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बाबासाहब ने अनुच्छेद 370 का किया था विरोध

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Apr 12, 2014, 12:00 am IST
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दिंनाक: 12 Apr 2014 13:23:05

-डॉ. संतोष कुमार तिवारी-

जिस प्रकार से विश्व की राजनीति में कार्ल मार्क्स ने मजदूरों के पक्ष में एक अमिट छाप छोड़ी है, उसी प्रकार से आधुनिक भारत के इतिहास में बाबासाहब भीमराव रामजी अम्बेडकर ने पूरे राष्ट्र में वंचित समाज के पक्ष में सामाजिक और राजनीतिक चेतना को जागृत किया है।
आज भारत का जन साधारण उनको सिर्फ आरक्षण नीति के प्रवर्तक के त।र पर जानता है। आम आदमी यह भी जानता है कि वह हमारी संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष भी थे। इस तरह वह भारतीय संविधान के निर्माता माने जाते हैं।
अम्बेडकर ने महिलाओं को पुरुषों को संपत्ति में बराबर का अधिकार दिलाने के लिए भी बहुत कुछ किया था। इसके अलावा इस लेख का दूसरा उद्देश्य यह बताना है कि अम्बेडकर संविधान के अनुच्छेद 370 के विरुद्ध भी थे।
हालांकि अम्बेडकर महात्मा गांधी के प्रखर विरोधी थे, तब भी कांग्रेस पार्टी ने सन् 1947 में उन्हें देश का पहला विधि मंत्री बनाया था। महात्मा गांधी ने उनको विधि मंत्री बनाए जाने का विरोध नहीं किया था।
विधि मंत्री के तौर पर उन्होंने हिंदू कोड बिल तय किया था, जिसमें हिंदू महिलाओं को संपत्ति में पुरुषों के बराबर हकदार बनाया गया था। यह कदम उस समय इतना क्रांतिकारी था कि तत्कालीन पंडित नेहरू की सरकार इसे कानून का दर्जा नहीं दिलवा पाई। इस कारण इन्होंने वर्ष 1951 में विधि मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। हिंदू कोड बिल सभी हिंदुओं के लिए था, ना कि सिर्फ वंचितों के लिए। बाद में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद बाबासाहब वर्ष 1952 में राज्यसभा के सदस्य बने और जीवनपर्यन्त इस सदस्यता को बरकरार रखा। राज्यसभा की सदस्यता छह वर्ष के लिए होती है। बाबा साहब की मृत्यु 1956 में दिल्ली में हुई थी।
विधि मंत्री पद से उनके इस्तीफे के बाद नेहरू सरकार हिंदू कोड बिल को टुकड़ों-टुकड़ों में संसद में पारित करा पाई। टुकड़ों-टुकड़ों में बने ये कानून थे:
* हिंदू विवाह अधिनियम 1955
* हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956
* हिंदू अल्पवयस्कता और संरक्षता अधिनियम 1956
* हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम 1956
बाबासाहब अम्बेडकर चाहते थे कि सभी भारतीयों के लिए एक जैसा यूनीफार्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) बने। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत ऐसा प्रावधान किया था। परंतु आज तक वोट की राजनीति के कारण उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। समान नागरिक संहिता का सबसे अधिक विरोध भारत के वे कट्टरवादी मुस्लिम करते हैं जोकि मुस्लिमों के सही मायने में हितैषी नहीं हैं।
इंग्लैंड में तो समान नागरिक संहिता लागू है, लेकिन वहां के मुस्लिम तो उसका विरोध नहीं करते हैं। वर्ष 1982 में इस लेख का लेखक लंदन के रीजेंट पार्क स्थित यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिद के इमाम से मिला था। वह इमाम सऊदी अरब के थे अ।र कभी भारत में लखनऊ में भी रहे थे। उनसे इस लेखक ने पूछा था कि इंग्लैंड में आप लोग मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू करने की मांग क्यों नहीं करते हैं? इमाम ने अपने जवाब में कहा था कि इंग्लैंड में अभी हमारी आबादी कम है, जब वह बढ़ जाएगी तब यह मांग की जाएगी।
वर्ष 1982 में मुझे (लेखक) पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण करने के लिए ब्रिटिश स्कॉलरशिप मिली थी। इसलिए मै लन्दन में था। ये बातें इस लेखक ने इंलैंड से लौटकर अपने यात्रा वृत्तांत में लखनऊ और इलाहाबाद से निकलने वाले दैनिक अखबार अमृत प्रभात में लिखी भी थीं। अमृत प्रभात कोलकाता के अमृत बाजार पत्रिका समूह का अखबार था।
जहां तक संविधान के अनुच्छेद 370 का प्रश्न है, बाबा साहब कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के पक्ष में नहीं थे। जिस दिन संविधान सभा में 370 पर चर्चा होनी थी, तो अम्बेडकर ने उसमें हिस्सा नहीं लिया था। हालांकि वह अन्य चर्चाओं में बोले थे। अनुच्छेद 370 के पक्ष में सभी दलीलें अय्यंगर ने दी थीं। ये बातें विकिपीडिया में बलराज मधोक को उद्धृत करते हुए कही गई हैं।
बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने कहा था कि यह अनुच्छेद 370 सिर्फ एक अस्थाई प्रावधान है। हालांकि वोट की राजनीति के चलते यह उसी तरह से एक किस्म का स्थाई प्रावधान हो गया है, जिस तरह से विभिन्न संविधान संशोधनों के जरिए आरक्षण व्यवस्था लगभग स्थाई जैसी बन गई है। अम्बेडकर द्वारा बनाए गए भारत के मूल संविधान में आरक्षण सिर्फ शुरू के दस वर्षो के लिए था।
आज बाबा साहब के समर्थक भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों में हैं। इनमें कांग्रेस पार्टी, भाजपा अ।र कम्युनिस्ट पार्टियां भी शामिल हैं। इस लेख का उद्देश्य सभी दलों के बाबा साहब समर्थक सांसदों को यह याद दिलाना है कि वे देश में समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) लागू कराने के लिए और अनुच्छेद 370 हटवाने के लिए कार्य करें। बाबा साहब के जन्म दिन 14 अप्रैल को उनकी प्रतिमा पर सिर्फ फूल माला चढ़ाना ही काफी नहीं है। ल्ल
(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय, रांची में जनसंचार केंद्र के अध्यक्ष हैं)

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