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-विष्णुगुप्त-
इस्लामी देशों में ह्यऐतिहासिक धरोहरोंह्ण को संरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती है। एक तरफ कट्टरवादी ऐतिहासिक धरोहरों को गैर-इस्लामिक मान कर उसके विध्वंस के लिए सक्रिय होते हैं,वहीं दूसरी ओर इस्लामिक सत्ता भी ह्यऐतिहासिक धरोहरोंह्ण को कट्टरवादियों के प्रहार और अतिक्रमण से बचाने के लिए कोई चाकचौबंद व्यवस्था नहीं करती है। अफगानिस्तान में दुनिया देख चुकी है कि कैसे अफगानिस्तान की तत्कालीन तालिबान सरकार ने बामियान स्थित महात्मा बुद्घ की अति प्राचीन धरोहरों को बम-बारूद लगाकर उड़ा दिया था। अब पाकिस्तान में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। वहां हिन्दू-सिख धरोहरों को या तो नष्ट किया जा चुका है या फिर उसे अतिक्रमण का पर्याय बना दिया गया है।
अभी हाल ही में विश्व मीडिया में मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी सभ्यता और तक्षशिला से संबंधित धरोहरों की दयनीय स्थिति की जो खबरंे आई हैं वह बताती हैं कि मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी की सभ्यता और तक्षशिला की निशानियां विध्वंस के करीब पहुंच गई हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में विश्व विख्यात कई मंदिर और कई गुरुद्वारे पहले ही अस्तित्वविहीन हो चुके हैं। अब मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी व तक्षशिला की सभ्यता व निशानियों को मनोरंजन पार्क में तब्दील करने की बात चल रही है। अतिक्रमण और आवासीय-व्यापारिक गतिविधियां भी रुकी नहीं हैं।
मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी और तक्षशिला की सभ्यता को यूनेस्को ने 1980 में विश्व धरोहर घोषित किया था। इस धरोहर को संरक्षित करने के लिए यूनेस्को ने पाकिस्तान सरकार को 80 लाख डॉलर के रूप भारी-भरकम राशि भी दी थी,किन्तु इस दिशा में पाकिस्तान ने कोई काम नहीं किया। यूनेस्को से मिले 80 लाख डॉलर का पाकिस्तान ने दुरुपयोग ही किया है। संरक्षण से संबंधित कोई चाकचौबंद व्यवस्था खड़ी नहीं हुई है। अभी हाल ही में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हाईकोर्ट ने मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी सभ्यता के निकट किसी भी कार्यक्रम या उत्सव पर रोक लगाने के लिए कहा था। अदालती आदेश के बाद भी मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों के निकट उत्सव आयोजित हो रहे हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के निकट ही सिंधु उत्सव हर साल आयोजित होता है। सिंधु उत्सव आयोजित होने से कई प्रकार के प्रदूषण होते हैं और उन प्रदूषणों से धरोहरों की चमक फीकी होती है। मोहनजोदड़ो-सिधु घाटी सभ्यता और तक्षशिला की सभ्यता-धरोहर दुनिया के लिए अमूल्य संपत्ति है। पुरातन ज्ञान और कला का भंडार है। नगरीय विकास का बेजोड़ अनुकरणीय नमूना भी है। पुरातत्व विशेषज्ञों का मानना है कि ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता का विकास हुआ था। सिंधु नदी के निकट विकसित हुई सभ्यता अपने कार्यकाल मे सर्वश्रेष्ठ थी। ईटों से बने भवन न केवल सुंदर हैं, बल्कि मजबूत और सुरक्षित भी हैं। आज विश्व के महानगरों-नगरों में जहां नागरिक सुविधाएं सीमित हैं, दयनीय हैं पर सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष यह प्रमाणित करते हैं कि उस सभ्यता के अंदर सभी प्रकार की नागरिक सुविधाएं उपलब्ध थीं। सार्वजनिक स्नान घर, सार्वजनिक विश्राम घर, सड़क, कुंए सहित सभी जरूरी सुविधाएं मौजूद थीं। खासकर पानी निकासी के लिए व्यवस्थित नालियां थीं। मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी की सभ्यता यह बताती है कि उस काल में लोग अति संपन्न थे, विज्ञान के आविष्कार से दूर होने के बाद भी वह सभ्यता अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्घ थी। आज के शासकों को मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों से शिक्षा लेनी चाहिए। उस काल के शासक अपने नगर-महानगर हेतु सभी समुचित सुविधाओं के विकास के लिए कटिबद्ध थे। लेकिन आज के शासक अपने नगर-महानगरों में रहने वाली आबादी के लिए समुचित और व्यवस्थित सुविधाएं देने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं? तक्षशिला की सभ्यता ज्ञान के लिए प्रसिद्ध है। नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला में एक साथ बीस-बीस हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। मुगलिया आक्रमणकर्ताओं ने इन तीनों विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों को न केवल लूटा था,बल्कि जलाया भी था। हमारे देश में नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला की ज्ञान संस्कृति को फिर से कायम करने का अभियान चला है। सुखद बात यह है कि बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय को सहेजने और विकसित करने के सरकारी प्रयास
हुए हैं।
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