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समाज व राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका स्वयंसिद्ध है। संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से लेकर वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत तक सभी ने अपने मार्गदर्शन में कार्यकर्ताओं की देव दुर्लभ टोली खड़ी की है। रा.स्व. संघ के तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस ने अपने समय में संघ को जो व्यापक आयाम दिए हैं,वे एक चमत्कारिक कार्य के रूप में हैं। उन्होंने संघ को राष्ट्रीय व सामाजिक सरोकारों के परिप्रेक्ष्य में जिस भाव से सींचा है,उसे अदभुत ही कहा जायेगा।
पुस्तक ह्यसमाजशिल्पी बालासाहब देवरसह्ण लेखक यशवन्त पालीवाल की ऐसी ही एक कृति है,जिसमें उन्होंने श्री बालासाहब के जीवन-वृत्त,संस्मरणों,साक्षात्कारों,प्रश्नोत्तरों और उनके उद्बोधनों पर पूरा प्रकाश डाला है। श्री बालासाहब शुरू से ही अस्पृश्यता को समाज के लिए घातक बताते थे। पुस्तक के एक खंड ह्यबालासाहब देवरसह्ण में वर्णित है कि बचपन से ही बालासाहब संघ की शाखा में जाते थे और वहां पर आये हुए वंचित परिवार के स्वयंसेवकों को अपने घर भोजन कराने के लिए लाते और मां से कहते ह्यये मेरे मित्र रसोईघर में मेरे साथ ही भोजन करेंगे।ह्ण समरसता के प्रति बालासाहब का ऐसा आग्रह स्वयं उनके जीवनादशोंर् से स्पष्ट होता है।
रा.स्व.संघ जिस तरीके से देश-दुनिया में तक पहुंचा उसमें बालासाहब की भूमिका स्वयंसिद्ध है। वे विषम से विषम परिस्थितियों का भी बड़ी आसानी के साथ हल निकाल लेते थे। इसकी एक झलक आपातकाल के समय में देखने को मिली। रा.स्व. संघ का प्रभाव पूरे देश में व्याप्त था। प्रत्येक छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी घटना में संघ बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा था। संघ के बढ़ते प्रभाव से कांग्रेस पहले से चिढ़ी हुई थी। यह बात सत्य है, परन्तु संघ की ओर से विरोध का कोई भाव नहीं था। आपातकाल में भी उसी चिढ़ के चलते संघ पर कांग्रेस ने प्रतिबंध लगाया और बालासाहब को गिरफ्तार कर यरवदा जेल भेज दिया गया। इंदिरा गंाधी का इसके पीछे एक ही मतलब था कि अगर संघ के सबसे शीर्ष व्यक्ति को जेल भेज देंगे तो संघ का कार्य बाधित हो जायेगा। लेकिन बालासाहब की कूटनीति और कुशल नेतृत्व ने कांग्रेस के मनसूबे पर पानी तब फेर दिया,जब उन्होंने जेल में रहकर देश के चार विभाग कर उसकी जिम्मेदारी चार प्रचारकों को सौंप दी, जिनमें सर्वश्री मोरोपंत पिंगले,यादवराव जोशी, राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) व भाऊराव देवरस शामिल थे। बालासाहब की इस दूरदृष्टि के चलते जेल में रहकर भी संघ उसी गति से चल रहा था,जिस गति से पूर्व में चल रहा था। संघ की कार्यप्रणाली व व्यवस्थित ढंग से चलती गतिविधियों को देख सभी चकित थे । इस सब को देख कुछ अन्य दलों के नेता बालासाहब से जेल में मिले। उनका सिर्फ एक ही प्रश्न था ह्यआप तो यहां कारागृह में हैं फिर भी बाहर संघ की गतिविधियां इतनी सुव्यवस्थित ढंग से कैसे चल रही हंै?ह्ण इस पर बालासाहब ने उनसे कहा, ह्यउन्होंने एक सरसंघचालक को गिरफ्तार किया है,बाहर चार सरसंघचालक कार्य कर रहे हैं।ह्ण
पुस्तक के खंड ह्यमित्र,मार्गदर्शक और दार्शनिकह्ण में एक घटना का जिक्र है। वर्ष1993 में तमिलनाडु के प्रान्तीय संघ कार्यालय में हुए एक बम विस्फोट में 11 व्यक्तियों की मौत हो गई थी। यह समाचार जैसे ही बालासाहब ने सुना उन्होंने तत्काल वहां जाने का निश्चय किया, पर स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। चलने में असमर्थता थी। कई लोगों ने उन्हें रोका,लेकिन वे नहीं माने और कहा, ह्यमैं सरसंघचालक हूं, इस नाते मेरा कर्तव्य है कि उनके शोकग्रस्त परिवारों को जाकर संात्वना दूं।ह्ण अंतत: उन्होंने वही किया जो वे चाहते थे।
श्री बालासाहब का संघ की कार्य पद्धति तथा कार्यक्रमों के क्रमिक विकास में अत्यधिक योगदान रहा है। संघ का गणवेश,शाखाओं तथा संघ शिक्षा वर्गों में शारीरिक,बौद्धिक कार्यक्रम तथा उनमें समय-समय पर हुए आवश्यक परिवर्तनों के वे साक्षी रहे।
विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर उनका गहन अध्ययन और विषय-विषय पर उनका उद्बोधन स्वयंसेवकों को हरेक विपत्ति से लड़ने की शक्ति प्रदान करता था। वर्ष 1973 से 1994 तक लगभग 22 वषोंर् में सरसंघचालक के रूप में श्री बालासाहब देवरस ने संघ को अनेक नये विचार दिये तथा हिन्दुत्व पर आने वाली प्रत्येक चुनौती को दूर करने का प्रयास किया। स्पष्ट शब्दों में बालासाहब ने संघ को वैचारिकता के साथ-साथ आचार-व्यवहार के उच्च शिखर पर पहुंचाया। यही सम्भवत: डॉ. हेडगेवार का सपना था। सच्चे अथोंर् में वे उनके प्रतिबिम्ब थे। संकटकाल में जिस कुशलता से उन्होंने संघ को न केवल उबारा वरन् और अधिक सुदृढ़ किया,इसके लिए संघ के इतिहास में उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
ल्ल अश्वनी कुमार मिश्र
पुस्तक का नाम – समाजशिल्पी
बालासाहब देवरस
लेखक – यशवन्त पालीवाल
प्रकाशक – सेवाभारती, उदयपुर
हरिदासजी की मगरी, मल्लाहतलाई चौराहा, उदयपुर (राजस्थान)
मूल्य – 20 रू., पृष्ठ-84
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