विस्थापन की पीड़ा का करुण चित्रण
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विस्थापन की पीड़ा का करुण चित्रण

by
Mar 3, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Mar 2014 13:01:39

विस्थापन शब्द अपने आप में एक ऐसा शब्द है,जिसे सोचने मात्र से ही शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जब किसी बच्चे को उसकी मां से जबरन दूर किया जाता है तो उसके ह्दय में जो पीड़ा और व्याकुलता होती है ठीक वही पीड़ा भारत में प्रत्येक वर्ष नई परियोजनाओं के नाम पर लोगों को स्थानांतरित कर उनकी पैदाइशी जमीन से खदेड़ कर दी जाती है। ये वही लोग होते हैं,जिन्होंेने बरसों से अपनी उपजाऊ जमीन को जिया और जोता,वहीं पूरे जीवन को गुजार दिया लेकिन अब उम्र के इस पड़ाव पर निष्कासन के दंश से समझौता कैसे कर सकते हैं,यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है? देश में अलग-अलग क्षेत्रों में बेशुमार परियोजनाओं ने ह्यबहुत बड़े सार्वजनिक कल्याणह्ण या ह्यराष्ट्रीय हितह्ण के नाम पर सरकारों ने ग्रामीणों और वनवासियों को उनकी सम्पत्ति जल,जगंल और जमीन के नाम पर निराश्रित किया । परियोजनाओं के बनने के बाद इन लाखों निराश्रित लोगों का जीवन कैसे चलेगा,यह लोग कहां रहेंगे सहित तमाम सवाल गर्त में दब जाते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक 'यहां एक गांव था' लेखक जयदीप हर्डीकर की ऐसी ही पुस्तक है,जिसमें विस्थापन के दर्द से कराहते परिवार व उन लाखों सामान्य लोगों के जीवन की दयनीय दशा-दुर्दशा है,जो आये दिन भारत में विकास परियोजनाओं के नाम पर खदेड़ दिये जाते हैं। अध्याय 'अतीत का आज' में लेखक महाराष्ट्र के नागपुर से कोई 120 कि.मी. दूरी पर भंडारा जिले के पवनी कस्बे के पास के गांव की चर्चा करते हैं, जहां प्रदेश सरकार ने स्थानीय लोगों की चिन्ता न करके गोसीखुर्द बांध की स्थापना कर दी। स्थानीय लोगों के विरोध के बाद भी सरकार ने हठ के चलते बांध बनाया । बंाध बनने का परिणाम यह हुआ कि बांध के पानी ने पूरे गांव को जलमग्न कर दिया। पानी ने अपने साथ पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया और सब कुछ तबाह कर दिया। उसके बाद जो हालात वहां के लोगों पर गुजरे उसे देखकर ह्दय व्याकुल हो जाता है। विस्थापितों के जत्थे अपने मूल गांव के उजड़ जाने से पुनर्वास बस्तियों में जाने को बाध्य हो रहे हैं,जहां मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन को स्थापित करना असंभव सा प्रतीतहोता है।

विस्थापितों की पीड़ा को शब्दरूप देते हुए अमरीकी मानवविज्ञानी थेयर स्कडर ने कहा है कि ह्यहत्या के अलावा अगर आप किसी एक व्यक्ति का सर्वाधिक बुरा कुछ कर सकते हैं तो वह है उसे विस्थापित कर देना।ह्ण यह बात भारत में भूमि अधिग्रहण के नाम पर सटीक बैठती है। हमारे प्रदेश में किसी की भी सरकार हो,किसी की भी सत्ता हो, लेकिन भूमि अधिग्रहण की बात आते ही सरकारें प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी करना,उनके विरोध क ो येनकेन-प्रकारेण कुचलना और जान से मार देने में भी बिल्कुल भी न हिचकना। यह आम बात है। ऐसा ही एक वाक्या इतिहास के पन्नों में दफन है । अध्याय ह्यजान दे देंगे,जमीन नहीं छोड़ेंगेह्ण में लेखक ने लिखा है कि फरवरी,2001 में झारखंड सरकार ने स्थानीय पुलिस को आदेश देकर 5000 वनवासियों पर गोलियां चलवाईं,जिसमें कुल 10 लोगों की मौतें हुई। लेकिन बात सिर्फ इतनी थी कि कुछ पुलिसवालों ने एक परियोजना के विरोध में लगे बोर्ड को तोड़ दिया,जिससे बात इतनी बिगड़ी कि पुलिस ने अपनी गोलियों से 10 लोगों की जानें ले लीं। देश में ऐसे उदाहरणों की कमीं नहीं है,जब प्रदर्शनकारियों पर गोलियों की बौछार की गई हो। 'कुछ बनाम कई या कई बनाम कुछ' अध्याय में लेखक ने सरकार की विस्थापन नीतियों पर कटाक्ष करते हुए लिखा है कि कुछ सरकारों के लिए गोल्फ कोर्स,कार दौड़ाने के लिए बड़े-बड़े मैदान राष्ट्रहित का विषय हो सकते हैं,लेकिन सवाल यह है कि जहां लाखों लोगों को खेल के मैदान तो नसीब होना दूर की बात है,भोजन,पानी और मकान तकआज एक सपना बने हुए हैं?

कुल मिलाकर लेखक द्वारा 22 अध्यायों में देश के अलग-अलग क्षेत्रों में विस्थापन का शिकार हुए लोगों की आवाज में जो दर्द है को शब्द रूप देकर पुस्तक को जीवन्त कर दिया है। विस्थापन के विषय में व उनकी पीड़ा को समझने में यह पुस्तक कारगर साबित हो सकती है।

 

पुस्तक का नाम – श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य

लेखक – त्रिलोकचंद्र सेठ

प्रकाशक – हिन्दी साहित्य सदन

10/54, देशबन्धु गुप्ता रोड

नई दिल्ली-110005

मूल्य -220 रु., पृष्ठ – 264

 

गीता का चिंतन परक विश्लेषण

श्रीमद्भगवद्गीता असत्य से सत्य की ओर,अकर्म से कर्म की ओर,दु:ख से कल्याण की ओर,अधर्म से धर्म की ओर चलने का ज्ञान देने वाला दिव्य कल्याणकारी ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ का अध्ययन कर समस्त संसार के लोग भक्ति व कर्म की प्रेरणा प्राप्त कर अपना मानव जीवन सफल बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। संपूर्ण विश्व में यह ऐसा पहला ग्रन्थ है,जो स्वयं भगवान के श्रीमुख से उच्चारित है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें समाहित ज्ञान किसी एक धर्म विशेष के लिए न होकर संपूर्ण मानवजाति के कल्याण के लिए है। मनुष्य को जन्म से लेकर मृत्यु तक विभिन्न शिक्षाओं के ज्ञान का समावेश है। देश ही नहीं संपूर्ण विश्व में इस ग्रन्थ की ख्याति है। इसके प्रथम अध्याय में विषाद योग से लेकर अन्तिम अठारवे अध्याय में मोक्ष व संन्यास के मार्ग की शिक्षा ने समस्त संसार को आलोकित किया है। इस शास्त्र का मुख्य प्रतिपादन विषय- कर्म,उपासना और ज्ञान है साथ ही इसके अतिरिक्त समाज में आज जितनी भी समस्यायें व्याप्त हैं उन सभी का समाधान भी इसमें वर्णित है। इसी महान विलक्षणता के कारण गीता का संसार की सर्वाधिक भाषाओं में प्रकाशन हुआ है। देश-विदेश के शीर्षस्थ विद्वानों ने गीता के महत्व का प्रतिपादन कर इसे सर्वश्रेष्ठ ज्ञान का भंडार माना है।

पुस्तक ह्यश्रीमद्भगवद्गीता रहस्यह्ण लेखक त्रिलोकचन्द्र सेठ की ऐसी ही पुस्तक है, जिसमें श्रीमदभगवद्गीता की विशिष्टता व उसके अनेक रहस्यों से परिचित कराते हुए 18 अध्यायों के अंक में 700 श्लोकों वाले इस दिव्य ज्ञान को क्रमश: संकलित किया गया है।

पुस्तक के अध्याय ह्यसांख्य योगह्ण में भगवान श्रीकृष्ण महाभारत में अर्जुन के माध्यम से समस्त संसार कोे उपदेश देते हैं कि जिस व्यक्ति का जो भी कर्म है वह उसे पूरे मन,वचन से पूर्ण करे क्योंकि उसका कर्म ही उसका प्रमुख धर्म है। महाभारत के युद्ध के समय जब स्वजनों के मोह के चलते अर्जुन कर्तव्यपथ से विमुख हो गए तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें ज्ञान से परिचित कराते हुए एक श्लोक में कहा –

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि ।

धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते।।

आत्मा अजर अमर है,उसका कभी भी नाश नहीं होता है। अस्त्र,जल,वायु और आग उसे प्रभावित नहीं कर सकती । जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। अत: मरने वाले का शोक छोड़कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करो। तुम क्षत्रिय हो और इस समय युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य तुम्हारेए नहीं है।

वर्तमान में भगवान के निराकार और साकार रूप को लेकर मतभेद आते रहते हैं परन्तु गीता में श्रीकृष्ण ने 'भक्ति योग' अध्याय में स्पष्ट रूप से उसका निराकरण करके दोनों के द्वारा भगवद् प्राप्तिबताई है।

क्लेशोऽधिक्तरस्तेषामत्यक्तासक्तचेतसाम्।

अत्यक्ता हि गतिर्द:खं देह वद्धिरपाप्यते।।

कि निराकार ब्रहम में आसक्तचित्त वाले पुरुषों के साधन में परिश्रम विशेष है क्योंकि जिसमें देहाभिमान है उसके द्वारा निराकार ब्रहम की उपासना बेहद कठिन हो जाती है। अत: हमारी सगुण उपासना करो । साथ ही भगवान ने अपने भक्तों से स्पष्ट शब्दों में सगुण रूप का एक उदाहरण देते हुए कहा है कि हमें प्रेम से आप जो भी अर्पित करेंगे उसे मैं अवश्य ही ग्रहण करूंगा।

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो में भक्तत्या प्रयच्छति ।

तदहं भक्त्युपह्रतमशनामि प्रयतात्मन:।।

जो भी भक्त सुगमतापूर्वक पत्र-तुलसीदल,पुष्प, फल इत्यादि मुझे प्रेम से अर्पण करता है। उस निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ पत्र,पुष्प,फल सगुण रूप में प्रकट होकर प्रीत सहित खाता हंू।

आज के समय अनेक लोगों द्वारा कुछ तथाकथित व्यक्तियों को भगवान की उपाधि से विभूषित कर उनको स्वयं भगवान के समतुल्य स्थान पर विराजमान किया गया है,जो कि सर्वथा गलत है। ह्यराजविद्या योगह्णअध्याय में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा –

येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता:।

तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।।

हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! जो अन्य देवताओं के भक्त हैं तथा श्रद्धा से युक्त होकर उनका पूजन करते हैं वे भी वास्तव में मेरा ही पूजन करते हैं। परन्तु उनका यजन- पूजन अविधिपूर्वक है। साथ ही भगवान अपनों भक्तों के प्रेम से इतने प्रेमातीत हैं कि उन्होंने स्पष्ट शब्दों में घोषणा करके उनका उत्तरदायित्व स्वयं अपने ऊपर ले लिया है –

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।

तेषा नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।

जो भी भक्त अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हैं अर्थात जिन्होंने अन्य आश्रयों को त्याग कर सिर्फ मेरी ही उपासना में लीन रहते हैं । ऐसे समर्पित भक्तों का उत्तरदायित्व मैं अपने ऊपर स्वयं ले लेता हूं। भक्तों को ऐसा आश्वासन देकर श्री प्रभु ने पूर्ण अभय प्रदान कर दिया है। श्रीमद्भगवद्गीता मानव जाति के प्रत्येक व्यक्ति को जीवन पथ पर चलने का सदमार्ग बताती है। यह ऐसा पक्व फल है,जिसको पढ़कर विचारशील नर-नारी अपने जीवन को कृतार्थ कर सकते हैं।

– अश्वनी कुमार मिश्र

 

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लेखक – त्रिलोकचंद्र सेठ

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