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.हम जो करते हैं वह महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि उसका जो परिणाम आता है वह महत्वपूर्ण होता है। कोई सत्य जिससे समाज में अव्यवस्था पैदा हो तो उससे बचना चाहिए। इसलिए समाज में कोई कार्य उसके परिणाम को सोचकर ही करना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐसा ही कार्य करता है। संघ का कार्य किसी के खिलाफ नहीं होता है। वह समाज को जोड़ने, उसे सही मार्ग पर ले जाने और उसमें चेतना जगाने का कार्य करता है।ह्ण यह कहना है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तरांचल प्रान्त के सहप्रान्त संघचालक सरदार गजेन्द्र सिंह का। वे 30 मार्च को देहरादून में वर्ष प्रतिपदा की पूर्व संध्या पर विवेकानन्द नगर द्वारा आयोजित पथ संचलन कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि नव संवत्सर 2071 का नाम प्लवंग है, जिसका तात्पर्य तैरने वाली वस्तु से है। यानी यह संवत् तूफान में डूबने वाले के लिए तैरने के सहारे का संकेत देता है। उन्होंने कहा कि हिन्दू संस्कृति विश्व की सर्वाधिक सतत प्रवाहमान संस्कृति है। इसलिए हम कह सकते हैं कि यह मुख्यधारा की संस्कृति है। उन्होंने कहा कि समूचे विश्व को बचाने वाली परिवार संस्कृति मात्र भारत में नजर आती है।
उन्होंने पथ संचलन के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समय-समय पर जब हमारे ऋषि- मुनियों को लगा कि समाज और संस्कृति में गिरावट आ रही है तो इस तरह के कार्यक्रम शुरू हुए। भारत के इतिहास में संभवत: पहला पथ संचलन गुरु गोविन्द सिंह जी ने निकाला था। इसके तहत उन्होंने मुगल शासक के फरमान के खिलाफ आनन्दपुर साहिब से हरिद्वार तीर्थ तक पथ संचलन निकाला और खालसा पंथ की स्थापना की। पथ संचलन धर्मपुर चौक से होते हुए आराघर, नेहरू कलोनी, चंचल डेरी, हरिद्वार रोड से गोवर्धन विद्या मंदिर पहुंच कर समाप्त हुआ। इस दौरान जगह-जगह लोगों ने संचलन में चल रहे स्वयंसेवकों पर फूल बरसाए।
वि.सं.के.देहरादून
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