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शर्मिंदगी और कांग्रेस दो अलग अलग चीजें हैं। हां, अपनी करतूतों से नैतिक पतन के नए प्रतिमान गढ़ने वाले लोगों का भरपूर सम्मान यहां होता है।
परिवार की यही रीत है।
अवैध सम्बन्धों को लेकर दो साल से ज्यादा की थुक्का-फजीहत के बाद जब पार्टी के सबसे पुराने नेता नारायण दत्त तिवारी ने रोहित शेखर को अपना बेटा माना उस वक्त उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी के चेहरे पर शर्मिंदगी की बजाय मासूमियत का अद्भुत भाव था। इससे पहले वे आन्ध्र प्रदेश के राजभवन को भी अपनी ऐसी ही ह्यमासूम करतूतोंह्ण से कलंकित कर चुके हैं और अपनी ऐसी ही छवि के साथ सदा पार्टी में पद और प्रतिष्ठा की सीढि़यां चढ़ते रहे हैं।
बहरहाल, बात कांग्रेस के एक अन्य दागी नाम की। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम राष्ट्रमंडल खेलों से पहले और बाद भी भ्रष्टाचार का समानार्थी रहा, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने उन्हें भी महामहिम के पद से विभूषित किया है।
वैसे, आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले केरल के राज्यपाल पद के लिए शीला दीक्षित के नाम पर मुहर लगाना उन्हें पार्टी की सेवा के लिए उपकृत करना मात्र नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के आरोपों से बचाने के लिए अग्रिम तौर पर संवैधानिक कवच उपलब्ध कराना भी है।
आंध्र प्रदेश प्रकरण की शर्मनाक घटना पर धूल डाले जैसे आज तिवारी निर्दोष नजर आते हैं, यदि कल शीला भी उसी तरह खेल घोटाले की छाया से भी दूर निश्छल मंद मुस्कान बिखेरती दिखें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। आखिर यही तो परिवार की रीत है।
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