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लेफ्टिनेंट जनरल एंडरसन ब्रूक्स तथा ब्रिगेडियर पीएस भगत ने 1962 के युद्ध से संबंधित दस्तावेजों तथा परिस्थितियों की जांच की। 1963 में जांच रिपोर्ट प्रधानमंत्री नेहरू तथा उनके कुछ वरिष्ठ मंत्रियों को सौंप दी गई। रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई क्योंकि इसमें नेहरू पर ऐसे सवाल उठाए गए थे कि जिसका जवाब देना उनके लिए मुश्किल हो जाता। बाद में सीआईए की एक रिपोर्ट में कहा गया कि नेहरू सब जानते बूझते हुए भी चीन के साथ संबंध बनाए रखने के लिए तत्पर थे। चीन के साथ संबंध बने रहें, इसलिए उन्होंने सीमा विवाद और बढ़ते मतभेदों पर देश को भी अंधेरे में रखा। ये रिपोर्ट किसी तरह से आस्ट्रेलियाई पत्रकार मैक्स नेविले को मिल गई थी,जिसके आधार पर उन्होंने इंडियाज चाइना वार किताब लिखी।
वर्ष 1962 के आधा गुजरते-गुजरते समूचे देश में चीन से युद्घ का खतरा मंडराता महसूस होने लगा। युद्ध से ऐन पहले भारत ने अपनी ज्यादातर फौजें पाकिस्तान सीमा पर लगा रखी थीं। नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन को लगता था कि युद्ध अगर कभी हुआ तो पाकिस्तान से ही होगा, चीन से कतई नहीं।
वर्ष 1962 तक तिब्बत पर कब्जे के बाद चीन ने न केवल भारत के बड़े भू-भाग को हड़पा बल्कि लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र पर कब्जा कर वहां सड़क बना ली। इसके जवाब में जवाहरलाल नेहरू की फारवर्ड पॉलिसी अपनाकर मैकमोहन रेखा पर भारतीय चौकियां बनाने का निर्देश दिया गया।
चौकियां बनाकर जवान ऐसे दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में भेजे गये, जहां न खाना ठीक ढंग से पहुंच पा रहा था और न पानी। 1961 के मध्य तक चीन के सुरक्षा बल सिंक्यांग-तिब्बत सड़क पर वर्ष 1957 की अपनी स्थिति से 70 मील आगे बढ़ चुके थे। भारत की 14 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा किया जा चुका था। देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई। आलोचनाओं से तंग आकर नेहरू ने तत्कालीन सेना प्रमुख पीएन थापर को चीनी सैनिकों को भारतीय इलाके से खदेड़ने का आदेश दिया। थापर बहुत पहले से सेना की बदहाली से अवगत करा रहे थे, पर नेहरू ने कभी उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। अक्तूबर 1962 में लेफ्टिनेंट जनरल वी जी कौल को पूर्वी कमांड में नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) का कोर कमांडर नियुक्त किया गया। कौल के पास लड़ाई का अनुभव नहीं था। जब कौल ने नेहरू और मेनन को बताया कि भारतीय सेनाएं तैयार नहीं हैं़,तब नेहरू ने आदेश दिया कि सीमा में घुस आए शत्रु को निकालने का काम गर्मियों तक टाल दिया जाये। लेकिन चार दिन बाद ही नेहरू ने 13 अक्तूबर 1962 को श्रीलंका जाते हुए चेन्नै में मीडिया को बयान दिया कि उन्होंने सेना को आदेश दिया है कि वह चीनियों को भारतीय सीमा से निकाल फेंके। नेहरू के बयान के आठ दिन बाद चीनियों ने मैकमोहन लाइन की चौकियों पर ठंड,खाने की कमी से जूझती भारतीय सेना पर आक्रमण कर दिया।
17 अक्तूबर 1962 को नेहरू के पसंदीदा पूर्वी कमांड के लेफ्टिनेंट जनरल कौल की तबीयत कुछ बिगड़ गई। कौल ने दिल्ली से ही फोन पर सेना को आदेश देने शुरू किये। 21 अक्तूबर सुबह 05़ 00 बजे चीनी सैनिकों ने गोलीबारी शुरू की। देखते ही देखते भारतीय सेना के हाल खराब होने लगे। लेफ्टिनेंट जनरल कौल का हर आकलन गलत साबित हो रहा था। लिहाजा उनकी जगह लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह को नेफा भेजा गया। उसी दौरान जब सेना प्रमुख थापर रक्षा मंत्री मेनन से मिले, तो हमेशा चीनी हमला नहीं होने का दावा करने वाले मेनन ने कंधे झटक दिये।
ले. जनरल हरबख्श सिंह ने मोर्चे पर जाकर सेना में काफी जान फूंकी। इसी बीच फिर एक और अफलातूनी फैसला हुआ। नेहरू के आदेश पर कौल को फिर उनकी जगह लेने भेज दिया गया। 13 और 14 नवंबर तक वालोंग और तवांग भी हाथ से निकल गये। 19 नवंबर को बोमदिला की चौकियां भी पूरी तरह हाथ से निकल गईं। जिस तरह चीन की सेनाएं बढ़ रही थीं उससे ऐसा लगता था कि नेहरू असम भी हाथ से गया मान चुके थे।
20 नवंबर की सुबह नेहरू के कहने पर लाल बहादुर शास्त्री हालात का जायजा लेने तेजपुर जाने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन सुबह के अखबारों में चीन द्वारा एकतरफा युद्घविराम की खबरें छपीं। लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और खुफिया विभाग इससे अनजान थे। यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी इसकी खबर नहीं थी। ल्ल संजय श्रीवास्तव
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इस युद्घ में भारत के नुकसान का जो आकलन रक्षा मंत्रालय ने किया। उसके आंकड़े यूं थे-
मारे गये सैनिक-1383, लापता सैनिक-1696, बंदी सैनिक-3899
बाद में घायल-26, भारतीय सैनिक कैद में मारे गये। वहीं भारतीय खुफिया विभाग का आकलन था कि इस युद्घ में चीन के भी 300-400 सैनिक खेत रहे लेकिन एक भी चीनी सैनिक को भारत द्वारा बंदी नहीं बनाया जा सका। बाद में नये सेना प्रमुख ने विवादास्पद लेफ्टिनेंट जनरल कौल का तबादला पंजाब में ट्रेनिंग कमांड के लिए कर दिया लेकिन कौल ने इस्तीफा दे दिया। उन्हें हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाने की बात थी लेकिन बाद में प्रबल विरोध के मद्देनजर सरकार ऐसा नहीं कर पाई। ल्ल संजय श्रीवास्तव
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