मुक्तक की उन्मुक्त दुनिया

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दिंनाक: 12 Apr 2014 14:05:06

मुक्तक हिन्दी साहित्य में काव्य की एक विशिष्ट विधा मानी गई है। इसकी विशिष्टता इसकी पूर्णता में है। वैसे दोहे और मुक्तक में काफी समानता है। जैसे दोहों का विषयगत विस्तार अनन्त है ,वैसे ही मुक्तक भी विषयगत अनन्ता सहेजे होता है। हां ,एक भिन्नता दोनों में स्पष्ट है। दोहा स्वयं एक छंद है। मुक्तक स्वयं छंद नहीं है। दोहे को उसके निर्धारित प्रारूप में ही लिखा जा सकता है,जबकि मुक्तक किसी भी छंद में, यहां तक कि दोहे में भी लिखा जा सकता है। मुक्तक इसलिए अपने आप में विशेष होता है क्योंकि इसकी चारों पंक्तियों को पढ़े जाने के पश्चात, किसी को समझाने की आवश्यकता नहीं होती है। यह कुछ ही शब्दों में पूर्णता सहेजे होता है। इनके लिए कहा भी जाता है-
देखन में छोटे लगें घाव करें गम्भीर
ऐसी ही एक पुस्तक ह्यमुक्तक आ खड़ा सड़क परह्ण लेखक डॉ. दयाकृष्ण विजयवर्गीय ह्यविजयह्ण की ऐसी कृति है, जिसमें उन्होंने सांस्कृतिक, धार्मिक, साहित्यिक तथा ज्ञानात्मक विषयों को मुक्तक के माध्यम से सामाजिक एवं राजनैतिक विषयों के साथ बड़ी सरलता के साथ जोड़ा है। इसमें लेखक ने एक साल में हुईं वे सभी घटनाएं समाहित की हैं, जो जनहित में दु:खद,शर्मनाक और आक्रोशपूर्ण रही हैं। मुक्तक के माध्यम से अपने स्वरों को शब्दाभिव्यक्ति देकर लेखक ने अपने आक्रोश को उजागर किया है। लेखक ने अपने मुक्तकों के माध्यम से सभी क्षेत्रों से कुछ न कुछ विषय पर लिखने का पूर्ण प्रयास किया है।
देश में आएदिन नारी की अस्मिता के साथ खिलवाड़ हो रहा है। उन पर अत्याचार और उन्हें परेशान किया जा रहा है। यह उस नारी की दास्तान है, जो हमें जीवन के विभिन्न रूपों में अपने प्रेम और करुणा से हमारे जीवन को प्रसन्नता से भर देती है,उसी नारी के लिए यह समाज आज काल बन गया है। भोर होते हाथों में जैसे ही समाचारपत्र आता है तो पहले पन्ने पर किसी न किसी अबला का रुदन और करुणक्रन्दन होता है, किसी की अस्मिता के साथ इस पुरुष समाज ने खिलवाड़ किया होता है। ऐसी पीड़ा को देखकर सहज ही मन व्याकुल हो जाता और अनायास पुरुष समाज को उसकी हद और नारी की महत्ता याद दिलानी पड़ती है-
बहन,वधू,मां बनकर जीती बेटियां,
दो घर बीच सेतु बन जीतीं बेटियां,
आती अपसंस्कृति की आंधी में फंसी
अभिशापों के आंसू पीतीं बेटियां।।
देश में चुनाव की उदघोषणा हो चुकी है। नेताओं ने गांव-गलियों की खाक छाननी शुरू कर दी है। ये वही राजनेता हैं,जो पांच साल तक आम जनता का हाल जानने नहीं जाते हैं और अब अपने लालच के लिए नतमस्तक तक होने के लिए तैयार हैं। लेखक ऐसे झूठे राजनेताओं के छल-प्रपंच को समझने के लिए प्रेरित कर रहा है और ह्यराजनीतिह्ण खंड में लिखता है-
बहुत कठिन है नेताओं के शब्द कलाप समझना
भीतर की प्रसन्नता,बाहर किया विलाप समझना
भोली भाली जनता की आंखों में धूल झोकते-
धैर्य बंधाते इनके झूठे मंच प्रलाप समझना।
जैसा हम सभी लोग जानते हैं कि अनन्त काल से हमारी भारतीय संस्कृति विश्वभर में अपनी ध्वजा पताका फहरा रही है। सभी देश इस संस्कृति का सम्मान करते हैं और इससे सीखते हैं। भारत ने सदैव विश्व के सामने आध्यात्मिकता और समरसता की बात कही है। ह्यसंस्कृतिह्ण खंड में लेखक ने भारतीय संस्कृति का गुणगान करते हुए कुछ इस प्रकार लिखा है-
भगवा हिन्दू संस्कृति का प्रतिमान है
आध्यात्मिकता ही इसकी पहचान है
समरसता आदर्श रही इसकी सदा
गाया सत्य अंहिसा का ही गान है॥
कुल मिलाकर मुक्तकों से सभी क्षेत्रों को छूने का जो प्रसास किया गया है, वह अपने आप में सराहनीय है। चार लाइन की पक्तियों में अपने पूरे विषय को कहना गागर में सागर के समान है। मुक्तक के माध्यम से लेखक ने उन सभी स्थानों पर प्रहार किया है,जहां पर किसी साहित्यकार को चोट करनी चाहिए।ल्ल अश्वनी कुमार मिश्र
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