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सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। इस पक्षी को ह्यक्रौंचह्ण के नाम से भी जानते हैं। भारत में इसकी सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। सबसे बड़ा पक्षी होने के अतिरिक्त इसकी कुछ अन्य विशेषताएं इसे महत्व देती हैं। उत्तर प्रदेश के इस राजकीय पक्षी को मुख्यत: गंगा के मैदानी भागों, भारत के उत्तरी, उत्तर पूर्वी और इसी प्रकार के समान जलवायु वाले अन्य भागों में देखा जा सकता है। भारत में पाये जाने वाला सारस पक्षी यहां के स्थाई प्रवासी होते हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं।
लाइनस के द्विपद नाम वर्गीकरण में इसे ग्रस एंटीगोन कहते हैं। वर्ग गुइफॉर्मस का यह सदस्य श्वेत-सलेटी रंग के परों से ढका होता है। कलगी पर की त्वचा चिकनी हरीतिमा लिए हुए होती है। ऊपरी गर्दन और सिर के हिस्सों पर गहरे लाल रंग की थोड़ी खुरदरी त्वचा होती है। कानों के स्थान पर सलेटी रंग के पंख होते हैं। इनका औसत भार 7.3 किलोग्राम तक होता है। इनकी लंबाई 176 से. मी. (5.6-6 फीट) तक हो सकती है। इनके पंखो का फैलाव 250 से. मी. (8.5 फीट) तक होता है। इस विराट शरीर के कारण सारस को धरती पर सबसे बड़े उड़ने वाले पक्षी की संज्ञा दी गई है। नर और मादा में ऐसा कोई अंतर देखने की दृष्टि से नहीं होता, लेकिन जोड़े में मादा को इसके अपेक्षाकृत छोटे शरीर के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है।
इस पक्षी को प्रेम और समर्पण का प्रतीक मानते हैं। यह पक्षी अपने जीवनकाल में मात्र एक बार जोड़ा बनाता है और फिर पूरे जीवन सारस युगल साथ रहते हैं। यदि किसी कारण से एक साथी की मृत्यु हो जाती है तो दूसरा बहुत सुस्त होकर खाना-पीना बंद कर देता है जिससे प्राय: उसकी मृत्यु तक हो जाती है। इस विशेषता के कारण सारस को विशेष सामाजिक स्थिति प्राप्त है। भारत के कुछ भागों में नवविवाहित युगल के लिए सारस युगल का दर्शन करना अनिवार्य होता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि वाल्मीकि जी ने रामायण लिखने का आरंभ सारस पक्षी के वर्णन से ही किया था। सारस पक्षी युगल में से एक की शिकारी द्वारा तीर से हत्या कर दी जाती है तो दूसरा अपने साथी के वियोग में वहीं तड़प कर प्राण त्याग देता है। इस घटना से द्रवित होकर महर्षि उस शिकारी को श्राप देते हैं और वही पंक्तियां रामायण के प्रथम श्लोक के रूप में लिपिबद्ध होती हैं। सारस युगल को पवित्र और सौभाग्यदायक पक्षी के रूप में मान्यता मिली हुई है और इस पक्षी का वर्णन लोक-कथाओं और लोक-गीतों में मिलता रहता है।
भारत में सारस पक्षियों की कुल संख्या लगभग 8 से 10 हजार तक है। वैश्विक स्तर पर इसकी संख्या में हो रही कमी को देखते हुए इसे संकटग्रस्त प्रजाति घोषित किया गया है। वैश्विक स्तर पर सारस की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। यदि इसकी सुरक्षा के समुचित उपाय नहीं किये गए तो वह दिन दूर नहीं कि जब यह प्रजाति विलुप्त तक हो जाएगी। यहां यह उल्लेखनीय है कि मलेशिया, फिलीपिन्स और थाइलैंड में सारस पक्षी की यह जाति पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी है। भारत में भी कथित रूप से विकसित स्थानों में से अधिकांश स्थानों पर सारस पक्षी विलुप्त हो चुके हैं।
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