भारत के सत्व का प्रतिबिम्ब
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भारत के सत्व का प्रतिबिम्ब

by
Apr 12, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Apr 2014 13:55:22

त्येक देश और काल का साहित्य अपने आप में एक आईना होता है,जिसमें उस देश,काल,व्यक्ति,स्थान व प्रमुख लोगों के विषय में जानकारियां झलकती हैं। वस्तुत: ये चीजें अपने समय की यथा तथ्य प्रस्तुतियां होती हैं। व्यक्ति स्तर पर क्या चल रहा है; समाज स्तर पर क्या बदल रहा है और राष्ट्र स्तर पर क्या हो रहा है, जैसी विषयवस्तु समाहित रहती हैं। इन्हीं सन्दर्भ और प्रसंग के चलते साहित्य अपने युग और समाज का का बिम्ब दिखाता है और असलियत बताता है।
ह्यभारत दर्शनह्ण लेखक थम्मन लाल वर्मा ह्यविकलह्ण की ऐसी ही एक पुस्तक है ,जिसमें उन्होंने काव्य के माध्यम से भारत दर्शन कराया है। लेखक ने पुस्तक में भारत की महान विभूतियों ,प्रमुख पर्यटक स्थलों,भारतीय किलों की कहानी,हिन्दी साहित्य की कहानी,प्रमुख प्रान्तों एवं अनेक प्रमुख-प्रसंगों का समावेश किया है।
खण्ड ह्यमां भारती के प्रतिह्ण अपने स्नेह और करुणा के भावों को कुछ इस प्रकार शब्दाभिव्यक्ति दी है –
माता है सुमाता कभी होती न कुमाता मातु,
बुद्घि की प्रदाता,उर ज्ञान भर दीजिए।
जड़ता का हरो त्रास,
बुद्घि का करो विकास,
करके प्रकाश अंधकार हर लीजिए॥
लेखक या साहित्यकार पहले विषय को समझता है और उसे लगता है कि इस विषय पर लिखना चाहिए तो वह फिर उसे अपने शब्दों को बुनकर समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है। वैसे तो हमारे देश के समक्ष अनेकानेक विपत्तियां मुंहबाए खड़ी रहती हैं,लेकिन कुछ संकट ऐसे होते हैं, जिनकी चिन्ता न करना हमारे लिए घातक हो जाता है।
देश आज पड़ोसी दुश्मनों की नापाक हरकतों से आक्रोशित है। आए दिन दुश्मन हमारे वीर जवानों के सिर काट ले जाते हैं,लेकिन जिन्हें जवाब देना चाहिए वे सत्ता के पुजारी दस दिनों तक अपना मुंह बंद किए रहते हैं। ऐसे नेताओं से क्या अपेक्षा हो सकती है, जिन्हें धरती मां न प्यारी हो,जिन्हें उसकी रक्षा करने वालों की चिन्ता न हो,जिनको इस देश की मिट्टी से बदबू आती हो और जिन्हें इस देश के पावन इतिहास से नफरत हो।
सत्ता के सिंहासन पर बैठे ऐसे लोग देश की रक्षा क्या कर पाएंगे? यह आज सभी के सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न बना हुआ है,जिसका उत्तर देश की जनता चाह रही है। तब लेखक ने अपने आक्रोशित स्वरों को शब्दों मे पिरोते हुए लिखा-
हमारे सामने इतिहास जब मुर्दा पड़ा होगा
समूचे विश्व में पहचान का
संकट खड़ा होगा।
कभी जब अस्मिता के
जागरण का प्रश्न आ जाए
हमें इतना बता देना-
वतन से क्या बड़ा होगा॥
लेखक ने पुस्तक के खंड ह्यसंस्कृति के अग्रदूतह्ण में अधिक से अधिक उन लोगों को समाहित करने का प्रयास किया है,जो भारतीय संस्कृति के अग्रदूत रहे हैं। जिनकी शिक्षा और दीक्षा से देश ही नहीं बल्कि विश्व ने अपने को कृतार्थ किया है। काव्य के माध्यम से लेखक ने ऋषि याज्ञवल्क्य के संदेश और शिक्षाओं को कुछ इस प्रकार अपने पाठकों के समक्ष रखा है-
होता न बेकार कभी भुज्य के समान दान
होता मोक्ष पाने का उपाय प्राणायाम है।
मानव की चेतना में ज्ञान ही जगावे ज्योति
होता प्राणवायु का संचार न विराम है॥
कोह, मद मोह त्याग
सत्य में हो अनुराग
मानव कल्याण हेतु
करें नित्य काम है।
संस्कृति के अग्रदूत,
ज्ञानपूत को नमन
बार-बार उनके कृतित्व को प्रणाम है॥
आज पूरे देश में गुजरात का विकास एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। देश के अनेक तथाकथित नेता इसको लेकर अनेक अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं। सम्भवत: साहित्यकार या लेखक किसी भी बात को तब ही लिखता है, जब उसे उस विषय में सत्य और असत्य का भान हो जाता है। इसी गुजरात को लेकर लेखक है-
देश के उद्योगशील,
शहर हैं बड़े अनेक
उनमें औद्योगिक शहर
सुविशेष है।
वस्त्र निर्माण का आधार है कपास मुख्य
जिसका यहां उत्पादन विशेष है॥
भारत का मानचेस्टर
कहलाता यह
साबरमती का पुण्य पावन
प्रदेश है॥
लेखक ने इसी प्रकार काव्य द्वारा अनेकानेक विषयों पर भारत दर्शन कराया है। इसमें उन्होंने राष्ट्रभक्ति से लेकर अनेक प्रान्तों का महत्वपूर्ण इतिहास व भारत की सांस्कृतिक व्यवस्था को बड़ी अच्छी प्रकार उकेरा है। हालांकि कहीं-कहीं पर वाक्य विन्याश की गलती भी मिलती है। लेकिन फिर भी यह पुस्तक प्रत्येक व्यक्ति को पढ़नी चाहिए क्योंकि इसमें देश की अधिक से अधिक महत्वपूर्ण चीजें समाहित हैं।
खासकर यह छात्रों लिए उपयोगी सिद्घ हो सकती है क्योंकि कविताओं के माध्यम से लेखक ने अधिक से अधिक ऐसे तथ्यों को समाहित किया है,जो उनको आसानी के साथ याद हो सकते हैं और भविष्य ने उनके काम आसकते हैं।

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