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बढ़ता जाता तिमिर
धरा पर, सूर्य उतारो तुम।
जब भी शक्ति कुपित होती है
प्रलय राग बज उठता
संहारक शिव नेत्र
काल के माथे पर सज उठता।
निश्चित विजित करोगे तम को
अंधकार छांटोगे
एक बार यदि पूरे मन से
फिर हुंकारो तुम।
कोई भागीरथ फिर लाएगा
निर्मल गंगा धारा।
भय से मुक्त करेगा जीवन
तोड़ेगा तम कारा।
किन्तु तभी यह संभव होगा
निर्णय, प्रण में बदले।
दृढ़ संकल्प हृदय में भर कर
तन मन वारो तुम।
अत्याचारी विविध रूप धर
खुलकर घूम रहा है।
अनाचार निर्बंध हुआ है
मद में झूम रहा है।
समय आ गया हमें बदलना
यह पूरी संरचना
शक्ति प्राण में संचित कर
अब मंत्र उचारो तुम।
राजकुमारी रश्मि
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