़क न उठे। गोकशी में सहारनपुर मंडल शीर्ष पर है, जहां 24 वर्षों के दौरान गायों की संख्या चार लाख घट गई। 1988 में सहारनपुर मंडल में सात लाख 97 हजार 877 गोवंश था। जो 2012 में घटकर तीन लाख 97 हजार 301 रह गया। मुरादाबाद मंडल में 1988 में 10 लाख 76 हजार गोवंश था। 2012 में यह सात लाख 54 हजार 595 रह गया। मेरठ मंडल में 1988 में 6 लाख 70 हजार 608 गोवंश था जो अब घटकर पांच लाख 60 हजार 909 रह गया।
गो उत्पाद रोगों से लड़ने में उपयोगी
देवबंद के मौहल्ला छिम्पीवाड़ा निवासी व आयुर्वेद की किताबों के विशेष जानकार एवं गो-गंगा प्रेमी गौरव सिंघल कहते हैं कि आयुर्वेद की पुरानी किताबों में साफ लिखा है कि गाय का दूध पौष्टिक तथा घी और दही स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है और उसके सेवन करने से किसी प्रकार की कोई बीमारी नहीं रहती है। सिंघल कहते हैं कि किताबांें में यहां तक लिखा है कि गाय के मांस से टीबी जैसी भयंकर बीमारी जन्म ले लेती है, जो कि मनुष्य के लिए बड़ी घातक है।
सिंघल कहते हैं कि गो मूत्र के अर्क के सेवन से बाय एवं गठिया रोग तक पूरी तरह से दूर हो जाता है और गाय की सेवा मात्र से सांस की परेशानी दूर हो जाती है। वहीं श्री कृष्ण गोशाला, देवबंद में तो गाय के गोबर से केंचुए पालन करके खेती के लिए अति उपयोगी जैविक खाद तैयार की जा रही है और गोमूत्र से गंभीर बीमारियों के उपचार की दवा बनायी जा रही है।
देवबंद गोशाला, में इस समय 200 से ज्यादा गाय और उनके बछड़े आदि हैं। यहां केंचुओं के पालन और उनके जरिए बनने वाली जैविक खाद से होने वाली आय गायों के पालन पर ही खर्च होती है। इसकी खाद बहुत कम समय में बनकर तैयार हो जाती है। जांच से यह भी पता चला है कि केंचुए द्वारा तैयार जैविक खाद बीमारी फैलाने वाले सूक्ष्म जीवों से रहित होती है।
गोशाला में दो क्िंवटल केंचुए हैं। एक क्िंवटल केंचुए 24 घंटे में एक क्िंवटल गोबर खाएंगे तो उससे 50 किलो खाद बनेगी, जो सूखकर 25 किलो रह जाएगी, गोशाला पांच रुपए किलो की दर से किसानों को जैविक खाद बेचती है।
ल्ल सुरेंद्र सिंघल
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