पश्चिम बंगाल में सिमी संस्थापक को तृणमूल भेजेगी राज्यसभा!
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इमरान की पैरवी से मुस्लिम वोट साधने को आतुर ममता
पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार सिमी के कट्टर समर्थक और अखबार ह्यदैनिक कलमह्ण के विवादित संपादक अहमद हसन इमरान को राज्यसभा में भेजने की तैयारी कर रही है। ऐसे जिदाही मानसिकता वाले व्यक्ति को सांसद बनाने को कमर कस चुकी ममता की सरकार पश्चिम बंगाल में रहने वाले हिन्दुओं के अस्तित्व के लिए खतरा साबित हो सकती है। इमरान वही व्यक्ति है जिसने बंगाल में सिमी की कथित जड़ें जमाई हैं।
सिमी भारत में प्रतिबंधित संगठन है। इसके बावजूद दैनिक कलम में रोजाना सिमी से हमदर्दी जताते हुए बंगाल के मुस्लिमों की भावनाओं को भड़काया जाता है। पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाने के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर इस तरह के व्यक्ति को राज्यसभा के लिए मनोनित कर रही है। दिलचस्प बात यह है कि मुस्लिमों की हमराह बनीं ममता बनर्जी ने अप्रैल, 2012 में कोलकाता में दैनिक क लम जैसे जिदाही भावनाएं भड़काने वाले अखबार के दैनिक संस्करण का लोकार्पण किया था।
इमरान एआईडीयूएफ के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल, एमआईएम के अकबरुद्दीन और समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान का करीबी है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वद्यालय में जुड़ने से इमरान को मजहबी उन्माद विरासत में मिला है। मो. अहमदुल्लाह सिद्दिकी के नेतृत्व में वर्ष 1977 से वह सिमी का संस्थापक सदस्य रहा जिसे बंगाल इकाई का संस्थापक अध्यक्ष बनाया गया था। इमरान इस्लामिक गतिविधियों से जुडे़ अनेक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों को मजबूत करने में लगा है। बंगलादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को कोलकाता से निष्कासित करने में उसकी बहुत बड़ी भूमिका रही थी। उसने नसरीन के कोलकाता में बनाए टीवी सीरियल का प्रसारण तक रुकवा दिया था। देश में कट्टर मजहबी सोच के पांव जमाने में भी इमरान काफी सक्रिय रहा है। इसके लिए उसने पश्चिम बंगाल और असम में बहुत आग भड़काई है। ममता बनर्जी को मुस्लिम तुष्टीकरण की वजह से बंगाल में बहुत से मुस्लिम ह्यममताज बानु अर्जीह्ण भी कहते हैं। इसकी जैसे भरपाई करते हुए उन्होंने इमरान को राज्यसभा में कट्टर इस्लाम की आवाज बुलंद करने के लिए ही चुना है। ऐसा वह सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए कर रही हैं। पश्चिम बंगाल इस विभाजनकारी दृष्टिकोण की वजह से साम्प्रदायिक अलगाव के करार पर आकर खड़ा हो गया है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विभाजनकारी राजनीति कर सांप्रदायिक आग भड़का रही हैं। पश्चिम बंगाल में 36 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जिन्हें रियायतें देकर उनका वोट लुभाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। मुस्लिमों को लाभांवित करने के लिए पश्चिम बंगाल में गैर मान्यता प्राप्त वाले दस हजार मदरसों को मान्यता दे दी गई। इसके अलावा जगह-जगह मुस्लिमों के लिए शिक्षण संस्थाएं, हज मंजिल तैयार कराई गई हैं। मुस्लिम लड़कियों के लिए नि:शुल्क रेलवे पास और साइकिल, मुस्लिम कॉलेज, तकनीकी संस्थान, नर्स प्रशिक्षण कॉलेज और अस्पताल खोले गए हैं। 90 फीसदी मुस्लिमों को अन्य पिछड़ा वर्ग में लाने के लिए उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इमामों को मासिक वेतन की मंजूरी दी, जबकि उच्च न्यायालय ने ऐसा करने से मना किया था।
पक्षपात के चलते यह स्थिति है कि किसी नजदीकी मुस्लिम अस्पताल में आपातकाल में किसी घायल हिन्दू को उपचार के लिए दाखिल तक नहीं किया जाता है और कह दिया जाता है कि वह अस्पताल सिर्फ मुस्लिमों के लिए ही है। मुख्यमंत्री दुर्भावना से ग्रस्त हैं जिस कारण मुस्लिमों को विशेषाधिकार दे रखे हैं। यही वजह है कि अब अपने हितों के लिए ममता बनर्जी जिन्हें हिन्दुओं के मतों से पश्चिम बंगाल में जीत हासिल हुई थी, वे अब हिन्दुओं के हितों की परवाह न करते हुए मुस्लिमों के तुष्टीकरण के लिए सब कुछ कर रही हैं।
तृणमूल कांग्रेस और उसकी सुप्रीमो ममता बनर्जी का इस्लामी एजेंडा पश्चिम बंगाल में बंगाली हिंदुओं की स्वतंत्रता और उनके अस्तित्व के लिए बहुत ही खतरनाक है। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी में मौजूद इस्लामी तत्वों का रवैया लोकतंत्र और सभ्य समाज के मूल्यों को तार-तार कर रहा है। ममता और तृणमूल के समर्थक बंगाल को हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर बांट रहे हैं। वह इस बात की भी अनदेखी कर रही हैं कि बंगलादेश से हिंदू शरणार्थियों के साथ अत्याचार कर उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा हैै। यही नहीं ग्रामीण और उपनगरीय पश्चिम बंगाल में इस्लामी उन्मादियों की हिंसा बढ़ रही है। इन लोगों हिन्दुओं और बंगलादेश में रहने वाले हिन्दुओं की व्यथा लगभग एक ही है। पश्चिम बंगाल में हिन्दू सत्तारूढ़ पार्टी, पुलिस-प्रशासन समर्थित इस्लामी उन्मादियों का कहर झेलने को मजबूर है। लोगों को इंडियन मुजाहिदीन, आईएसआई और पश्चिम बंगाल में अन्य इस्लामी संगठनों के बारे में तो मालूम था, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी पार्टी में जिहादी तत्वों को संरक्षण देंगी। यह भी पार्टी आगामी संसदीय चुनाव को ध्यान में रखकर दूसरे सांप्रदायिक दलों की राह पर चल पड़ी हैं। यदि इमरान को राज्यसभा सदस्य बना दिया गया तो भारतीय लोकतंत्र, अखंडता और संप्रभुता के लिए एक भयावह स्थिति पैदा हो जाएगी। एक जिहादी सोच वाले व्यक्ति को राज्यसभा में बैठाना देश के हित में नहीं है।
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