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छत्रसाल ने ही बुंदेलखंड को शक्तिशाली राज्य बनाया था। छतरपुर नगर छत्रसाल का बसाया हुआ नगर है। छत्रसाल की राजधानी महोबा थी। वह धार्मिक स्वभाव के थे। युद्धभूमि में भी दैनिक पूजा-अर्चना करते थे।
बच्चो, आज हम आपको बुंदेलखंड के शिवाजी के नाम से प्रसिद्ध वीर छत्रसाल के बारे में बता रहे हैं! भारतवर्ष में गुरुओं के मार्गदर्शन में शिष्यों ने अपने ज्ञान, कौशल और बहादुरी से स्वयं को और अपने गुरुओं को श्रेष्ठ सिद्ध कर इतिहास में अपना और गुरुओं का का नाम अमर कर दिया है। जिस तरह समर्थ गुरु रामदास से मिली शिक्षा के आधार पर छत्रपति शिवाजी ने अपने पौरुष और पराक्रम से मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे, उसी तरह गुरु प्राणनाथ के मार्गदर्शन में छत्रसाल ने अपनी रणनीति से कितनी ही बार मुगलों के छक्के छुड़ाए। आतताइयों के लिए बस छत्रसाल का नाम ही पर्याप्त था। उनका नाम सुनते ही शत्रुओं के पसीने छूट जाते थे।
छत्रसाल का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1706 विक्रमी तदनुसार दिनांक 17 जून, 1648 ईस्वीं को एक पहाड़ी गांव में हुआ था। इनकी माताजी का नाम लालकुंवरि था और पिता का नाम था चंपतराय। चंपतराय बड़े वीर व बहादुर व्यक्ति थे। चम्पतराय के साथ युद्ध क्षेत्र में लालकुंवरि भी साथ-साथ रहती और अपने पति को उत्साहित करती रहती। गर्भस्थ शिशु छत्रसाल तलवारों की खनक और युद्ध की भयंकर मारकाट के बीच बड़े हुए। माता लालकुंवरि ने धर्म व संस्कृति से संबंधित कहानियां सुनाकर बालक छत्रसाल को बड़ा किया।अन्याय के प्रति कड़ा प्रतिकार करने और दुश्मन को धूल चटाने के किस्से सुनकर वे बड़े हुए।
बाल्यावस्था से ही छत्रसाल क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए आतताइयों से मुक्त स्वतंत्र देश में सांस लेना चाहते थे। बालक छत्रसाल मामा के यहां रहते हुए अस्त्र-शस्त्रों का संचालन सीखा और युद्ध कला में पारंगत हुए। दस वर्ष की अवस्था तक छत्रसाल कुशल योद्ध बन चुके थे।
सोलह साल की अवस्था में छत्रसाल को अपने माता-पिता की छत्रछाया से वंचित होना पड़ा। इस अवस्था तक छत्रसाल की जागीर छिन चुकी थी, उन्होंने धैर्यपूर्वक और समझदारी से काम लिया। छत्रसाल मां के गहने बेचकर छोटी सी सेना खड़ी की। उन्होंने स्वयं संघर्ष करते हुए अपना भविष्य स्वयं बनाया। छोटे-मोटे राजाओं को परास्त करके अपने आधीन कर क्षेत्र विस्तार करते रहे और धीरे-धीरे सैन्य शक्ति बढ़ाते गए। एक समय ऐसा भी आया जब दिल्ली के तख्त पर विराजमान औरंगजेब भी छत्रसाल की बढ़ती सैनिक शक्ति को देखकर चिंतित हो उठा। छत्रसाल की युद्ध नीति और कुशलतापूर्ण सैन्य संचालन से अनेक बार औरंगजेब की सेना को उनके सामने घुटने टेकने पड़े।
बुंदेलखंड के बड़े साहसी व बहादुर सैनिक युद्ध में अपना कौशल दिखाने के कारण सदैव विजयी रहे। छत्रसाल ने धीरे-धीरे अपनी प्रजा को सब प्रकार की सुख-सुविधाएं पहुंचा कर प्रजा का विश्वास प्राप्त कर लिया था। एक बार छत्रसाल, छत्रपति शिवाजी महाराज से मिले। दक्षिण क्षेत्र में मुगलों का शिवाजी के नाम से पसीना छूटता था। शिवाजी ने कहा – 'छत्रसाल तुम बुंदेलखंड में जाकर वहां की देखभाल करो।' छत्रसाल, शिवाजी से मंत्रणा करके बुंदेलखंड क्षेत्र में मुगलों को परास्त कर अपना शासन चलाते रहे। छत्रसाल को ज्ञात था कि जहां शस्त्र से राष्ट्र की रक्षा होती है, वहां शास्त्र सुरक्षित रहते हैं।
छत्रसाल विद्वानों को सम्मानित करते थे। स्वयं भी विद्वान थे कवि थे। भूषण कविराज ने शिवाजी के दरबार में रहते हुए छत्रसाल की वीरता और बहादुरी की प्रशंसा में अनेक कविताएं लिखीं। 'छत्रसाल-दशक' में इस वीर बुंदेले के शौर्य और पराक्रम की गाथा गाई गई है। बुंदेलखंड को शक्तिशाली राज्य छत्रसाल ने ही बनाया था। छतरपुर नगर छत्रसाल का बसाया हुआ नगर है। छत्रसाल की राजधानी महोबा थी। वह धार्मिक स्वभाव के थे। युद्धभूमि में भी दैनिक पूजा-अर्चना करते थे। बहादुर छत्रसाल का निधन 83 वर्ष की आयु में हुआ। प्रतिनिधि
बुंदेलखंड में कई प्रतापी शासक हुए हैं। बुंदेला राज्घ्य की आधारिघ्शला रखने वाले चंपतराय के पुत्र छत्रसाल महान शूरवीर और प्रतापी राजा थे। छत्रसाल का जीवन मुगलों की सत्ता के खिघ्लाफ संघर्ष और बुंदेलखंड की स्घ्वतंत्रता स्घ्थापिघ्त करने के लिघ्ए जूझते हुए निघ्कला। महाराजा छत्रसाल अपने जीवन के अंतिम समय तक आक्रमणों से जूझते रहे। बुंदेलखंड केशरी के नाम से विघ्ख्घ्यात महाराजा छत्रसाल के बारे में ये पंक्तियां बहुत प्रभावशाली है
इत यमुना, उत नर्मदा, इत चंबल, उत टोंस । छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस ॥
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