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-मा. गो़ वैद्य –
समझौता एक्सप्रेस, अजमेर दरगाह और मक्का मस्जिद (हैदराबाद) बम विस्फोट मामले में एक आरोपी, स्वामी असीमानंद , जो अभी हरियाणा की अम्बाला जेल में बंद हैं, के एक कथित बयान ने हंगामा खड़ा कर दिया। उस कथित बयान में असीमानंद ने यह कहा बताया गया, कि समझौता एक्सप्रेस, अजमेर शरीफ आदि स्थानों पर जो बम धमाके हुये उनके लिये, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान सरसंघचालक, जो उस समय संघ के सरकार्यवाह थे, श्री मोहनराव भागवत और संघ के केन्द्रीय कार्यकारी मण्डल के एक सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार से परामर्श हुआ था और उन्हीं की प्रेरणा से ये धमाके किये गये थे। असीमानंद का यह कथन, ह्यकारवांह्ण नामक अंग्रेजी पत्रिका के 1 फरवरी 2014 के अंक में प्रकाशित हुआ है। यह बयान लीना गीता रघुनाथ नामक संवाददाता को दिये साक्षात्कार का हिस्सा बताया गया है। रा़ स्व़ संघ हिंसात्मक कारवाइयों का पक्षधर है, यह बताना ही इस तथाकथित लेख का मकसद है।
संघ और हिंसा
हम कई वषोंर् से संघ को जानते हैं और पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि संघ का ना सिद्घान्त,ना व्यवहार हिंसा को प्रोत्साहित करने वाला है। हम यह भी जानते हैं कि हिंसा का सिद्घान्तत: गुणगान करने वाली विचारधाराएं हैं और हिंसा का आचरण करने वाले आन्दोलन भी हैं। लोग नकस्लवादी, पीपुल्स वार ग्रुप, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन, सिमी आदि नामों से चलने वाले हिंसात्मक आन्दोलनों से परिचित हैं। संघ का कार्य आरम्भ से ही राष्ट्रीय चरित्र सम्पन्न व्यक्ति निर्माण का है, जिस में हिंसा का कोई स्थान ही नहीं रह सकता। यह बात, जिन्होंने अपनी आंखों पर द्वेष के चश्मे नहीं लगाये हंै, ऐसे सब लोग भली-भंाति जानते हैं।
सुनियोजित षड्यंत्र
उपरोक्त समाचार की पृष्ठभूमि पर यदि हम गौर करते हैंं, तो यह समझने में देर लगने की आवश्यकता नहीं कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है। प्रकाशित समाचार बताता है कि लीना गीता रघुनाथ नामक एक महिला पत्रकार ने अम्बाला के जेल में जाकर स्वामी असीमानंद का साक्षात्कार लिया। हम भी कारागृह में रह चुके हैं। एक बार नहीं, दो बार। किन्तु कोई पत्रकार हम से मिल नहीं पाया। कारण, आरोपी को अखबार से मिलने की अनुमति ही नहीं मिलती थी। आज जेल प्रशासन के नियम बदल गये हों तो बात अलग है। यह भी एक दिलचस्प की बात है कि उक्त महिला एक पत्रकार के नाते असीमानंद से मिलने नहीं गई थी। वह एक वकील के नाते गई थीं। क्यों? यह बहाना इसीलिये कि वकील आरोपी से मिल सकता है? किन्तु स्वामी जी ने उन्हें बताया कि उनके अपने अलग वकील हैं और उन्हें अन्य वकील की आवश्यकता नहीं है। यह घटना है 9 जनवरी 2014 की। किन्तु इस वकील महोदया का असीमानंद के बारे में ह्यकरुणा का उबालह्ण शान्त नहीं हुआ। वे फिर से दिनांक 17 जनवरी को अम्बाला जेल गयीं। इस समय भी स्वामी असीमानंद ने अपने मामले में उनसे बात करने से इंकार किया। आश्चर्य लगता है कि पक्षकार बार- बार कहता है कि मुझे अन्य वकील की आवश्यकता नहीं है और फिर भी वह वकील उससे आग्रह करता है। संभव है कि लीना गीता रघुनाथ व्यवसाय से वकील होंगी, किन्तु वह अपने व्यवसाय के प्रामाणिक व्यवहार के लिये जेल नहीं गई थीं। वह एक अखबार की संवाददाता के रूप में या किसी अन्य संस्था की एजेन्ट बनकर गई थीं। इस का मतलब यह निकलता है कि यदि सचमुच वह पेशे से वकील हैें, तो उन्होंने अपने व्यवसाय से द्रोह किया है।
यदि कोई व्यक्ति वकील का नकाब पहनकर काम करने के लिये प्रस्तुत हुआ हो, तो अवश्य समझना चाहिये कि वह किसी अन्य का एजेन्ट बनकर आया होगा। लीना गीता रघुनाथ किसकी एजेन्ट होंगी? तो स्वयं कुछ भी कबूल नहीं करेंगी। किन्तु लोकसभा के चुनाव की समीपता तथा घटना अम्बाला जेल की है, जो कि कांग्रेस शासित हरियाणा राज्य में स्थित है, यह ध्यान में लेकर, यह षड्यंत्र कांग्रेस पार्टी ने रचा है, ऐसा किसी ने निष्कर्ष निकाला, तो उसे दोष नहीं दिया जा सकता। इस तर्क की पुष्टि इस कारण से भी हो सकती है कि राहुल गांधी, तुरन्त गुजरात में प्रचार के लिये गये और उन्होंने वहां रा़ स्व़ संघ की ह्यजहरबुझीह्ण निंदा की। पहले तो कांग्रेसजन यही कहते थे कि महात्मा गांधी की हत्या में संघ की भूमिका थी। किन्तु जब इस प्रकार की अनर्गल बातों ने उनको माफी मांगने के लिये मजबूर किया, तब शैली बदली, (मन नहीं बदला) कहने लगे कि संघ की विषैली विचारधारा के कारण गांधी की हत्या हुई। राहुल गांधी का वक्तव्य इसका ठोस प्रमाण है।
थोड़ा पुराना इतिहास
राहुल गांधी नये हैं। संभव है उनको पूरा इतिहास अज्ञात हो। अत: उनके लिये तथा अन्य तरुण मतदाताओं के लिये कुछ तथ्यों को यहां प्रस्तुत करता हूं। दिनांक 30 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या हुई। दिनांक 31 जनवरी और 1 फरवरी की बीच की मध्यरात्रि में उस समय के सरसंघचालक श्री मा़ स. गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी को गिरफ्तार किया गया। वह भी इं़ पी. कोड की धारा 302 के तहत। मानो श्री गोलवलकर ही पिस्तौल लेकर दिल्ली गये थे और उन्होंने ही महात्मा जी पर गोली दागी थीं। किन्तु चंद दिनों के बाद ही सरकार की अक्ल ठिकाने पर आयी और धारा 302 को हटाकर प्रतिबंधित कानून के अंदर वह गिरफ्तारी दिखायी गयी। उस समय केवल श्रीगुरुजी को ही बंदी नहीं बनाया था। सैकड़ों अन्य कार्यकर्ताओं को भी पकड़ा था। कम से कम बीस हजार मकानों की तलाशी ली गई थी। किन्तु रंचमात्र भी प्रमाण नहीं मिला। महात्मा गांधी हत्याकांड में जो शामिल थे उनको पकड़ा गया। उन पर न्यायालय में मामला चला। जो दोषी पाये गये उनको सजा हुई। किन्तु संघ के किसी भी कार्यकर्ता पर मुकदमा दायर नहीं हुआ था। क्यों? कारण स्पष्ट है कि वे सारे बेगुनाह थे। किन्तु संघ पर पाबंदी लगाई गयी थी और वह हटायी नहीं गई थी।
प्रतिबन्ध को हटाने के लिये फिर संघ ने अत्यंत शान्तिपूर्ण ढंग से सत्याग्रह किया। 70 हजार से भी अधिक लोगों ने गिरफ्तारी दीं। फिर दो मध्यस्थ सामने आये। एक थे पुणे से प्रकाशित होने वाले ह्यकेसरीह्ण के सम्पादक श्री ग़ वि. केतकर। उनके अनुरोध पर सत्याग्रह स्थगित किया गया। फिर भी प्रतिबन्ध नहीं हटा। फिर आये मद्रास इलाके के पूर्व एडवोकेट जनरल श्री टी़ आऱ वेंकटराम शास्त्री। उनके अनुरोध का आदर कर संघ ने अपना संविधान लिखित रूप में पेश किया। फिर भी प्रतिबन्ध नहीं हटा। बाद में श्रीगुरुजी ने भी स्पष्ट शब्दों में बता दिया कि इसके आगे वे सरकार से कोई पत्राचार नहीं करेंगे। फिर सरकार अड़चन में आयी। सरकार की ही पहल से पं़ मौलिचंद्र शर्मा मध्यस्थ बनकर आये। श्रीगुरुजी सरकार को कुछ भी लिख कर देने के लिये तैयार नहीं थे। फिर बीच का रास्ता ढूंढा गया कि श्रीगुरुजी सरकार को कुछ न लिखें, पंडित मौलिचंद्र , जो कुछ मुद्दे उठायेंगे, उनके उत्तर गुरुजी देंगे और श्रीगुरुजी ने शिवनी जेल में पं़ मौलिचंद्र को एक विस्तृत पत्र लिखकर संघ की भूमिका विशद की। श्रीगुरुजी के पत्र का प्रारम्भ ही ट८ िीं१ ढंल्ल्रि३ टङ्म४ह्ण्रूँंल्लि१ं ्न्र, ऐसा है। यह पत्र दि़ 10 जुलाई 1949 का है। वह पत्र लेकर पंडित मौलिचंद्र दिल्ली गये और 12 जुलाई को संघ पर से प्रतिबन्ध हटाया गया। पं़ मौलिचंद्र को लिखे पत्र में वे ही सारे मुद्दे हैं, जो श्रीगुरुजी ने दिल्ली की वार्ताकार परिषद में 2 नवम्बर 1948 को प्रस्तुत किये थे।
राहुल गांधी, अब आप ही सच बतायें कि आपके परदादा जी के सरकार के प्रमुख रहते हुये भी, उनकी सरकार ने इस ह्यविषैलेह्ण संगठन को मुक्त क्यों किया? इस प्रकार की नासमझी के लिये आप की आलोचना का चुभने वाला एकाध शब्द भी उस दिशा में जाने दीजिये ना।
यह भी ध्यान में लेना जरूरी है कि तथाकथित ह्यजहरीलीह्ण विचारधारा को मानने वाले संगठन के बारे में सभी कांग्रेसजनों का मत एक सा नहीं था। महात्मा गांधी की हत्या के एक-दो दिन पहले, अमृतसर की एक आम सभा में भाषण देते हुये, उस समय के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि ह्यहम आरएसएस को जड़मूल से उखाड़ फेंकें गेह्ण इस प्रकार का विचार रखने वाले और भी कुछ लोग थे। गोविन्द सहाय, जो उस समय उ. प्र. की सरकार में संसदीय सचिव थे, ने एक पुस्तिका प्रकाशित कर संघ को फॅासिस्ट कह कर उस पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की थी। गांधी की हत्या से उनको सुनहरा मौका मिल गया। किन्तु, उसी समय केंद्र सरकार में उपप्रधानमंत्रीपद पर विराजमान सरदार पटेल का मत एकदम इस के विरुद्घ था। श्री पटेल के लखनऊ के एक भाषण का जो वृत्त चैन्नई से (उस समय मद्रास) प्रकाशित होने वाले ह्यद हिंदूह्ण दैनिक के 7 जनवरी 1948 के अंक में प्रकाशित हुआ था, उस में उन्होंने कहा था-
“In the Congress those who are in power feel that by virtue of their authority they will be able to crush the RSS. You cannot crush an organisation by using the 'danda'. The danda is meant for thieves and dacoits. After all the RSS men are not thieves and dacoits. They are patriots who love their country.”
ह्यविषाक्तह्ण विचारधारा रखने वाले संघ के बारे में ऐसे प्रशंसोद्गार बोलने वाले श्री सरदार की सारी प्रतिमायें, राहुल जी आप उखाड़ फेंके। ह्यजहरीलेह्ण संगठन को ह्यदेशभक्तह्ण कहना कितना घोर सत्यापलाप है! राहुल जी, और एक मजे की बात आगे भी घटी। 1963 में 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस समारोह में आयोजित संचलन में हिस्सा लेने के लिये संघ को निमंत्रण मिला था। किसने दिया था यह निमंत्रण, राहुल जी, आप जानते हैं? आपके परदादा पं. जवाहरलाल ने! अत्यंत सौम्य शब्दों में क्यों न हो, आप इसकी कभी आलोचना करने का साहस दिखायेंगे?
संघ पर लगाई पाबंदी अचानक हटने के कारण, एक ऐसा वातावरण निर्माण किया गया था कि संघ ने सरकार की कुछ शतेंर् मान लीं। इसके परिणामस्वरूप पाबंदी हटायी गयी। इस बारे में अधिक न लिखते हुये मैं मुंबई लेजिस्लेटिव असेम्बली में जो प्रश्नोत्तर हुये उन्हें ही यहां उद्घृत करता हूं। प्रश्नकर्ता थे विधायक लल्लुभाई मानकजी पटेल (सूरत जिला) और तिथि 20-09-1949। उस समय जनसंघ का जन्म नहीं हुआ था। अत: प्रश्नकर्ता के संघ समर्थक होने का सवाल नहीं उठेगा। वे प्रश्न और उनके उत्तर इस प्रकार हैं-
a. Whether it is a fact that the ban on RSS has been lifted.
b. If so what are the reasons for lifting the ban.
c. Whether the lifting of the ban is conditional or unconditional.
d. If conditional, what are the conditions?
e. Whether the leader of the RSS has given any undertaking to the Government.
f. If so, what is the undertaking?
Mr. Dinkar rao n. Desai for Mr. Morarji R. Desai :
a. Yes.
b. The ban was lifted as it was no longer considered necessary to continue it.
c. It was unconditional.
d. Does not arise.
e. No.
f. Does not arise.
और एक प्रमाण
पाकिस्तान में भारत के राजदूत और कुछ समय केंद्रीय मंत्री रहे डॉ़ श्रीप्रकाश के पिता भारतरत्न डॉ़ भगवानदास का यह निवेदन है-
“I have been reliably informed that a number of youths of the RSS… were able to inform Sardar Patel and Nehruji in the very nick of time of the Leaguers intended “coup” on September 10, 1947, wherby they had planned to assassinate all Members of Government and all Hindu Officials and thousands of Hindu Citizens on that day and plant the flag of “Pakistan” on the Red Fort.”
“…If these high-spirited and self-sacrificing boys had not given the very timely information to Nehruji and Patelji, there would have been no Government of India today, the whole country would have changed its name into Pakistan, tens of millions of Hindus would have been slaughtered and all the rest converted to Islam or reduced to stark slavery.
“…Well, what is the net result of all this long story? Simply this- that our Government should utilise, and not sterilise, the patriotic energies of the lakhs of RSS youths.”
सारांश यह है कि चुनाव का मौसम आ गया है। तो समझ लेना चाहिये कि संघ पर ऐसे बेतुके बेबुनियाद आरोप लगाये जायेंगे। विधानसभाओं के चुनाव के समय भी हमने देखा था ना, कि कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने जहरीला वक्तव्य दिया था कि ह्यसंघ में बम बनाने की शिक्षा दी जाती हैह्ण। इस प्रकार के प्रलाप का क्या परिणाम निकला, यह पूरे देश ने देखा है। इस नये झूठ का भी परिणाम वैसा ही होगा।
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