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सूचना क्रांति की कृपा! मुंह से बात निकली नहीं कि दुनिया को खबर हो जाती है। तर्कों की तुलना का चलन, संदर्भों को परखने की सुविधा। टचस्क्रीन के जमाने में लोग राजनीतिक राय तय करने के मामले में भी काफी सेंसिटिव हो गए हैं। इसमें दो राय नहीं कि तकनीक के गहराते प्रयोग ने अंतत: जनता की समझ को मांझने का काम किया है। तर्कविहीन, एकपक्षीय राजनीतिक जुगालियां और ठप्पामार विशेषज्ञों की रटी-रटाई बातें लोगों के मन में बैठें इससे पहले ही दिमाग तकनीक की सहायता से आलतू-फालतू चीजें बुहार देता है।
ऐसे में गांव के खलिहान से राजनीति के गलियारों तक कोई एक ही बात गूंजे यह बात किसी चमत्कार से कम नहीं परंतु देशभर में आजकल कुछ ऐसी ही चमत्कारी गूंज सुनाई पड़ती है। यह गूंज है केसरिया लहर की। इस उफान का राजनीतिक विवेचन आसान नहीं किन्तु कहा जा सकता है कि शहर-गांव की दूरी, महिला-पुरुष भेद आज मिटता, और सिर्फ उस एक वोट में सिमटता दिखता है जिसकी वरीयता भारत है।
एक तरफ हाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली जोरदार जीत की पृष्ठभूमि है और दूसरी ओर आंकड़ों-सर्वेक्षणों के वह पहाड़ हैं जो शहरों से गांवों तक महिलाओं से पुरुषों तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर झुकाव का संकेत कर रहे हैं।
दरअसल, अब यह लहर ना तो अकारण है और ना ही अदृश्य। एक ओर संप्रग शासन की असफलताओं की वजह से जनता के बीच खीझभरा कोलाहल पैदा हुआ, दूसरी ओर सक्षम नेतृत्वकारी चेहरे को आगे करते हुए आशा की एक तरंग भाजपा शासित राज्यों की ओर से उठी और दोनों बातें मिलकर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक देशव्यापी लहर में बदल गईं।
वैसे, जो बात इतिहास में दर्ज की जाएगी वह यह कि तकनीक का प्रयोग करते हुए भारत की जिज्ञासु जनता से जिन राजनीतिक संदर्भ बिंदुओं को जोड़ने और साझा करने का काम इस कालखंड में किया वह पहले कभी सोचा भी नहीं गया। पहली बार मतदान करने वाली पंद्रह करोड़ी युवा सेना की अगुआई में जनतंत्र के पैदल सिपाही उन निष्पक्ष सूचनाओं से लैस दिखे जो उन्हें शक्ति का अनुभव करा रही थीं।
जानकारियों से कटी जनता ने संदर्भ सहेजना सीख लिया है और वह पहली बार तार्किक आधार पर खुद मुद्दे जुटाते और उठाते हुए कमाल करने की हैसियत में आ गई है। लोगों ने चीजें जोड़ कर देखना, आपस में साझा करना और इसी के मुताबिक समझ कायम करना सीख लिया है।
क्या मालूम स्थाई रोजगार उपलब्ध कराने में नाकामी के निष्पक्ष आंकड़े दिखाती, किसी युवा मतदाता द्वारा गढ़ी गई कोई छोटी सी वीडियो क्लिप शहरों से गांव तक सत्तारूढ़ गठबंधन का किला दरकने की वजह बन जाए!
हैरानी नहीं होनी चाहिए यदि राजधानी में महिला सुरक्षा के नाम पर कामकाजी लड़कियों को जल्दी घर जाने की नसीहत देती कांग्रेसी शासन की निस्सहायता और ग्रामीण जनता को संबोधित करते हुए बलात्कारियों को बेचारा बताता ह्यनेताजीह्ण का बयान जोड़कर बनी कोई डिजिटल फाइल मोबाइल की एक क्लिक से आधी आबादी को झकझोरकर जगा दे और इस लहर को थोड़ा और ऊंचा उठा दे।
हालांकि सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की टोली और कुछ विश्लेषक टीवी बहसों में लहर को रस्मी तौर पर नकारते हैं। कहा जाता है कि यह लहर नहीं बल्कि हवा है, मगर हवा और लहर का फर्क क्या है, यह उन्हें भी नहीं पता इसलिए या तो न्यूजरूम में बात खारिज कर दी जाती है या फिर लोग ड्राइंग रूम में चैनल बदल लेते हैं।
राजनीतिक हित और लालसा रखने वाले बयानवीरों और विश्लेषकों को एक और रख दिया जाए तो देश भर से मिल रहे संकेत यही बताते हैं कि इस बार जनता के दिल में कुछ खास चल रहा है। इस हलचल का उत्सव देश कुछ दिन बाद मनाएगा, तब तक टीवी विमर्शों का आनंद लीजिए, जनजाग्रति के यज्ञ में आहुति डालिए और मतदान के कर्तव्य का निर्वहन अवश्य करिए।
अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित करते हुए लोकतंत्र का यह पर्व हमारे लिए गर्व का विषय होना चाहिए।
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