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गत दिनों भुवनेश्वर में 'भारत- चीन सम्बंध व तिब्बत का स्वतंत्रता आंदोलन' विषय पर एक गोष्ठी आयोजित हुई। इसको सम्बोधित करते हुए भारत-तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि तिब्बत कभी भी चीन का भाग नहीं रहा है। चीन ने उस पर बलपूर्वक कब्जा किया है। भारत अपने हित के लिए चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता के दौरान तिब्बत का मामला उठाए। भारत के उत्तरी सीमांत की सुरक्षा के लिए तिब्बत की स्वतंत्रता जरूरी है। कुछ सालों से चीन भारत पर कूटनीतिक स्तर पर हमला करने के किसी भी मौके को नही छोड़ रहा है । अरुणाचल प्रदेश व लद्दाख में चीनी घुसपैठ बढ़ रही है । चीन समर्थक लॉबी 1962 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के लिए भारत को दोषी ठहरा रही थी , अब वही लॉबी पुन: यह समझाने में लगी है कि पुरानी बातों को भूल कर नए सिरे से सम्बंधों को सुधारा जाना चाहिए । उनकी दृष्टि में पुरानी बातों को भूलने का अर्थ है कि चीन के सामने आत्मसमर्पण करना और चीन द्वारा कब्जाई गई 50 हजार वर्ग किमी की जमीन को चीन को प्रदान करना ।
प्रो. अग्निहोत्री ने बताया कि चीन में बढ़ रही गरीबी, बेरोजगारी व आर्थिक विषमता से ध्यान हटाने तथा वैश्विक राजनीति में भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए वह भारत पर हमला भी कर सकता है । इसलिए भारत सरकार को तिब्बत के प्रश्न को चीन सरकार के समक्ष उठाना चाहिए और उस पर दबाव बनाना चाहिए । संपूर्ण भारत भगवान शंकर की पूजा करता है , लेकिन यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भगवान शंकर का निवास कैलास भी चीन की गुलामी में है । अगर तिब्बत मुक्त होता है तो कैलास भी मुक्त होगा । उन्होंने बताया कि भारत तिब्बत सहयोग मंच के कार्यकर्ता श्रावण माह में देशभर के शिव मंदिरों में कैलास की मुक्ति के लिए संकल्प लेंगे ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी अरुण उपाध्याय ने भारत व तिब्बत के सांस्कृतिक सम्बंधों के बारे मे विस्तार से बताया। संगोष्ठी की अध्यक्षता श्रुति समाचार पत्र के संपादक सर्वेश्वर मिश्र ने की ।
ल्ल समन्वय नंद
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