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उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वोच्च न्यायालय की खरी-खरी

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Mar 29, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 29 Mar 2014 14:35:12

लोेकसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने 25 मार्च को पहले तीन माह के भीतर 72 हजार शिक्षकों की भर्ती का आदेश जारी कर दिया। वहीं 26 मार्च को प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों पर सुनवाई करते हुए सीधे उत्तर प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका विचारार्थ स्वीकार करते हुए अंतरिम आदेश जारी किए हैं कि प्रदेश में टीईटी परीक्षा पास कर प्राथमिक शिक्षक के तौर पर भर्ती का इंतजार करने वालों को आगामी 12 सप्ताह के भीतर भर्ती किया जाए। हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार को 31 मार्च तक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया था जिसमें थोड़ी राहत दे दी गई है। यह भी कहा गया है कि नियुक्तियां सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम आदेश के अधीन होंगी और फैसला विपरीत आने पर नियुक्ति पाने वाले लोग नौकरी के आधार पर किसी तरह की राहत नहीं मांगेंगे। सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा था कि अखिलेश सरकार द्वारा जो नियमों में संशोधन किया गया है, वह सही है।
दरअसल मायावती की सरकार ने नवंबर, 2011 में 72825 शिक्षकों की भर्ती निकाली थी। उस समय कहा गया था कि बी. एड. करने वाले जो अभ्यर्थी टीईटी परीक्षा पास करेंगे उन्हें रिक्तियों के अनुक्रम में नौकरी दी जाएगी। लेकिन सपा सरकार ने आते ही नियम बदल दिए और यह व्यवस्था कर दी कि टीईटी परीक्षा के अलावा दसवीं, बारहवीं और अन्य कक्षाओं के अंकों पर भी मेरिट से विचार होगा। इस पर कुछ अभ्यर्थियों ने इलाहाबाद उच्च न्यायलय का रुख किया था, जहां उच्च न्यायालय ने सपा सरकार के संशोधन को अस्वीकृत कर बसपा सरकार के समय की व्यवस्था के आधार पर शिक्षकों की भर्ती के निर्देश दिए थे।
दूसरी तरफ मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के मामले मंे भी प्रदेश सरकार को मुंह की खानी पड़ी है। सरकार को दंगों का जिम्मेदार बताते हुए शीर्ष अदालत ने इस मामले में सीबीआई और एसआईटी से जांच कराने से भी साफ मना कर दिया। साथ ही यह भी कहा कि राज्य सरकार द्वारा समय पर उचित कार्रवाई नहीं की गई और खुफिया तंत्र भी विफल रहा। मुजफ्फरनगर में बिगड़े हालात के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है। गौरतलब है कि गत वर्ष जिले में हुए दंगों में 65 लोग मारे गए थे। केन्द्र व राज्य सरकार ने मृतकों के आश्रितों का आर्थिक मदद करने की घोषणा भी की थी। प्रदेश में सरकार के पक्षपातपूर्ण रवैये को लेकर अदालत में यूपी पुलिस की जांच पर भी सवालिया निशान उठाए थे कि आरोपी जांच में बच सकते हैं। इसी के चलते सीबीआई से मामले की जांच करवाने की मांग की गई थी। इससे पहले भी मजहब के नाम पर मुआवजा दिए जाने के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की खासी किरकिरी हो चुकी है। ल्लप्रतिनिधि

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