प्रार्थना सभा से पहले के वे पल
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प्रार्थना सभा से पहले के वे पल

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Feb 1, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Feb 2014 13:51:53

महात्मा गांधी की पुण्य तिथि (30 जनवरी) पर विशेष

-विवेक शुक्ला-

ेेउस दिन राजधानी में सूरज नहीं निकला था। कोहरे और जाड़े के कारण सड़कों पर लोग ज्यादा नहीं थे। पर रोज की तरह के. डी. मदान उस दिन भी 5,अलबुकर रोड (अब 5, तीस जनवरी मार्ग) स्थित बिड़ला हाउस में अपनी रिकार्डिंग मशीनों के साथ पहुंच गए थे। समय रहा होगा शाम के चार-साढ़े चार बजे। उन्हें बापू की प्रार्थना सभा की रिकार्डिंग करनी होती थी। वे तब आकाशवाणी से जुड़े थे। प्रार्थना सभा को आकाशवाणी रात के साढ़े आठ बजे प्रसारित करती थी। गांधी जी की प्रार्थना सभाओं में भजन सुनने और बापू के दर्शन करने से मदान को भरपूर आनंद की अनुभूति होती थी इसलिए वे बेनागा वहां जाते थे। बिड़ला हाऊस में प्रार्थना सभा का सिलसिला सितम्बर, 1947 से शुरू हुआ था और तब ही से मदान रिकार्डिंग के लिए आने लगे थे।
आज करीब 90 साल के मदान के दिमाग में 30 जनवरी, 1948 की शाम की यादें अब भी जीवंत हैं। बिड़ला हाऊस (अब गांधी स्मृति) में टहलते हुए वे उस स्थान की तरफ इशारा करते हैं जहां पर बापू की हत्या हुई थी। मदान कहते हैं, जब बिड़ला हाऊस के भीतर से गांधी जी प्रार्थना सभा के लिए निकले तब मेरी घड़ी के हिसाब से 5़16 का वक्त था़.़ हालांकि कहा जाता है कि 5़17 बजे उन पर गोली चली़.़ तो मंै समझता हूं कि बापू 5़10 पर निकले होंगे ़.़ उस दिन बापू से मिलने सरदार पटेल आए थे, कुछ जरूरी बात करने के लिए़.़. आमतौर पर बापू 5़10 बजे प्रार्थना के लिए आ जाते थे लेकिन उस दिन कुछ देर हो गई थी ़.़ तो उन्होंने सरदार पटेल से खुद ही कहा कि, आप जाइए मेरी प्रार्थना का वक्त हो गया है ़.़ मुझे जाना है। वे 5़10 बजे निकले होंगे़.़।
फिर मदान उस रास्ते की तरफ इशारा करते हैं जिससे गांधी जी प्रार्थना सभा स्थल पर आया करते थे। वे आगे बताते हैं, उनकी आयु और उनके स्वास्थ्य की वजह से हमेशा उनके हाथ मनु और आभा के कंधों पर रहते थे। उस दिन भी उन्हीं के कंधों के सहारे वे  यहां तक पहुंचे।
गांधीजी सितंबर में कलकत्ता से दिल्ली आए थे। वे कभी बिड़ला भवन तो कभी मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि मंदिर में ठहरा करते थे। सितंबर 1947 में आल इंडिया रेडियो ने तय किया कि प्रार्थना सभा रोजाना रिकार्ड की जाएगी और उसे रात 8.़30 बजे प्रसारित किया जाएगा।  जब दफ्तर में पूछा गया तो मैंने कहा, मैं ही चला जाया करूंगा। मंै ठीक 4.30 पर बिड़ला हाऊस आकर अपनी मशीनें जमा देता था। गांधी जी वक्त के बड़े पक्के थे।
यह सबको मालूम है कि 30 जनवरी,1948 से पहले भी गांधी जी पर बिड़ला हाउस में हमला हुआ था। उस दिन भी मदान वहां पर थे।  जनवरी के महीने की 20 तारीख को प्रार्थना सभा हो रही थी यहां पर । सभी बैठे हुए थे। तभी एक धमाका हुआ। किसी को चोट तो नहीं आयी लेकिन पता चला कि किसी ने पटाखा चलाया था। बाद में ये भी पता चला कि वो एक देसी किस्म का बम था जिसमें नुकसान पहुंचाने की ज्यादा ह्यकैपेसिटीह्ण नहीं थी। अगले दिन अखबारों में छपा कि मदन लाल पाहवा नाम के शख्स ने पटाखा चलाया था और उसकी मंशा थी कि गांधीजी को किसी तरीके से चोट पहुंचायी जाए । उसी दिन प्रार्थना सभा में गांधीजी ने कहा कि जिस किसी ने भी यह किया था उसे माफ कर दिया जाए । उसके दस दिन के बाद तीस जनवरी को गांधीजी उसी रास्ते से आ रहे थे। रोज की तरह आभा और मनु उनके साथ थीं। तभी पहली गोली की आवाज आयी। मुझे ऐसा लगा कि दस दिन पहले जो पटाखा चला था वैसा ही कुछ हुआ है। मैं उसी एहसास में था कि दूसरी गोली चली। मैं मशीनें छोड़ कर उस तरफ भागा जहां भीड़ जमा थी। तभी दूसरी गोली चली। मैं और आगे आया ही था कि तीसरी गोली चली। मैंने अपनी आंखों से वह सब देखा। बाद में पता चला कि गोली मारने वाले का नाम नाथूराम था। उसने खाकी कपड़े पहने हुए थे। कद काफी कुछ मेरे जैसा ही था। डीलडौल भी मेरी जैसा। तीसरी गोली चलाने के बाद उसने दुबारा से हाथ जोड़े। मंैने सुना कि पहली गोली चलाते हुए भी उसने हाथ जोड़े थे। उसके बाद लोगों ने उसे पकड़ लिया, उसने किसी भी तरह का विरोध नहीं किया बल्कि अपनी रिवाल्वर भी लोगों के हवाले कर दी। कुछ पल रुककर श्री मदान अपनी बात आगे आगे बढ़ाते हैं,  मैं यहां ये बताना चाहता हूं कि गांधीजी का आदेश था कि कोई भी पुलिस वाला उनकी प्रार्थना सभा में न हो, लेकिन जब ये हादसा हुआ तो कुछ लोगों ने पुलिस को खबर की होगी। तब पुलिस वहां आई और हत्यारे को पकड़ लिया।
मदान साहब को नहीं पता था, पर अचानक से वहां पर पुलिसकर्मी इसलिए नजर आए क्योंकि संसद मार्ग थाने में तैनात डीएसपी सरदार जसवंत सिंह और तुगलक रोड थाने के इंस्पेक्टर दसौंदा सिंह संयोग से वहां पहुंच गए थे। जसवंत सिंह के पुत्र गुरुदयाल सिंह ने बताया कि ये दोनों पुलिस अफसर तुगलक रोड थाने से बिड़ला हाउस साथ-साथ इसलिए आए थे कि चलो देखा जाए, वहां पर क्या चल रहा है। ये दोनों पुलिस अफसर पंजाब के होशियारपुर से थे। इसलिए दोनों में गहरी मित्रता थी। उस दिन दोनों गांधी जी की सभा को देखने के बाद गुरुद्वारा सीसगंज जाने वाले थे। वे मोटरसाइकिल से बिड़ला हाऊस आए थे। वे जैसे ही गेट पर पहुंचे वैसे ही गोली चलने की आवाज आई। किसी अज्ञात आशंका से दोनों भागकर अंदर गए। वहां भगदड़ का मंजर था। गांधी जी को बिड़ला हाउस के अंदर ले जाया जा रहा था। दोनों ने वहां कुछ लोगों के साथ मिलकर फौरन नाथूराम को पकड़ लिया। यहां बता दें कि उन दिनों संसद मार्ग थाने के अंतर्गत आता था 1941 में बना तुगलक रोड थाना। जसवंत सिंह पंजाब पुलिस के अफसर थे। पंजाब पुलिस के अफसरों को दिल्ली में पांच साल प्रतिनियुक्ति पर गुजारने होते थे। वे 1952 में वापस पंजाब चले गए थे। उनकी 1964 में करनाल में मृत्यु हो गई थी।
बहरहाल, पुलिस ने गांधी जी की हत्या की एफआईआर कनाट प्लेस के एम-56 में रहने वाले नंदलाल मेहता से पूछ कर लिखी। मेहता उस वक्त घटनास्थल पर ही थे। मेहता के बारे में अधिक जानकारी जुटाने के इरादे से हम एम-56 में गए तो वहां एक बुजुर्ग शख्स ने बताया, मेहता गांधीवादी थे। गुजराती मूल मेहता1968 में अमदाबाद चले गए थे। वहीं पर ही उनका निधन हुआ था।
श्री मदान के मन में आज भी गोडसे के प्रति नफरत का भाव है। वे उसके बारे में बात करने से बचते हैं। उन्होंने कहा, गोडसे के बारे में इतना ही जानता  हूं कि मैंने उसे गोली चलाते हुए देखा था।
मदान को गांधीजी  रेडियो वाला बाबू पुकारते थे। रोज मिलते रहने के कारण बापू उन्हें पहचानने लगे थे। वे बताते हैं, कभी कभी गांधीजी आधे घंटे से ज्यादा बोल जाते थे। मेरे लिए गांधी जी के भाष्ण को संपादित करना बड़ा मुश्किल होता था। मैंने यह बात बापू की सहयोगी डा़ सुशीला नायर को बतायी कि उनके लंबे भाषण संपादित करने में काफी परेशानी होती है। उन दिनों एडिटिंग मशीनें भी काफी कामचलाऊ  किस्म की हुआ करती थीं। सुशीला जी यह सुनते ही नाराज हो गईं। कहने लगीं, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई गांधीजी के भाषणों को संपादित करने की। मैं इसकी शिकायत सूचना और प्रसारण मंत्री सरदार पटेल से करूंगी। मैंने सोचा कि मेरी नौकरी तो जानी ही है सो बड़ी हिम्मत करके एक दिन प्रार्थना सभा से ठीक पहले अपनी परेशानी गांधीजी को बतायी। गांधीजी ने बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा, ह्यजैसे ही 28 मिनट पूरे हों आप इशारा कर देना।ह्ण उसके बाद साढ़े 28 मिनट होते ही मैं इशारा कर दिया करता था और मेरा इशारा पाते ही गांधीजी लोगों से कहते, आज बस, बाकी बात कल करेंगे ।
 

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