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भारतीय मूल के सत्या नडेला को माइक्रोसाफ्ट कम्पनी का मुख्याधिकारी नियुक्त किया गया है। भारतीय मूल के व्यक्ति अमरीका में हर क्षेत्र में अपनी साख जमा रहे हैं। हाल में नीना दवलूरी ने मिस अमरीका का खिताब जीता था। बाबी जिंदल और निक्की हैली ने राजनीति में अपनी पैठ बनाई है। बाबी जिंदल का नाम अमरीकी राष्ट्रपति पद की दौड़ में भी आ रहा है। भारतीयों की इस सफलता का मुख्य कारण पलायन के दौरान होने वाला स्वाभाविक चयन है।
किसी भी जन समूह में कुछ लोग कर्मशील होते हैं जबकि दूसरे सुस्त होते हैं। कर्मशील पलायन करते हैंं। इतिहास साक्षी है कि मूल निवासी की तुलना में प्रवासी ज्यादा कर्मशील और आक्रामक होते हैं, जैसे भारतीय राजाओं की तुलना में शक, कुषाण, लोदी और मुगलों को अधिक कर्मशील अथवा आक्रामक कहा जा सकता है। इसी प्रकार सत्या नडेला जैसे भारत से पलायन करने वाले लोग अधिक आक्रामक हैं। यही कारण है कि अमरीका में भारतीयों की औसत आय 88,000 डालर प्रति वर्ष है जो कि सभी अमरीकियों की औसत आय 49,000 डालर से लगभग दोगुनी है।
यह बात अमरीका में दूसरे देशों से आने वाले प्रवासियों पर भी लागू होती है। एक अध्ययन में पाया गया है कि चीनी, कोरियाई तथा वियतनामी बच्चे तेजी से आगे बढ़ते हैं चाहे उनका आरम्भिक आर्थिक स्तर न्यून ही रहा हो। 2013 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले अश्वेत छात्रों में चौथाई नाइजीरिया मूल के थे। क्यूबा से अनेक लोगों ने अमरीका को पलायन किया था। पाया गया कि इनकी संतानों की आय अमरीकी लोगों की औसत आय से दोगुनी से ज्यादा है। तात्पर्य यह कि सभी प्रवासी सफल हैं।
लेकिन संकेत मिलते हैं कि प्रवासियों की यह सफलता अल्पकालिक होती है। प्रवासियों की संतानों में पुन: सामान्य प्रवृत्ति पैठ बनाती दिखती है। अमरीकी युनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए स्कोलास्टिक एप्टीट्यूट टेस्ट परीक्षा होती है जिसे ह्यसैटह्ण नाम से जाना जाता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि सभी एशियाई बच्चों के ह्यसैटह्ण के अंक श्वेतों से 63 अंक अधिक थे। परन्तु एशियाई लोगों की तीसरी पीढ़ी के अंक श्वेतों के समान थे। इससे दिखता है कि प्रथम पीढ़ी की कर्मशीलता समय क्रम में क्षीण होती जाती है। उन पर मेजबान देश की संस्कृति हावी हो जाती है। भारतीयों की वर्तमान में सफलता इस कारण दिखती है कि भारत से प्रथम पीढ़ी के आगन्तुकों की संख्या अधिक है।
सभी प्रवासियों में भारतीयों का प्रदर्शन विशेषकर उत्तम दिखता है। इस सफलता का कारण हमारी संस्कृति में है। भारतीय संस्कृति में धर्म को प्रधानता दी गयी है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष। अर्थ इस प्रकार अर्ज्िात करना चाहिये कि धर्म सम्मत हो। काम यानी भौतिक सुख इस प्रकार प्राप्त करना चाहिये कि अर्थ सम्मत हो।
हमारी संस्कृति में काम को अर्थ और धर्म का सहायक बताया गया है न कि स्वयं लक्ष्य। इसका परिणाम है कि कठिन परिस्थितियों अथवा असफलताओं के बीच भारतीय लोग कर्म में लगे रहते हैं। यह कर्मशीलता अन्तत: उनकी सफलता का कारण बनती है। तुलना में पाश्चात्य संस्कृति में काम या भौतिक भोग को ही जीवन का लक्ष्य माना गया है।
पश्चिमी संस्कृति के भोग प्रधान होने का एक परिणाम श्वेतों की घटती जनसंख्या है। फोर्ब्स पत्रिका में एक लेख में स्पेन की स्थिति का वर्णन इस प्रकार किया गया है: ह्यदक्षिण यूरोप की समस्या जनसंख्या में गिरावट के कारण है। 1960 में महिलाओं द्वारा औसतन चार संतानें पैदा की जा रही थीं। अस्सी के दशक में परिवार का महत्व क्षीण हो गया। युवा स्त्री पुरुषों का ध्यान कैरियर और धन कमाने पर केन्द्रित हो गया। वे बच्चों को पैदा करने और पालने के झंझट में नहीं पड़ना चाहते थे। 1975 और वर्तमान के बीच विवाह की संख्या 270 हजार से घटकर 170 हजार रह गई है जबकि जनसंख्या में वृद्घि हुयी है।ह्ण
अमरीकी सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़ों में बताया गया है कि 2013 में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में श्वेतों की संख्या 50 प्रतिशत से कम हो गयी है। श्वेतों की घटती जनसंख्या के बीच प्रवासी उसी प्रकार चमक रहे हैं जैसे छिछले पानी में गिरता झरना।
सत्या नडेला जैसे भारतीय प्रवासियों की सफलता हमारी संस्कृति के कारण है। परन्तु हमारी यह विशेषता दो तीन पीढि़यों में अधोमुखी होती दिखाई दे रही है। तीन पीढ़ी बाद एशियाई और श्वेत छात्रों के ह्यसैटह्ण परीक्षा में अंक बराबर हो जाते हैं। अर्थ हुआ कि हमारे प्रवासी अपनी सांस्कृतिक खूंटी को बचा नहीं पा रहे हैं। वे अमरीकी भोगवादी संस्कृति में लिप्त होते दिख रहे हैं। अपनी संस्कृति से मिली कर्मशीलता को पश्चिमी भोगवाद में स्वाहा नहीं करना चाहिये। डा. भरत झुनझुनवाला
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