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जिन्दगी कांटों का सफर है, हौसला इसकी पहचान है ।
रास्ते पर तो सभी चलते हैं, जो रास्ता बनाये वही इंसान है।।
ये पक्तियां हमें बताती हैं कि जीवन की डगर कितनी कठिन है और उस कठिन डगर पर आगे बढ़ने के लिए कुछ ऐसा करना है, जो कुछ अलग हो। हमारे समाज में भी कुछ ऐसे लोग होते हैं,जो अपने कर्म व उसके प्रति लगन व निष्ठा के चलते अपने जीवन में कुछ ऐसे मुकाम हासिल करते हैं,जो आम लोगों के लिए एक स्वप्न जैसा ही होता है। वे अपने जीवन में कामयाबी के इतने झण्डे गाड़ देते हैं कि देश व समाज के लिए एक प्रेरणा और मिशाल बन जाते हैं। लेकिन इन सब के बीच प्रश्न उठता है कि यह लोग अर्श से फर्श तक पहुंचते कैसे हैं और उनके काम करने का तरीका क्या होता है? इन्हीं तमाम प्रश्नों का जवाब समेटे हाल ही में प्रकाशित ह्यदलित करोड़पतिह्णलेखक मिलिंद खंाडेकर की ऐसी ही पुस्तक है,जिसमें 15 ऐसे करोड़पतियों की कहानियां हैं, जो वंचित समाज से हैं तथा जिन्होंेने करोड़ों का कारोबार अपने दम पर पिछले कुछ सालों में खड़ा किया है। उनके जीवन से जुड़ी कहानियां दिखाती हैं कि उन्होंेने सड़क से करोड़ों तक का सफर सिर्फ अपने कर्म व संघर्ष के बदौलत तय किया। आज भी हमारे समाज में जातिगत भेदभाव के चलते लोगों को अपमानित किया जाता है, सिर्फ इसलिए कि उन्होंने वंचित परिवार में जन्म लिया। लेकिन उन्हें इसका ज्ञान नहीं है कि इन्हीं लोगों की बदौलत आज भारत की अनेकता में एकता की गाथा गाई जाती है।
पुस्तक की 15 कहानियों में एक सबसे प्रमुख व प्रेरणादायक कहानी ह्यपलाश का पत्ताह्ण अशोक खाड़े की है,जो आज के दिन मुंबई में एक बहुत बड़े उद्योगपति हैं साथ ही वंचित परिवार से हैं। वंचित परिवार से होने के कारण उनको अपने बचपन से लेकर और आज तक काफी कुछ सहन करना पड़ा, लेकिन उन्होंेने अपने कर्म व जीवन में संघर्ष और उस संघर्ष को जीतकर करोड़ों रुपयों की संपत्ति एकत्रित की। अपने संघर्षपूर्ण जीवन से उन्होंने समाज के सामने एक मिशाल प्रस्तुत की कि अगर संघर्ष और दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो जीवन में कुछ भी असम्भव नहीं है। लेखक को अपने पुराने दिनों का स्मरण कराते हुए अशोक खाड़े ने बताया बचपन में मुझे कि एक दिन मां ने बारिश के मौसम में चक्की से आटा लाने के लिए भेजा, लेकिन बारिश की बजह से कीचड़ में फिसल जाने से सारा आटा गिर गया। खाली हाथ घर आया और पूरी घटना मां को बतायी तो मां अनायास होकर रोने लगीं। घर में आटा नहीं था। मां पड़ोस के घर से मक्के का आटा लाईं और बच्चों को खिलाया पर खुद कुछ नहीं खाया। ये सब कुछ देखकर अशोक को लगा कि सच में हमारा परिवार कितना गरीब है। लेकिन यह सब चल ही रहा था कि अशोक को एक दिन और देखने को मिला, जिसने उनको अर्श से फर्श तक पहुंचाने में मदद की । वर्ष 1972 में पूरे महाराष्ट्र में भयानक सूखा पड़ा था। अनाज-पानी को सभी तड़प रहे थे। हालात बेकाबू हो चुके थे। यह सब देख अशोक खाड़े का मन रुदन कर रहा था क्योंकि उनके घर में भी खाने को कुछ नहीं था। तभी उनके पिता जी ने अपने बेटे को देखकर कहा ह्यबेटा! मैं अकाल नहीं लाया। मैं तुम्हें भाकरी (रोटी) नहीं खिला पा रहा हूं, इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। घर के सारे बर्तन बिक चुके हैं। पर तुम हार मत मानना। फिर उन्होंने मराठी में मुहावरा सुनाया, जिसका मतलब था कि, जब तक पलाश के पत्ते आते रहेंगे तब तक खुद को गरीब मत समझना। पलाश के पत्ते आने बंद हो जाएं तो समझो गरीबी शुरू हो गई है। दरअसल पलाश के पत्ते बिना पानी के भी आते हैं।ह्ण उनके इस कथन में गूढ़ रहस्य छिपा था,जिसे अशोक ने समझ लिया था।
इसी रहस्य को समझकर उन्होंने जीतोड़ मेहनत की। कड़ी मेहनत, लगन और धैर्य के चलते अशोक ने अपनी कंपनी दास ॲाफशोर खोली, जिसने 20 साल में समुद्र में 100 से ज्यादा बड़ी परियोजनाओं पर काम किया। आज इस कंपनी का टर्नओवर लगभग 500 करोड़ रुपयों का है और साथ ही यह 1200 लोगों को रोजगार भी देरही है। आज अशोक खाड़े 57 साल के हैं और उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भी हासिल किया है वह किसी सपने से कम नहीं है। आज वह अपने गांव में बीएमडब्ल्यू कार से जाते हैं, जबकि 40 साल पहले उनके पैर में चप्पल तक नहीं होती थी।
ये तमाम कहानियां संघर्ष करके सफलता पाने और सीमाओं के टूटने की हैं, साथ ही इन कहानियों में जातीय भेदभाव के बारे में भी पता चलता है,जो रोजमर्रा के जीवन में समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों को झेलना पड़ता है। ये कहानियां उन लोगों के साहस और लगन के बारे में बताती हैं, जो अनेक रुकावटों के बाद भी शीर्ष पर पहुंचे और समाज के लिए मिसाल बन गए । ल्ल
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