|
डॉ. रिखब चन्द जैन
पिछले कुछ समय के दौरान भारतीय लोकतंत्र में अजीबोगरीब दृश्य देखने में आए हैं। अण्णा हजारे का जन आन्दोलन और जन लोकपाल बिल, दिल्ली में दुष्कर्म की घटनाओं पर प्रचण्ड जनप्रदर्शन, राजनीति के अपराधिकरण के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय के नये आदेश, इसके साथ ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आआपा) की जीत और कांग्रेस द्वारा बेशर्त ह्यआआपा ह्ण की अल्पमत सरकार को बाहर से समर्थन देना चौंका गया। कांग्रेस का राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में सफाया, चुनाव प्रक्रिया एवं मतदान प्रक्रिया की सुव्यवस्था, सुसंचालन आदि बातें भारतीय लोकतन्त्र की जड़ों की मजबूती के साक्ष्य कहे जा सकते हैं। इसे भारतीय गणतंत्र की नए दौर की शुरुआत भी कहा जा सकता है।
पिछले कई वर्षों से पंचायत, विधानसभा, लोकसभा आदि में धन-बल, बाहुबल हावी हो रहा है। राजनैतिक दलों में दागी और अपराधी तत्वों का प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है। जनप्रतिनिधि सेवा की जगह, राजनीति को निजी लाभ का व्यवसाय बना चुके हैं। नेताओं एवं पार्टियों की कथनी और करनी में अंतर निरन्तर बढ़ने लगा। जनता की आवाज, जनप्रतिनिधियों की आवाज, संसद सदस्यों की आवाज, गुटबाजी और पार्टी तंत्र द्वारा दबा दी जाती है। इसमें सुधार के प्रयासों को, चाहे वे जन आंदोलन हों या न्यायपालिका के आदेश, ज्यादातर पार्टियां उनको विफल करने और प्रभाव शून्य बनाती दिखीं। वैसे भी ऐसे मुद्दों पर सभी पार्टियां आपसी विरोध छोड़कर आपस में एक हो जाती हैं और सुधार के प्रयासों को जड़ से उखाड़ फेंकती हैं।
हद तो तब हुई जब राजनीतिक दल लोकतंत्र की बजाए परिवारवाद में सिमट गए । कुछ राजनैतिक दलों को छोड़कर यह बात बाकी सभी में दिखाई देती है। निर्णयों पर प्रभावी तौर से हावी होने की शक्ति कुछ परिवारों के कब्जे में आ गई और वे लोकतंत्र में एक तरह से क्षत्रप बन बैठे हैं। ऐसे दल निश्चित रूप से देश के गुनहगार हैं कि वे चुनावी टिकट देश हित की जगह अपने स्वार्थ, पार्टी के हित एवं अपनी गिनती बढ़ाने के लिहाज से बांटते हैं। यही वर्तमान के बिगड़े हालातों का कारण है। इन सब खामियों को दूर करने के लिए राजनीतिक दलों के अधिकारों एवं तरीकों की समीक्षा होनी चाहिए। साथ ही आचार संहिता मंे आवश्यक बदलाव होने चाहिएं। राजनैतिक दलों के लिए राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होना चाहिए न कि पार्टी हित या किसी नेता का निजी हित। जब से मन्त्री व अन्य स्तर के जनप्रतिनिधि बहुसंख्या में अपराधी करार दिए जाने लगे हैं । तब से ऐसा वातावरण बन गया है कि सद्चरित्र और सक्षम सेवाभावी नागरिक जनप्रतिनिधि बनने से विमुख हो रहे हैं। ऐसे में घुटन और असफलता के अलावा और कुछ प्राप्त होता नहीं दिखाई दे रहा। किसी समाज को बुरी नजर से देखने वाले दुर्जनों से जितना खतरा नहीं होता उससे सौ प्रतिशत अधिक खतरा सज्जन पुरुषों के निष्क्रिय होने से होता है। देश में सुयोग्य, दक्ष, निस्वार्थ, सेवाभावी, शिक्षित-प्रशिक्षित लोग हैं, जो ईमानदारी, नेक-नियति, सेवा-समर्पण के साथ देश सेवा और जनप्रतिनिधित्व करने के लिए उपलब्ध हैं। कमी है बस यह कि वे आगे नहीं आ रहे हैं। इसके लिए उन्हें उचित अवसर और काम करने का सही वातावरण मुहैया कराने की आवश्यकता है। ताकि वे जनहित में काम कर सकें और देश को विकास की ओर ले जा सकें।
लोकतंत्र और जनता के शुभचिंतकों को यह बात अच्छी तरह से समझ मेंे आ गई है कि हर चीज का एक समय होता है। आमजन जान चुका है कि चुनाव की क्रियाशील राजनीति, आपसी चट्टे-बट्टे की रह गई है। देश हित की बात करने वाले राजनैतिक दल भ्रष्टाचार विरोध, महंगाई पर नियन्त्रण आदि की बातें तो करते हैं, लेकिन वास्तविकता में करते कुछ नहीं हैं। इन सब बातों के चलते हाल ही में हुए में चारों राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने पुराने राजनीतिज्ञों को किनारे करने का मन बनाया और कई नए लोगों को मौका दिया। चारों राज्यों में कांग्रेस का सफाया और दिल्ली में ह्यआआपाह्ण को अपेक्षा से अधिक मिला जनसमर्थन इसका साक्ष्य है कि मतदाता अपने मत की कीमत को समझने लगा है। बदले हालातों के में देश के प्रत्येक राज्य में दूरगामी संदेश गया है। इसलिए यह निश्चित है कि राजनैतिक दलों को आगामी लोकसभा चुनावों में सोच-समझकर उम्मीदवार मैदान में उतारने पड़ेंगे।
मतदाताओं को लोकतंत्र में उनके मत की कीमत का अंदाजा होना अच्छी बात है। यह देश के लिए अच्छा संकेत है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र है। यहां पर यदि बदलाव होता है तो उसका प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ेगा। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के बाद चारों राज्यों में सरकार बनाने में मंत्रियों की नियुक्ति में बरती जाने वाली सावधानी और सतर्कता से इस प्रभाव को समझा जा सकता है। सभी राजनैतिक दलों को अपने आचरण में सकारात्मक बदलाव लाना ही होगा।
हर एक जन नायक के लिए यह आवश्यक है। चाणक्य की सादगी, सदाचार, सतर्कता, राष्ट्रभक्ति एवं सर्वस्व अर्पण की इच्छा के साथ उनकी राजनीति, कूटनीति, अर्थनीति एवं प्रशासन विधि से चलकर ही गणतन्त्र को लोगों के लिए मंगलकारी बनाया जा सकता है। संत कवि तिरुवल्लुवर, महात्मा विदुर, कबीर, गांधी, विनोबा, पटेल, शास्त्री, राजेन्द्र प्रसाद, कृपलानी जैसे समर्पित विभूतियों के पदचिन्हों पर चलकर ही युग में बदलाव लाया जा सकता है। राजनैतिक दलों की सोच और उनकी कार्यशैली बदलते तभी देश का हाल बदलेगा, भाग्योदय होगा और आमजन के सपने सच होंगे। इसके लिए निरंतर प्रयास और सुधार करने की आवश्यकता है। देश में आने वाले समय में जो सरकार सरकार असहाय, गरीब, भयभीत, कमजोर, निर्बल, शोषित, वंचित, पिछडे़, वनवासी, भूखे, नाबालिग, वृद्धजनों की तरफ देखकर उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए ईमानदारी और सूझबूझ से काम करेगी। उसी सरकार का भविष्य सुनहरा होगा। यदि राजनैतिक दलों पर हावी परिवारवाद, देश हित के बजाए निजी हित हावी रहे तो उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा। वर्तमान में उपेक्षित वर्ग को कुछ सुविधाएं बांटकर राजनैतिक दल किसी तरह से काम चला रहे हैं, लेकिन सही विकास के लिए भविष्य में राष्ट्रीय प्राकृतिक संपदा एवं साधनों का सही तरह से उपयोग करते हुए विकास की गति को तेज करना होगा। इसके लिए चीन से भी आगे निकलना होगा और इस विकास का फल अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे इस बात का भी ध्यान रखना होगा। यदि देश में ज्यादा उत्पादन और ज्यादा आमदनी होगी, तभी हम उम्मीद की डोर थामे उपेक्षित और निचले तबके के लोगों का विकास कर सकेंगे। समाज का उपेक्षित वर्ग भी विकास के अवरोधों को हटाते हुए
आगे आए, सभी मिलकर विकास की गति तेज करंे और देश को आगे लेकर जाएं तभी राष्ट्र का भविष्य सुरक्षित रहेगा। ऐसा होने के लिए सत्ता परिवर्तन तो शुरुआत मात्र है। राजनैतिक दलों का असली काम सुधारों को तुरन्त प्रभावी रूप से लागू करना होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि पार्टी तंत्र और चुनाव तंत्र के आवश्यक सुधार पहले किए जाएं। प्रशासनिक, पुलिस, रक्षा, शिक्षा, भूमि, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका आदि हर क्षेत्र में सुधार होने बाकी हैं।
इन सब सुधारों के साथ-साथ सामाजिक सुधार भी लाने आवश्यक हैं। जातिवाद, नस्लवाद, लिंग भेद, पारिवारिक मूल्यों, कुरीतियों का निरोध एवं ऐसे ही सभी क्षेत्रों में आवश्यक सुधार जरूरी है। तभी पूरे गणतंत्र की ही कायाकल्प होगा। हम सब देशवासियों को मिलकर इसके लिए प्रयास करने होंगे। तभी हमारा देश विकसित हो पाएगा।
टिप्पणियाँ