जुनून आपसे वह करवाता है जो आप कर नहीं सकते, हौसला आपसे वह करवाता है जो आप करना चाहते हैं और अनुभव आपसे वह कराता है जो आपको करना चाहिए। इन तीन गुणों का मेल हो तो कार्य की कीर्ति दसों दिशाओं में गूंजती है। ध्येयवादी पत्रकारिता की राह पर पाञ्चजन्य की यात्रा इन्हीं गुणों का दुर्लभ मेल है। शब्द सिद्ध संकल्प की अद्भुत गूंज। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब पत्रकारिता ने क्रांति की मशाल बुझाकर बाजार और मुनाफे की तरफ लुढ़कना शुरू ही किया था तब राष्ट्रीय विचार का बीज थामे पाञ्चजन्य ने मीडिया जगत में पांव रखा। यात्रा शुरू हुई उस जुनून के साथ जिसने संसाधनों के अभाव से हार मानना स्वीकार नहीं किया। देशहित को सबसे ऊपर मान कलम चलाने का वह अद्भुत पत्रकारीय हौसला ही था जो आपातकाल की शासकीय प्रताड़नाओं के बावजूद जरा नहीं डगमगाया। अनुभव से उपजी स्पष्टता ने ही वह दिशा दिखाई कि आज पाञ्चजन्य अपनी चुनी हुई राह पर विभिन्न पड़ाव पार करते हुए (देखें पृष्ठ-42) बदलाव के एक महत्वपूर्ण सोपान पर आ पहुंचा है। यह वह मोड़ है जहां से पाञ्चजन्य का हर अंक पत्रिका रूप में होगा। पाठकों को पहले से अधिक सामग्री मिले और संदर्भ सहेजने में आसानी रहे, ऐसा हमारा प्रयास है। वैसे भी हमारे लिए बदलाव का अर्थ पुराने को छोड़ना नहीं बल्कि न को जोड़ना है। पत्रकारिता के राष्ट्रवादी तेवर से नए पाठकों का भी परिचय हो और साइबर संसार व एंड्रायड एप की दुनिया में पाञ्चजन्य उनके साथ रहे इस दिशा मेंभी हम पहल कर चुके हैं। इस अंक से हम कुछ नए स्तंभ और आलेख श्रंृखलाएं आरंभ कर रहे हैं। 'इदं न मम्', 'संचार-संसार' और 'संस्कृति के शत्रु' इस कड़ी में पहला कदम हैं। अगले अंकों में पाठकों को ऐसी कई अन्य रोचक सौगातें मिलेंगी। वैसे, पत्रिका रूप में परिवर्तन एक बात, पूरे देश में व्यवस्थागत बड़े बदलाव की सुगबुगाहट आज हर ओर साफ सुनाई दे रही है। परिवर्तन को आकुल, देश की चिंता करने वाला समवेत स्वर पूरे भारत में सुना जा रहा है। सो, पत्रिका स्वरूप में पहला विशेषांक लोकसभा चुनाव-2014 को लेकर जन-मानस में घुमड़ रही इसी प्रश्नोत्तरी के नाम। एक बात सदा स्पष्ट थी और रहेगी, 'देश सर्वोपरि' की वैचारिक धुरी पर घूमती हमारी पत्रकारिता की धार वही है, तेवर वही। पाञ्चजन्य के नए कलेवर का आप स्वागत करेंगे, ऐसा हमें भरोसा है।
जुनून आपसे वह करवाता है जो आप कर नहीं सकते, हौसला आपसे वह करवाता है जो आप करना चाहते हैं और अनुभव आपसे वह कराता है जो आपको करना चाहिए। इन तीन गुणों का मेल हो तो कार्य की कीर्ति दसों दिशाओं में गूंजती है। ध्येयवादी पत्रकारिता की राह पर पाञ्चजन्य की यात्रा इन्हीं गुणों का दुर्लभ मेल है। शब्द सिद्ध संकल्प की अद्भुत गूंज। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब पत्रकारिता ने क्रांति की मशाल बुझाकर बाजार और मुनाफे की तरफ लुढ़कना शुरू ही किया था तब राष्ट्रीय विचार का बीज थामे पाञ्चजन्य ने मीडिया जगत में पांव रखा। यात्रा शुरू हुई उस जुनून के साथ जिसने संसाधनों के अभाव से हार मानना स्वीकार नहीं किया। देशहित को सबसे ऊपर मान कलम चलाने का वह अद्भुत पत्रकारीय हौसला ही था जो आपातकाल की शासकीय प्रताड़नाओं के बावजूद जरा नहीं डगमगाया। अनुभव से उपजी स्पष्टता ने ही वह दिशा दिखाई कि आज पाञ्चजन्य अपनी चुनी हुई राह पर विभिन्न पड़ाव पार करते हुए (देखें पृष्ठ-42) बदलाव के एक महत्वपूर्ण सोपान पर आ पहुंचा है। यह वह मोड़ है जहां से पाञ्चजन्य का हर अंक पत्रिका रूप में होगा। पाठकों को पहले से अधिक सामग्री मिले और संदर्भ सहेजने में आसानी रहे, ऐसा हमारा प्रयास है। वैसे भी हमारे लिए बदलाव का अर्थ पुराने को छोड़ना नहीं बल्कि न को जोड़ना है। पत्रकारिता के राष्ट्रवादी तेवर से नए पाठकों का भी परिचय हो और साइबर संसार व एंड्रायड एप की दुनिया में पाञ्चजन्य उनके साथ रहे इस दिशा मेंभी हम पहल कर चुके हैं। इस अंक से हम कुछ नए स्तंभ और आलेख श्रंृखलाएं आरंभ कर रहे हैं। 'इदं न मम्', 'संचार-संसार' और 'संस्कृति के शत्रु' इस कड़ी में पहला कदम हैं। अगले अंकों में पाठकों को ऐसी कई अन्य रोचक सौगातें मिलेंगी। वैसे, पत्रिका रूप में परिवर्तन एक बात, पूरे देश में व्यवस्थागत बड़े बदलाव की सुगबुगाहट आज हर ओर साफ सुनाई दे रही है। परिवर्तन को आकुल, देश की चिंता करने वाला समवेत स्वर पूरे भारत में सुना जा रहा है। सो, पत्रिका स्वरूप में पहला विशेषांक लोकसभा चुनाव-2014 को लेकर जन-मानस में घुमड़ रही इसी प्रश्नोत्तरी के नाम। एक बात सदा स्पष्ट थी और रहेगी, 'देश सर्वोपरि' की वैचारिक धुरी पर घूमती हमारी पत्रकारिता की धार वही है, तेवर वही। पाञ्चजन्य के नए कलेवर का आप स्वागत करेंगे, ऐसा हमें भरोसा है।
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