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देश में पिछले 24 सालों से अंगदान के क्षेत्र में कार्यरत दधीचि देह दान समिति ने गत 2 फरवरी को नई दिल्ली में देहदानियों का उत्सव आयोजित किया। इस कार्यक्रम में उन सभी लोगों को आमंत्रित किया गया था, जिन्होंने मानवता की सेवा में अपने अंग दान किये थे। इस अवसर पर प्रमुख रूप से उपस्थित साध्वी ऋृतम्भरा ने अंगदान के आध्यात्मिक पहलूओं के बारे में विस्तार से समझाते हुए कहा कि ये बहुत ही अफसोसजनक है कि कुछ पुरानी मान्यताओं के कारण लोग मृत शरीर का दाह संस्कार करने पर ही उसे मोक्ष मिला मानते हैं। मैं तो इसे भं्राति मानती हूं। अगर मृत्यु के बाद शरीर के अंगों से किसी जरूरतमंद को नई जिन्दगी मिलती है तो इससे अच्छा कार्य कोई और नहीं हो सकता। कोई भी पंथ इस पुण्य कर्म को पाप नहीं कह सकता।
इस अवसर पर उन्होंने भी अपने शरीर के दान देने की घोषणा की। दधीचि देह दान समिति के अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि इस पहल का अर्थ लोगों को अंगदान के महत्व के प्रति जागरूक कराना है। भारत जैसे देश में धार्मिक और पुरानी मान्यताओं व आस्थाओं के कारण ज्यादातर लोग अंगदान करना पसंद नहीं करते। इससे न सिर्फ वो अंगदान की संभावना को कम करते है, बल्कि कई ऐसे लोगों के जीवन की संभावना को भी कम कर देते है,जो अंगदान पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा कि देश में दान में दिए गए अंगों की आवश्यकता है और ऐसे में ये पहल बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। भारत में तकरीबन प्रतिवर्ष दो लाख लोगों के अंगों में विफलता हो रही है और उन्हें जिन्दगी बचाने के लिए अंग प्रत्यारोपण की जरूरत है। इनमें से ज्यादातर लोग युवा हैं और उनके लिए अंग प्रत्यारोपण ही एकमात्र ऐसा उपाय है, जिससे वे फिर से स्वस्थ जीवन जी सकते हैं, लेकिन पुरानी मान्यताओं के कारण लोग अंगदान करने से हिचकते हंै। पिछले वर्ष इस उत्सव में डॉ़ मीना ठाकुर ने अपने पति के अंगों को दान किया था।
उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, जब मैं देखती हूं कि मेरे पति के अंगों की वजह से किसी की जिन्दगी बच गई है तो इससे मुझे बहुत ही संतुष्टि मिलती है और मुझे लगता है कि मेरे पति के अंगो से किसी को नया जीवन मिला है। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रोफेसर एम़ सी मिश्रा ने की।
दधीचि देह दान समिति के सचिव हर्ष मल्होत्रा ने कहा कि हमारे प्रयास से लगभग एक हजार लोगों को अंग दान में मदद मिली है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष 74 लोगों ने अंगदान का संकल्प लिया था।
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