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पिछले दिनों भारत में अमरीकी राजदूत नैन्सी पॉवेल ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से गांधीनगर में भेंट की थी। इसका असर अब दिखना शुरू हो गया है। अमरीकी संसद में प्रस्तुत मोदी विरोधी प्रस्ताव-417 से वहां के सांसद दूर होने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि इस प्रस्ताव में नरेन्द्र मोदी को वीजा नहीं देने की नीति बरकरार रखने की बात कही गई है। इस प्रस्ताव के सह प्रायोजक और पेंसिलवानिया से रिपब्लिकन सांसद स्कॉट पेरी ने अपने आपको इससे अलग कर लिया है। इस प्रस्ताव से कुछ समय पूर्व एक अन्य सांसद स्टीव चबोट ने भी अपने को अलग कर लिया था। ये दोनों सांसद अमरीकी विदेश मामलों की समिति के सदस्य भी हैं। इस लिहाज से इन दोनों सांसदों का मोदी विरोधी प्रस्ताव से बाहर होना मोदी के पक्ष में जाता है। यहां यह भी जानने लायक बात है कि मोदी विरोधी इस प्रस्ताव के विरोध में हिन्दू अमरीकी फाउंडेशन काफी समय से अभियान चला रहा है। कई लोगों का मानना है कि भारत ही नहीं,दुनियाभर में मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण ही अमरीकी सांसदों का रवैया नरेन्द्र मोदी के प्रति बदल रहा है।
कतर में दो साल में 500 भारतीयों की मौत
पश्चिम एशियाई देश कतर में पिछले दो साल में 500 भारतीयों की मौत हो गई है। मौत का यह आंकड़ा पहली बार जारी किया गया है। कतर वर्ष 2022 में फुटबाल विश्वकप की मेजबानी करेगा। उसी को लेकर जारी तैयारियों में वहां पर भारतीय अप्रवासी मजदूर लगे हैं। दोहा स्थित भारतीय दूतावास के अनुसार 2012 में 237 तथा 2013 में 241 भारतीय कामगारों की मौत हुई है। इस साल जनवरी माह तक 24 लोगों की मौत हो चुकी है। भारतीय दूतावास ने मृतकों की संख्या की पुष्टि ब्रिटिश अखबार ह्यगार्जियनह्ण में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद की है। इसके अनुसार चार साल में यह संख्या 974 तक पहुंच गई है। दूतावास ने मृतकों की संख्या तो बताई है, लेकिन मौत की परिस्थितियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने गार्जियन में छपी रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। बताया गया है कि कतर में लगभग पांच लाख भारतीय रहते हैं।
पाकिस्तानी रईस खरीद रहे हैं 'सुरक्षा'
पाकिस्तान में आए दिन हो रहे बम विस्फोटों और हमलों से बड़ी संख्या में लोग मारे जा रहे हैं। सरकार लोगों को सुरक्षा देने में पूरी तरह विफल हो रही है। इससे वहां के लोग सुरक्षा को लेकर काफी चिन्तित हैं। जो अपनी सुरक्षा के साधन नहीं खरीद पा रहे हैं वे बेमौत मर रहे हैं,वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान का रईस वर्ग अपनी सुरक्षा खुद करने के लिए महंगे सुरक्षा उपकरण खरीद रहे हैं। यह वर्ग इन दिनों बख्तरबन्द गाडि़यां खूब खरीद रहा है। उद्देश्य है बम विस्फोटों और गोलियों से अपना बचाव करना। बख्तरबन्द गाडि़यों का निर्माण करने वाली अंतरराष्ट्रीय कम्पनी ह्यस्टेट ग्रुपह्ण का कहना है कि पिछले दो-तीन वर्षों में उसके व्यवसाय में काफी उछाल आया है। उसकी कराची इकाई को हर महीने कम से कम 5 गाडि़यों की मांग आ रही है। इन बख्तरबन्द गाडि़यों का इस्तेमाल बड़े नेता,व्यवसाई,आला अधिकारी जैसे लोग कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि बख्तरबन्द गाडि़यां बहुत ही महंगी आती हैं। एक गाड़ी की कीमत एक करोड़ से भी अधिक पड़ती है। ऐसी गाडि़यां खरीदने से पहले पाकिस्तानी गृह मंत्रालय से प्रमाणपत्र लेना पड़ता है।
विश्वव्यापी होती कट्टर मजहबी हिंसा
पिछले दिनों सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक देश में मुस्लिम आबादी को खदेड़ने के लिए सरेआम हिंसा का सहारा लिया गया। इस कारण करीब पचास हजार से अधिक मुसलमानों को पलायन कर पड़ोसी देश कैमरून और चाड में शरण लेनी पड़ी। सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक एक छोटा और अति निर्धन देश है। यहां इस्लाम और ईसाई मत के लोग ही मुख्य रूप से रहते हंै। दूसरे मत-पंथों के लोगों की संख्या बहुत ही कम है। दुनियाभर में यह सवाल उठा कि आखिर क्या कारण है कि वहां के ईसाई और अन्य मत-पंथों के लोग मुस्लिमों पर टूट पड़े? जब इस पर गौर किया गया तो कई बातें निकल कर आईं। एक बात यह आई कि वहां के मुस्लिम काफी समय से यह मांग कर रहे हैं कि उन्हें शरियत आधारित देश और सरकार चाहिए। कुछ समय पहले मुस्लिम आतंकवादी संगठन 'सेलेका' ने हिंसा की बदौलत वहां की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। सेलेका ने सत्ता पर कब्जा करने के बाद ईसाई समुदाय पर भयंकर हिंसा बरपायी थी। धीरे-धीरे ईसाई समुदाय भी संगठित हुआ और सेलेका नेता माइकल जोटोडि़या की सरकार को चुनौती दी। इसके बाद वहां गृहयुद्घ छिड़ गया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हस्तक्षेप के बाद भी स्थितियां नहीं सुधरीं। अन्त में माइकल जोटोडि़या को पद से इस्तीफा देना पड़ा। ह्यसेलेका ह्य को स्थानीय मुस्लिमों का समर्थन प्राप्त है। ऐसी स्थिति केवल सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में ही नहीं है। सोमालिया, केन्या, नाइजीरिया, सूडान, सेनेगल, इथोपिया सहित कई देशों में कट्टर मजहबी हिंसा ने गृहयुद्घ की स्थितियां खड़ी कर रखी हैं। ये घटनाएं बताती हैं कि दुनिया के जिस भी भाग में मुस्लिमों की आबादी अधिक हुई है वहीं मुस्लिम अपने लिए अलग राज्य की मांग करने लगते हैं। जब उनकी मांग नहीं मानी जाती है तो वे हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। प्रस्तुति : अरुण कुमार सिंह
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