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सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आया यूक्रेन इन दिनों विश्व मीडिया की सुर्खियों में है। यूक्रेन के मुद्दे पर रूस और अमरीका के बीच भी ठन गई है। अमरीका और यूरोपीय देश चाहते हैं कि यूक्रेन यूरोपीय संघ में शामिल हो,तो रूस उसे यूरेशियाई संघ का सदस्य बनाना चाहता है। बात जब हद पार कर गई तो अमरीका और रूस के बीच गर्मागर्म बहस और सैन्य कार्रवाई तक की बात होने लगी। अमरीकी दबाव के बावजूद रूस अपनी सेना यूक्रेन भेज चुका है। रूस की इस कार्रवाई से अमरीका भन्ना गया। उसने इस सम्बंध में पहले फ्रांस से बात की। फ्रांस की पहल पर ही इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए पेरिस में अमरीका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी के विदेश मंत्री मिले,पर इस समाचार के लिखे जाने तक इस मसले का कोई हल नहीं निकल पाया था। पश्चिमी देशों ने रूस पर दबाव डाला कि वह यूक्रेन से बात करे,पर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लैवरोव ने इसका विरोध किया। उन्होंने तो यूक्रेन के विदेश मंत्री एर्डिए देशच्येत्स्या से मिलने से भी इनकार कर दिया। रूस के इस रुख को देखते हुए अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से बात की है। अमरीका और उसके सहयोगी देशों का मानना है कि यूक्रेन पर रूस की कार्रवाई यूक्रेन की सम्प्रभुता का उल्लंघन है।
यूक्रेन संकट को समझने के लिए लगभग डेढ़ महीना पीछे जाना होगा। फरवरी महीने में जब रूस के राष्ट्रपति अपने देश में शीतकालीन ओलम्पिक खेलों को ऐतिहासिक बनाने में जुटे थे, तभी अमरीका और उसके सहयोगी यूरोपीय देश यूक्रेन में यूरोप समर्थक सरकार बनाने का ताना-बाना बुन रहे थे। अमरीका और उसके सहयोगी देशों के इशारे पर ही यूक्रेन की राजधानी कीव में तरह-तरह के प्रदर्शनकारी जमे हुए थे। इनकी मांग थी कि रूस समर्थक यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को हटाओ। इन प्रदर्शनकारियों ने स्थिति ऐसी बना दी कि विक्टर यानुकोविच को पद छोड़कर रूस में शरण लेनी पड़ी।
अब यूक्रेन में यूरोप और अमरीका समर्थक सरकार है। एलेक्जेंडर तुर्चीनोव कार्यवाहक राष्ट्रप�%
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