उधार का बोझ
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उधार का बोझ

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Mar 15, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 15 Mar 2014 16:16:37

 
एक बार किसी वित्तीय समस्या की वजह से तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय से कुछ रुपए उधार ले लिए। काफी समय बीत गया, तेनालीराम के रुपए वापस लौटाने का समय भी नजदीक आ गया था, लेकिन तय समय पर तेनालीराम के पास रुपए चुकाने का प्रबंध नहीं हो सका। इसलिए उन्होंने उधार चुकाने से बचने के लिए एक योजना बनाई।
एक दिन राजा को तेनालीराम की पत्नी की तरफ से लिखा हुआ एक पत्र मिला। उस पत्र में लिखा था कि तेनालीराम बहुत बीमार हैं। तेनालीराम कई दिनों से दरबार में भी नहीं जा रहे थे। इसलिए राजा ने सोचा कि वह स्वयं जाकर तेनाली से मिलेंगे, साथ ही उन्हें यह संदेह भी हुआ कि कहीं उधार चुकाने से बचने के लिए तेनालीराम कोई योजना ना बना रहा हो।
एक दिन वह अचानक बिना सूचना दिए तेनालीराम के घर पहुंच गए। उन्होंने देखा, तेनालीराम कंबल ओढ़कर पलंग पर लेटे हुए हैं। उनकी ऐसी स्थिति देखकर राजा ने तेनालीराम की पत्नी से उसकी बीमारी का कारण पूछा।
वह बोली ह्यमहाराज इनके हृदय पर आपके दिए हुए उधार का बोझ है। बस यही चिंता इन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रही है, शायद इसी वजह से बीमार हो गए हैं और इनका स्वास्थ्य सुधरने का नाम नहीं ले रहा। राजा ने तेनालीराम को सांत्वना दी और कहा, 'तेनालीराम, तुम परेशान मत हो। तुम मेरा उधार चुकाने के लिए नहीं बंधे हुए हो। चिंता छोड़ो और शीघ्र अति शीघ्र स्वस्थ होकर दरबार में आना शुरू करो ।' इतना सुनते ही तेनालीराम पलंग से कूदकर खड़ा हो गया और हंसते हुए बोला, 'महाराज, आपका धन्यवाद।'
'यह क्या है, तेनालीराम ? इसका मतलब तुम बीमार नहीं थे। मुझसे झूठ बोलने का तुम्हारा साहस कैसे हुआ?' राजा ने क्रोध में आकर कहा।
नहीं-नहीं, महाराज, मैंने आपसे झूठ नहीं बोला। दरअसल मैं उधार के बोझ की वजह से बीमार था। आपने जैसे ही मुझे उधार चुकाने से मुक्त किया, तभी से मेरी सारी चिंताएं खत्म हो गईं और मेरे ऊपर से उधार का बोझ हट गया। जैसे ही यह बोझ हटा, मेरी बीमारी भी जाती रही, और मैं अपने को स्वस्थ महसूस करने लगा। अब आपके आदेशानुसार मैं स्वतंत्र, स्वस्थ व प्रसन्न हूं।' राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम की चतुराई पर कुछ कह ना सके, बस उनके होठों पर हल्की मुस्कान आ गई। अगले ही दिन तेनालीराम दरबार में राजा के सामने उपस्थित हो गए। ल्ल्रप्रतिनिधि

बच्चो ! आप रोजाना अपने घर की छत पर, पार्कों में कई चौराहों पर कबूतरों के झुंड को दाना चुगते हुए देखते होंगे। आज हम आपको कबूतर और उसकी विभिन्न प्रजातियों के बारे में बता रहे हैं।
कबूतर एक शांत स्वभाव वाला पक्षी होता है। यह ठंडे इलाकों और दूर-दराज के द्वीपों को छोड़कर लगभग पूरी दुनिया में पाया जाता है। कबूतर को सौभाग्य और शांति का दूत भी कहा जाता है। धार्मिक दृष्टि से कबूतर को शनिदेव का वाहन भी बताया गया है।
कबूतरों का कृषि के लिए भी महत्व होता है। इनकी बीट से अच्छा उर्वरक तैयार होता है। ये सौम्य, पंखदार, छोटी चोंच वाले पक्षी होते हैं। जिनकी चोंच और माथे के बीच त्वचा की झिल्ली होती है। सभी कबूतर अपने सिर को आगे पीछे हिलाते हुए ठुमक-ठुमक कर चलते हैं, जो देखने पर बहुत मनोरम लगता है। अपने लंबे पंखों और मजबूत मांसपेशियों के कारण कबूतर उड़ने में बेहद कुशल होते हैं। विश्वभर में कबूतरों को पालने का चलन है। पुराने समय में कबूतर संदेशवाहक का काम भी करते थे। वर्ष 1848 की क्रांति के दौरान यूरोप में संदेश वाहक के रूप में कबूतरों का खूब प्रयोग किया गया था। वर्ष 1849 में बर्लिन व ब्रूसेल्स के बीच टेलीग्राफ सेवा भंग होने पर कबूतरों को ही संदेश वाहक के तौर पर प्रयोग किया गया था। पुराने समय में युद्ध के दौरान कबूतरों का प्रयोग आपातकालीन संदेश लाने ले जाने के लिए होता था। कबूतरों के संदेश पहुंचाने का उपयोग बेतार, दूरसंचार यंत्रों के आगमन से पहले संदेशों के आदान-प्रदान हेतु होता था। संदेशवाहक कबूतर एक दिन में 800 से 1,000 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है। प्रतिनिधि
कबूतरों की विभिन्न प्रजातियां

विश्व में कबूतर की लगभग 250 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें से दो- तिहाई ऊष्णकटिबंधीय दक्षिण-पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी प्रशांत महासागरीय द्वीपों में पाई जाती हैं। भारत में 34 से अधिक किस्मों के कबूतर पाए जाते हैं। इसकी सामान्य प्रजातियां इस प्रकार हैं, नीला, रॉक कबूतर हरा शाही कबूतर जंगली और हरा कबूतर हैं।
हिमालय का हिम कबूतर, तिब्बत के पठार का पहाड़ी कबूतर और पर्वतीय क्षेत्र के शाही व जंगली कबूतर, अंडमान का जंगली कबूतर, निकोबार का पाइड इंपीरियल कबूतर, पीतवर्णी कबूतर और निकोबारी कबूतरों को देखना बेहद दुर्लभ है। घोंसला बनाने अंडे सेने और चूजों को भोजन कराने में नर-मादा, दोनों सहयोग करते हैं। एक बार में आमतौर पर दो अंडे होते हैं और उन्हें ढाई सप्ताह तक सेना पड़ता है। दो या तीन सप्ताह में चूजे घोंसला छोड़ देते हैं, वयस्क फिर से घोंसला बनाते हैं और साल भर में दो या तीन बार प्रजनन करते हैं। इस परिवार के कई सदस्य तरल चूसते हैं, अन्य पक्षियों की तरह वे घूंट भरते या निगलने की प्रक्रिया नहीं अपनाते सभी कबूतर अपने चूजों को अपना दूध पिलाते हैं। जो प्रोलेक्टिन हॉर्मोन की उत्तेजक प्रक्रिया से बना गाढ़ा द्रव होता है। चूजे अपने अभिभावकों के गले में चोंच डालकर यह दूध पीते हैं। अंडों से चूजे निकलने में 14 से 19 दिन लगते हैं। लेकिन इसके बाद भी 12 से 18 दिनों तक घोंसले में ही रखकर उनकी देखभाल की जाती है। प्रतिनिधि

सोचो-समझो-बूझो

1- कहो कौन वह जिसके कारण, खिंचे वस्तुएं सारी
चीजों को आकर्षित करती, अपनी पृथ्वी भारी
2- गरमी पहुंचाती चीजों में, कर दे उनको गर्म,
बूझो, बूझो,जल्दी बूझो, क्या है इसका मर्म
3- घूमे चारों ओर ग्रहों के,निज कर्तव्य निभाए,
जल्दी बूझो मिलकर सारे, वह क्या है कहलाए
4- मेरे कारण ही कर पाते, तुम सब काम साथियों
रहूं उपस्थित हर प्राणी में, बूझो मेरा नाम साथियों
5- एक खिंचाव या कि धक्का हूं, लेकिन मैं बलशाली
जिसमें मेरा वास हो गया, उसका बात निराली
6- मुझसे ही अंदाजा होता, हल्के भारीपन का
एक जरूरी घटक बना मैं, तुम सबके जीवन का
(गुड़गांव से घमंडीलाल अग्रवाल)

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