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-सुभाष चन्द्र अग्रवाल-
आज भारत शासन के लोकतांत्रिक स्वरूप की व्याधियां अनुभव कर रहा है जो मौजूदा वक्त में राजनीति में कई लोगों के नीहित स्वार्थ वाली वोट बैंक राजनीति पर आधारित है। ऐसी कई व्याधियों को निकाल बाहर करने के लिए इसमें सुधार करके गुणात्मक लोकतांत्रिक व्यवस्था लानी होगी। यह सुधारा हुआ तंत्र दूसरे देशों के लिए एक आदर्श के रूप में बनना चाहिए।
इन सुधारों के लिए कुछ कदम हमें फौरन उठाने चाहिए। उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री निचले सदन के सदस्यों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के जरिए आवश्यक और गुप्त मतदान से चुने जाने चाहिए। इनका नामांकन कम से कम 34 प्रतिशत सदस्यों के हस्ताक्षर से होना चाहिए। इस प्रकार से चुना गया प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री इसी प्रक्रिया से हटाया जा सके, पर इसमें उसी प्रस्ताव के अन्तर्गत वैकल्पिक नेता का नाम सामने रखना जरूरी किया जाना चाहिए। यहां तक कि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर इसी तरीके से मुख्यमंत्रियों के साथ ही चुने जाने चाहिए। जो सदस्य मतदान न करने का विकल्प चुनें उनकी सदस्यता खत्म होने का प्रावधान हो और आने वाले 6 सालों तक उन्हें चुनावों से बाहर किये जाने की व्यवस्था हो।
राज्यसभा चुनावों के लिए गुप्त मतदान बहाल किया जाना चाहिए। इन चुनावों के लिए खुली मतदान व्यवस्था ने विधायकों के वोटों की बिक्री का एक तरह से लाइसेंस दे दिया है। बदली व्यवस्था की वजह से संसद का ऊपरी सदन ह्यअरबपतियों का क्लबह्ण बन गया है। राज्यों में विधायी परिषदों का कोई लाभकारी उद्देश्य नहीं बचा है इसलिए संविधान में राज्यों की विधायी परिषदों को खत्म किये जाने संबंधी सुधार होना चाहिए। केवल उन्हीं को राज्यसभा का सदस्य नामांकित किया जाना चाहिए जिन्होंने जीवन के कभी चुनाव न लड़ा हो।
केवल उन्हीं गैर सदस्यों को मंत्री बनाया जाना चाहिए जिन्होंने उदाहरण के लिए, एक साल तक कोई चुनाव न लड़ा हो ताकि सांसद और विधायक वास्तविक ह्यकिंग मेकरह्ण बन सकें और अपने मतदाताओं और चुनाव क्षेत्रों �%A
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