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-मुजफ्फर हुसैन-
दुनिया का यह अनुभव है कि जो दूसरों के लिये कांटे बोता है उस के लिये भी एक दिन कोई कांटे बोने वाला मिल जाता है। यदि यह आन्दोलन सफल हो गया तो एक दिन ग्रेट ब्रिटेन ग्रेट नहीं रहने वाला है। हम जब अखंड भारत कहते हैं तो अनेक लोगों को यह शब्द बुर्जुआ लगता है। उसमें अनेक लोगों को पांथिक दुर्गंध आती है। किन्तु यही लोग अमरीका के साथ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमरीका और इंग्लैंड को यूनाइटेड किंगडम कहते हुए फूले नहीं समाते। हमारा भारत भी कभी अखंड था इसलिए खंडित होने का दर्द जिनके मन में है वे अब भी उस से दु:खी रहते हैं। देशों का बनना और टूटना आदि काल से चला आ रहा है। लेकिन यूरोपियन सत्ताधीशों ने साम्राज्य स्थापित करने के लिये अनेक देश तोड़े। तब से यह कहा जाने लगा कि जिस किसी को भी कमजोर करना हो तो उसे विभाजित कर दो। यूरोपियन सत्ताधीशों ने इसे ब्रह्म वाक्य मानकर जिस देश को उन्हें छोड़ना पड़ा उसके दो टुकड़े कर दिये। अंग्रेजों ने अमरीका छोड़ा तो क नाडा बनाया। दो यमन बन गए, दो वियतनाम और दो कोरिया बन गए। चीन से लगे इराक-ईरान तक के अनेक भागों को जोड़ा और तोड़ा। यूरोप भी इस आंधी से दूर नहीं रह सका। भारत के तो इतने टुकड़े किये मानो इस देश को उनके बाप -दादा ने पट्टे पर ले लिया था। लेकिन इन साम्राज्यावादियों ने समय आने पर अनेक देशों का एक-दूसरे में विलय भी कर दिया। जैसे सोवियत रूस ने एशिया के 6 मुस्लिम राष्ट्र कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि को अपने में मिला लिया था जो रूस के टूटने पर 1992-93 में दोबारा स्वतंत्र हो गए। नॉर्वे और स्वीडन को स्केनडेनेविया बना दिया और छोटे-छोटे द्वीप मिलकर ग्रेट ब्रिटेन बन गया। यानी अपने तोड़ने और जोड़ने को इन राजनीतिज्ञों ने अपनी सत्ता का खेल बना लिया। देश जब टूटता है तो उसके साथ उसका केवल भू-भाग ही नहीं टूटता बल्कि उसकी संस्कृति, धर्म व्यवस्था और यहां तक कि उसमें रहने वाला इंसान भी तन और मन से टूट जाता है। यही कारण है कि भारत को विभाजित हुए 66 वर्ष बीत गए हैं लेकिन हमारी संस्कृति के धागे अलग हुए भागों को अब तक मिला नहीं पाए हैं। भारत को राजनीतिक रूप से देखने वाले जमीन का टुकड़ा समझते हैं लेकिन सच बात यह है कि हमारे लिये आज भी वह भारत माता है, इसलिये हम उसका टूटना भला किस प्रकार स्वीकार कर सकते हैं? चूंकि अब ग्रेट ब्रिटेन के टूटने का आन्दोलन चल पड़ा है इसलिये वहां के लोग यह समझने लगे हैं कि एक देश के टूटने की पीड़ा कितनी दर्दनाक होती है। सारांश में तोड़ना और जोड़ना राजनीति का खेल रहा है।
हमारी दुनिया छोटे-बड़े द्वीपों से ही बनी है। जब कुछ द्वीप जुड़ गए तो देश बन गए और अनेक जुड़ गए तो महाद्वीप बन गए। हम जब ग्रेट ब्रिटेन का चित्र देखते हैं तो उसमें स्काटलैंड नाम का एक बड़ा द्वीप दिखलाई पड़ता है। यही वह भाग है जिसने इंग्लैंड से अलग होने का झंठा उठाया है। वहां के लोगों का कहना है कि इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था बीमार है। उसकी अर्थव्यवस्था में स्काटलैंड का ही अधिक से अधिक आर्थिक योगदान है। सम्पूर्ण ग्रेट ब्रिटेन उससे लाभांवित होता है, लेकिन स्काटलैंड का व्यक्ति दिन -प्रतिदिन गरीब होता जा रहा है। इसलिये समय रहते हमें ग्रेट ब्रिटेन से अलग हो जाना चाहिये। एक समय था कि ब्रिटिश राज में जिस किसी ने उनसे अलग होने का आन्दोलन चलाया तो उसे बड़ी कू्ररता से कुचल दिया जाता था। अंग्रेजों ने इतनी लम्बी-चौड़ी दुनिया पर राज किया। यह कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता। लेकिन स्काटलैंड ने ज्यों ही स्वतंत्रता की मांग की कि लंदन में बैठी एलीजाबेथ की सरकार हिल गई। विक्टोरिया का ताज तो बहुत पहले ही उतर गया था, अब वहां जो भी शाही परिवार की गरिमा बची थी, वह भी अब धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। स्काटलैंड यदि स्वतंत्र हो गया तो एक दिन इंग्लैंड फिर से मछली मारने वालों का टापू बन कर रह जाएगा।
लंदन से प्रकाशित अखबारों का जायजा लें तो मीडिया के अनुसार यह स्काटलैंड वालों का पागलपन ही होगा। आज उन्हें एक शक्ति के रूप में दुनिया स्वीकार करती है तो केवल इसलिये कि वे ग्रेट ब्रिटेन से जुड़े हुए हैं। ब्रिटेन के साथ ब्रिटिश शब्द भी जाएगा और दुनिया में उनका जो वैभव है वह भी चला जाएगा। लेकिन स्काटलैंड वासियों का कहना है कि उनके लिये चाहे जिस शब्द का प्रयोग करें हमें तो अपने क्षेत्र की आर्थिक प्रगति करनी है। हमारे पांवों में आर्थिक बेडि़यां पड़ी हंै केवल राजशाही की चमक -दमक में यह बोझ अब सहन नहीं हो सकता है। स्काटलैंड वालों का कहना है कि वर्तमान समय आर्थिक विकास और प्रगति का है। हम इंग्लैंड का बोझ कब तक ढोते रहेंगे? इसलिये समय आ गया है कि इसे उतार फेंके और दुनिया के साथ प्रगति की दिशा में कदम बढ़ाएं। लंदन का मीडिया इसे पागलपन की उपमा दे रहा है। अब तक ब्रिटिश सरकार से केवल बातचीत हो रही थी। उन्होंने पहले तो इसे अवैधानिक माना, लेकिन स्काटलैंड के लोगों ने जब अपने पुराने दस्तावेज पेश किये तो संसद में बहस शुरू हो गई।
इस उग्र बातचीत का परिणाम यह आया कि ब्रिटिश सरकार जनमत जानने के लिये तैयार हो गई। जनमत की बात शुरू हुई तो स्काटिश नागरिकों के विचार और प्रतिक्रिया से स्थानीय अखबार पट गए। स्काटिश नागरिक अब यह कहने लगे हैं कि इंग्लैंड के साथ हमारा विलय नहीं था बल्कि यह तो हमारे देश पर उसका अवैध कब्जा था। जिन दिनों इंग्लैंड दुनिया में एक महान शक्ति था उस समय उन्होंने हमारी आजादी को छीन लिया। लेकिन अब हम हर कीमत पर अपना स्काटलैंड लेकर ही रहेंगे। चार सप्ताह पूर्व इंग्लैंड की संसद ने यह स्वीकार किया है कि सितम्बर 2014 से स्काटलैंड में जनमत प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाएगी। इसकी अंतिम सीमा 2016 होगी। इस समय तक यदि स्काटिश जनता हर स्थित में अपना भाग वर्तमान से अलग-थलग करना चाहती है तो इस पर वहां की संसद विचार करेगी। इस सम्बंध में जितने भी सवाल उठाए गए हैं उनका उत्तर वर्तमान सरकार द्वारा 670 पृष्ठों की रपट में दिया है। कुछ मामले तो ऐसे हैं जिनका उत्तर ब्रिटिश संसद के लिये भी देना कठिन होगा। स्काटलैंड स्वतंत्र हुआ तो क्या वह अपनी नई मुद्रा जारी करेगा? मामला केवल मुद्रा का नहीं उठेगा बल्कि उससे भी गम्भीर मामला तो सेना और सुरक्षा का होगा। स्काटिश जनता अब किसी कीमत पर इंग्लैंड के साथ अपने को जोड़े नहीं रखना चाहती है। उनका कहना है कि अब और अधिक शोषण हम सहन नहीं करेंगे।
संडे टाइम्स में प्रकाशित समाचार कुछ और ही बात कहते हैं। नवम्बर 2013 तक 38 प्रतिशत स्काटिश ने स्वतंत्र देश के लिए वोट दिये थे। लेकिन स्काटलैंड की स्वतंत्रता के समर्थकों का कहना है कि अभी तो बहुत समय शेष है। ब्रिटिश इतिहास में स्केटस एवं एंग्लिकंस के बीच युद्ध होते रहे हैं। ऐसे संघर्ष कोई दो-चार बार नही ं बल्कि 40 से भी अधिक बार हुए हैं। एंग्लोसेक्सन युद्ध की याद अब भी लोगों के दिलो-दिमाग में ताजा है। दुनिया के इतिहास में ऐसे अनेक दृष्टांत मौजूद हैं जब राष्ट्र कमजोर होता है तो उसके अनेक टुकड़े होने लगते हैं। कौन जानता था कि भारत में मुगल साम्राज्य सदा सर्वदा के लिये मिट जाएगा। ईस्ट इंडिया कम्पनी का राज ब्रिटिश साम्राज्य बन जाएगा और फिर एक दिन भारत से विदा भी हो जाएगा। क्रूसेड वान ने पंथ सत्ता को रसातल में पहुंचा दिया और स्वेज नहर के लिये लड़ी गई जंग ने एशिया और अफ्रीका के विशाल भाग से ब्रिटिश सत्ता को बाय-बाय कर दिया। यूनाइटेड किंगडम जो ग्रेट ब्रिटेन की छत्री के तले है आज उसमें इंग्लैंड, वेल्स और स्काटलैंड के साथ उत्तर आयरलैंड शामिल है, यदि उसका कोई एक भाग टूटता है तो भविष्य में अनेक भाग अलग नहीं होंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है? क्योंकि इसके पश्चात यूनाइटेड किंगडम का न कोई अस्तित्व रहेगा और न ही उसकी हैसियत? आज तो राष्ट्रसंघ में उसके पास वीटो है इसलिये दुनिया में वह महाशक्ति के रूप में पहचाना जाता है। स्काटलैंड के अलग होते ही उसकी उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। ग्रेट ब्रिटेन का विभाजन अन्य देशों का विभाजन शुरू करने वाली पहल होगी। इससे राजनीति स्थिरता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। भारत, पाकिस्तान, चीन ही नहीं बल्कि यूरोप और अमरीका के अनेक देश टूटने के कगार पर पहुंच जाएंगे। पाकिस्तान में ब्लूचिस्तान को अलग होने में समय नहीं लगेगा। भारत के पूर्व में भी अलगाववादी शक्तियां अपना राग अलापना शुरू कर देंगी।
ब्रिटेन के सामने सबसे बड़ा सवाल ईंधन का होगा। क्योंकि आज तो ब्रिटेन को 90 प्रतिशत ऊर्जा की पूर्ति स्काटलैंड ही करता है। आज जो स्काटलैंड ब्रिटेन के अधीन है वही आने वाले समय में स्काटलैंड के अधीन हो जाए तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। प्रथम और द्वितीय महायुद्ध के समय अनेक ताकतों ने ग्रेट ब्रिटेन को तोड़ने के भरकस प्रयास किये थे लेकिन उस समय किसी का बस नहीं चला। राजनीतिक सत्ताएं इस मामले में असफल रहीं। लेकिन आज का युग अर्थव्यवस्था का युग है। अपने यहां जो कुछ प्रकृति ने दिया है उसका वे अधिकतम लाभ उठाना चाहते हैं। इसलिये आर्थिक मजबूरियां एक बार फिर से देशों को तोड़ने और जोड़ने के लिय बाध्य हो रही हैं। भारत और पाकिस्तान राजनीतिक आधार पर एक-दूसरे से अलग हो गए। भारत को हमेशा नेस्तोनाबूद करने की आशंका सजाए रहने वाले पाकिस्तान के मन में अब यह विचार आने लगा है कि यदि किसी देश का भू-भाग हम जीत भी लें और उसका आर्थिक विकास न कर सकें तो फिर हमें क्या लाभ होने वाला है। इसलिये आज तो अपने देश में आर्थिक विकास के लिये दुनिया नए समीकरण बनाने की ओर अग्रसर है। इसलिये भारत-पाक फिर से एक हो जाएं तो आश्चर्य नहीं करना चाहिये। बंगलादेश में तो ऐसे प्रवाह लम्बे समय से जारी हैं। इसलिये अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण जो सत्ताधारियों ने इन दो देशों को अलग किया वे आने वाले दिनों में उन्हें एक होता देखें तो आश्चर्य की बात नहीं। साथ ही जिस ग्रेट ब्रिटेन ने अपनी एकता और दृढ़ता के लिये अनेक देशों को तोड़ा वह अब अपने ही एक प्रदेश की अंगड़ाई से स्वयं टूट जाए तो यह नई अर्थव्यवस्था का चमत्कार होगा
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