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डा़ मनोज चतुर्वेदी
ष्ट्रीय सुरक्षा किसी भी राष्ट्र की बुनियाद होती है। इसके मजबूत या कमजोर होने से व्यक्ति,समाज और
राष्ट्र प्रभावित होता है। कहा गया है कि-
शास्त्रेण रक्षिते राज्ये,शास्त्र चिंता प्रवर्ततेह्ण
अर्थात् स्वस्थ चिंतन एवं दर्शन के लिए शास्त्र रक्षित राज्य यानी समर्थ राज्य की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार स्वस्थ शरीर में बाहरी बीमारियों का आक्रमण नहीं होता ठीक उसी तरह आंतरिक स्तर पर सुरक्षा का रख-रखाव राज्य को बाहरी खतरों तथा आक्रमणों से सफलतापूर्वक सुरक्षित रखने में सहायक होता है।
जहां बाह्य सुरक्षा आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करती है वहीं आंतरिक सुरक्षा बाह्य सुरक्षा को प्रभावित करती है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जब आम आदमी का तत्कालीन सरकार की सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता से विश्वास उठ जाता है। तब पहले तो सरकार नष्ट हो जाती है और अंतत: उस देश का अस्तित्व ही विश्व के मानचित्र से तिरोहित हो जाता है।
लोकतंत्र में धन और बल के बूते आगे बढ़ने वालों की ज्यों-ज्यों संख्या बढ़ी लोगों का सरकार और इसके कामकाज से भरोसा उठता गया। एक तरफ सत्ता प्राप्ति के लिए पैसे और अपराध की टेक लगाते दागियों की टोलियां आगे बढ़ीं दूसरी ओर जनता की आस्था जनतंत्र से घटने लगी। आज संसद में विभिन्न दलों के लगभग 87 प्रतिशत दागी सांसद हैं। इन पर हत्या, बलात्कार, झूठ, फरेब, चोरी जैसे मामले दर्ज हैं। आज आज राजनीति सत्ता में बने रहने के लिए अपराधी, गुंडांे का सहारा लेती है। राजनीति का अपराधीकरण हो जाता है लेकिन जब यही अपराधी, गुंडा राजनीति में प्रवेश कर सांसद, विधायक बन जाता है तब यह स्थिति अपराधी के राजनीतिकरण की होती है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने एक बार समाजवादी पार्टी के दागी नेताओं को ह्यसुधरे हुए अपराधीह्ण कहा था तथा दूसरे दलों के राजनीतिक अपराधियों को अपराधी कहा था।
विभिन्न राजनीतिक दलों के 4807 वर्तमान सांसदों और विधायकों के शपथपत्रों का विश्लेषण एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वाच द्वारा किया गया। इनमें से 1460 (30 फीसदी) लोग खुद पर आपराधिक मामले होने की बात स्वीकार करते हैं। 688 (14 फीसदी) सांसदों और विधायकों के खिलाफ गंभीर आपरािाक मामले दर्ज हैं। राजनीति में अपराधिकरण किस सीमा तक बढ़ चुका है और इस पर रोक लगाने की प्रक्रिया कितनी निष्प्रभावी है? इसका एक उदाहरण एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की वह रिपोर्ट है जिसके मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार और कर्नाटक के 30 सांसदों और 129 विधायकों के खिलाफ भ्रष्ट आचरण के मामले चल रहे हैं। जिनमें निर्वाचन के दौरान भ्रष्टाचार, मतदाताओं को धमकी देना, पोलिंग बूथ पर फर्जी वोट डालने का प्रयास करना तथा मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित करना सम्मिलित है। किन्तु इसका निवारण अब तक नहीं हुआ जबकि जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक चुनाव के 45 दिनों के अंदर याचिका दायर करके अनुच्छेद 86(7) के अनुसार इन पर अविलंब सुनवाई कर इसके संबंध में मात्र छह माह में निर्णय आ जाना चाहिए। किंतु संसद के कार्यकाल पूरा हो जाने की अवधि तक भी इन मामलों में प्रगति नहीं होती, ऐसी स्थिति मेंे उन सांसदों, विधायकों को भ्रष्ट आचरण एवं आपराधिक छवि के आधार पर अगले चुनाव में अयोग्य उम्मीदवार घोषित ही नहीं किया जा सकता है।
आज यह स्थिति है कि दंड विधान के अंतर्गत आने वाले मामलों की पूरी जानकारी चुनाव आयोग के पास भी उपलब्ध नहीं है। वर्ष 2013 में कई मंत्री, विधायकों के लंबित अपराधीकरण, भ्रष्टाचार के मामलों के निर्णय आना राजनीति में गहराते अपराधीकरण के प्रभाव को क्षीण करने के प्रयास माने जा सकते हैं तथापि इसके नतीजे अभी संतोषजनक नहीं है।
हालांकि यह विधेयक आपराधिक छवि के उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने की प्रक्रिया को कठिन बना सकते हैं। लेकिन इससे बच निकलने का तरीका भी है। जैसे- निचली अदालत में मिली सजा को ऊपरी अदालत में चुनौती दी जा चुकी है तो इसे चुनाव लड़ने पर लगी रोक को खारिज करने की दलील बना दिया जाता है।
इसके साथ ही इस कानून का दुरुपयोग भी संभव है क्योंकि इसका प्रयोग सत्ताधारी विपक्षी दलों के मजबूत प्रत्याशियों के खिलाफ किसी भी मामले में चार्जशीट दायर करके उन्हें चुनावी मैदान से बाहर करने मेंे कर सकते हैं। जनप्रतिनिधित्व कानून मेंे चुनाव याचिकाओं के संबंध में स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी चुनाव याचिका पर अधिकतम छह माह में फैसला आना जरूरी है। यहां तक कि फैसला आने तक निरंतर सुनवाई का भी प्रावधान है। वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल मई 2014 में समाप्त हो रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव को लेकर 61 चुनाव याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिसमें स्पष्ट प्रावधान है कि दोषी लोगों के भविष्य में चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। यह भी राजनीति के अपराधीकरण तथा आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से घातक है।
पहले समाज राज्य सत्ता, अर्थ सत्ता और धर्म सत्ता द्वारा संचालित होता था। लेकिन जबसे उपरोक्त सत्ताओं पर राज्य सत्ता ने कब्जा कर लिया, तबसे समाज में ठेकेदारों, कोटेदारों, व्यवसायियों, अपराधियों, भू माफियाओं, शराब माफियाओं तथा अन्य भ्रष्ट लोगों ने हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। धन-बल के बूते आगे बढ़ते दागियों की वजह से राजनीति में पैदा हुए मौजूदा गंदलेपन की सफाई के लिए जरूरत है उस संकल्प को फिर जगाने की जहां समाज और संस्कार की जगह सत्ता से ऊपर स्थापित की गई थी।
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