दीर्घकालिक योजना शिल्पी थे डा. अविनाश आचार्य
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-श्री भैयाजी जोशी
सरकार्यवाह, रा. स्व. संघ
डॉ. अविनाश आचार्य समाज और देश के लिए एक मार्गद्रष्टा पुरुष थे जिन्होंने अपने आचरण और पुरुषार्थ द्वारा देश और समाज के कल्याण के लिए ठोस और दीर्घकालिक योजनाओं का निर्माण किया। पिछले दिनों 25 मार्च को उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। वह 82 वर्ष के थे। 1 अप्रैल को जलगांव में उन्हें श्रद्धाञ्जलि अर्पित करने वालों में सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी सहित अन्य विशिष्टजन उपस्थित रहे।
आपातकाल के बाद 1976 में भारत में परिस्थितियां लगभग प्रतिकूल थीं। उसी कालखण्ड में भारत में कुशल नेतृत्व के पर्याय रूप में जयप्रकाश नारायण का उदय हुआ। वे आंदोलनों और धरनों के माध्यम से समाज में पूर्ण परिवर्तन लाने के पक्षधर थे। आपातकाल के विरुद्ध उनका यह आंदोलन तब शक्तिशाली बन गया जब इसमें देशभर के नेता और उनके अनुयायी जुड़ते चले गए। जीवन के सभी क्षेत्रों से जुड़े लोगों का दृढ़ विश्वास था कि एक लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए समर्पित इस आंदोलन को सभी को मजबूत करना चाहिए। उत्तर महाराष्ट्र में इस आंदोलन को डा. अविनाश आचार्य उपाख्य दादा ने आगे बढ़ाया। वे इस आंदोलन के सर्वमान्य नेता बन गए और इसके परिणामस्वरूप उन्हंे 18 माह की जेल भी काटनी पड़ी थी। इससे सामाजिक जागरूकता का उनका संकल्प और प्रबल हुआ। इससे उन्होंने अपने जीवन में सामाजिक परियोजनाओं के लिए रचनात्मक कार्य करने का प्रण ले लिया। एक बाल स्वयंसेवक के रूप में आचार्य जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बहुत पहले जुड़ गए थे। उसके पश्चात उन्हें बेंगलुरू मेडिकल कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। अपने ठोस संघ संस्कारों के चलते वे सबसे अलग थे। कॉलेज के दिनों में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की गतिविधियों मंे निरंतर प्रभावी भूमिका निभाई और अपने सहपाठियों के बीच गहरी छाप छोड़ी।
कुछ समय बाद उन्होंने डा. पूर्णपात्रे के साथ पुणे शहर में प्रैक्टिस शुरू की और कुछ वर्ष गरीबों और वंचित लोगों की सेवा करने के लिए जलगांव नगर निगम में सेवा करने का निश्चय किया। एक सुयोग्य चिकित्सक होने के साथ ही अपने समर्पण और सेवाभाव के कारण वे समाज में लोकप्रिय हो गए। स्वास्थ्य सेवा में सक्रियता के साथ ही उन्होंने सामान्य व्यक्ति की तरह रा. स्व. संघ. की गतिविधियों में सहभागिता जारी रखी। संघ के अधिकारियों ने उनको जलगांव जिले के संरक्षक का दायित्व सौंप दिया। अपनी विनम्र भाषा, आकर्षक मुस्कान, सहृदयता और वाकपटुता के चलते वे समाज के सभी लोगों में विशिष्ट बन गए।
अपनी विशेष पहचान के कारण आचार्य जी कई महान व्यक्तित्वों जैसे सरसंघचालक श्री गुरुजी, नानाजी देशमुख और दत्तोपंत ठेंगडी का सान्निध्य प्राप्त करने में सफल रहे। उन्हांेने 1979 में जलगांव जनता सहकारी बैंक की नींव रखी। उन्होंने सहकारी और वित्तीय क्षेत्र के प्रोत्साहन के लिए अद्भुत कार्य किए। इसके साथ ही उन्होंने मूक-बधिरों के विद्यालय की स्थापना की। उन्होंने एक वृद्धाश्रम, ब्लड बैंक की स्थापना के साथ आई बैंक और कई विद्यालय-महाविद्यालय विवेकानंद प्रतिष्ठान के अंतर्गत खोले। आचार्य जी जीवनभर समाज के लिए श्रेष्ठ कार्य करने को तत्पर रहे और इसी कारण जाति व धर्म से ऊपर उठकर वे सारे समाज के सर्वस्वीकार्य नेता बने रहे। महाराष्ट्र के प्रचलित गणेश महोत्सव को उन्होंने अपनी अनूठी कला से हिन्दू-मुस्लिम सभी का लोकप्रिय त्योहार बना दिया।
जनता सहकारी बैंक के रजत जयंती वर्ष में उनके नेतृत्व में जलगांव में राष्ट्रीय स्तर का संगीत संगम आयोजित किया गया था, उसमें सुप्रसिद्ध व स्थापित कलाकारों जैसे पं. जसराज, जाकिर हुसैन, पं. शिवकुमार शर्मा आदि ने पहली बार एकमंच पर अपना कौशल दिखाया था। आचार्य जी के प्रयासों से ही छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन चित्र को नाटक के रूप में ह्यजनता राजाह्ण नाम से अभिनीत कर बाबा साहेब पुरंदरे और उनके साथियों ने जीवंत बनाया। शिवाजी महाराज के इस महान ऐतिहासिक नाटक को देखने को लिए डेढ़ लाख से भी अधिक अनुयायी पहंचे थे।
ह्यसमाज को मां की तरह प्रेम करोह्ण के ध्येय वाक्य पर जीवनभर चलने वाले युगपुरुष आचार्य अविनाश को पाञ्चजन्य की ओर से भावभीनी श्रद्धाञ्जलि।
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