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इस सन्नाटे को शांति मत समझिए.

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Jan 25, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Jan 2014 18:16:48

-अनिल कम्बोज

गालैंड में शांति प्रतीत होती है, लेकिन दुर्भाग्य से उतनी शांति नहीं है। टैक्स वसूली का एक ढांचा एनएससीएन (आईएम) के आदेश पर बना है। एक साक्षात्कार में, एनएससीएन (आईएम) के महासचिव थुईगलैंग मुइवा ने एक बार कहा था कि यह आदेश नहीं है, बल्कि एक परम्परा है, जो पहले लागू होती रही थी और अब उस पर पुन: अमल किया जा रहा है। भूमिगत गुटों द्वारा लगाए गए समानांतर टैक्स ढांचे के खिलाफ एक रैली में नागालैंड में लगभग दो महीने पहले विशाल बैनर लहराए थे। विद्रोही गुट इसे टैक्स कहते हैं, लेकिन आम जनता की दृष्टि में यह वेतनभोगी वर्ग, व्यवसायियों और ठेकेदारों से विद्रोहियों द्वारा उनकी अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए की जाने वाली जबरन वसूली है। नागालैंड के विभिन्न भागों में भी लोग एनएससीएन (आईएम) द्वारा इस तथाकथित टैक्स वसूली का विरोध कर रहे हैं और उनमें से कई लोगों ने विद्रोहियों को पिछले कुछ महीनों से भुगतान बंद कर दिया है, जिससे राज्य में तनाव पैदा हो गया है। ये विरोध प्रदर्शन इस बात को प्रतिबिंबित करते हैं कि कैसे नागालैंड में जनता की राय विद्रोहियों के खिलाफ हो रही है। सामान्य तौर पर नागा लोगों का मौजूदा नागा राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से विश्वास उठ चुका है। उनकी भावना यह है कि इन नेताओं की रुचि नागा लोगों के उनके हितों के लिए लड़ने में कम बल्कि पैसा बनाने में अधिक है। युवा पीढ़ी खासकर शिक्षित युवाओं में इन विद्रोही गुटों के लिए कोई सहानुभूति नहीं है और उनको लगता है कि बूढ़ा होता नेतृत्व बाकी युवा पीढ़ी से कट चुका है। केवल कम शिक्षित और बेरोजगार युवा इन गुटों द्वारा आकर्षित कर लिए जाते हैं। लोगों ने रैली में भाग नहीं लेने के इन विद्रोही गुटों के आह्वान को ठुकरा दिया था। अकेले नागालैंड को छोड़ दें, पूरे पूर्वोत्तर में ऐसा पहले कभी नहीं सुना गया था, क्योंकि किसी ने भी कभी एनएससीएन (आईएम) के फैसलों पर सवाल करने की हिम्मत नहीं की थी।
मुकालिमी शिविर में घटा हाल का घटनाक्रम नागा लोगों के सशक्तिकरण का एक स्पष्ट मामला है। जुन्हेबोटो जिले में मुकालिमी में एक गुट का घोषित युद्घ विराम शिविर है। 21 दिसंबर को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम (आइजैक-मुइवा) या एनएससीएन (आईएम) के कार्यकर्ताओं ने एक टैक्सी को रोका, कई यात्रियों को पीटा और दो महिला मिशनरियों के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार किया। यह दो महिलाएं सुमी या सेमा जनजाति की थीं। राज्य की राजधानी कोहिमा के पूर्वोत्तर में स्थित जुन्हेबोटो इस जनजाति का मुख्य क्षेत्र है। इस हमले से अशांति फैल गई। लोगों ने सभी प्रकार के स्थानीय हथियारों के साथ शिविर को घेर लिया और शिविर की आपूर्ति काट दी। स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई और दोनों तरफ से गोलीबारी होने लगी। 30 दिसंबर को नाराज लोगों ने एनएससीएन (आईएम) शिविर तहस-नहस कर दिया और उसे आग की भेंट चढ़ा दिया। एनएससीएन (आईएम) के कैडरों को भगा दिया गया। इस सबके बाद सुमी नागा और एनएससीएन (आईएम) के चेयरमैन इसाकचिशीस्वू इसी सेमा जनजाति के हैं। आक्रोशित विद्रोहियों ने गोलीबारी शुरू की, जिसमें पांच प्रदर्शनकारी मारे गए और एक घायल हो गया। दो उग्रवादी शिविर में मृत पाए गए।
एनएससीएन-आईएम ने पहली बार यह रहस्य खोला है कि विदेशों में उसके सैकड़ों सदस्य और कई कार्यालय हैं। टैक्स जुटाने के मसले पर अपना रुख दोहराते हुए इस संगठन ने कहा कि यह टैक्स नागालैंड, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और म्यांमार में नागाओं की आबादी वाले क्षेत्रों से उसे इसलिए इकट्ठा करना पड़ता है, ताकि विदेशों में रह रहे अपने सदस्यों को मदद दी जा सके। संगठन ने नागा काउंसिल दीमापुर के एक्शन कमेटी अगेन्स्ट अनअबेटेड टैक्सेशन एसीएयूटी को भी चेतावनी दी, जिसने लोगों से आतंकवादियों को टैक्स का भुगतान नहीं करने का आह्वान किया था। एनएससीएन (आईएम) ने आरोप लगाया था कि एसोएयूटी की नागा राष्ट्रवाद को कमजोर करने के लिए उसके विरोधियों के साथ सांठगांठ है, जिसे वह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।
रपट के अनुसार एनएससीएन-आईएम का बंगलादेश में चटगांव पहाड़ी रास्तों में कहीं एक सुदृढ़ अड्डा है, जहां से इस क्षेत्र में संगठन के शिविरों को हथियार सप्लाई किए जाते हैं। अमरीका, जर्मनी, नीदरलैंड, चीन, थाईलैंड, जापान, फिलीपींस और ब्रिटेन में भी इसके कार्यालय हैं। खुफिया सूत्रों के अनुसार संगठन विदेशों में अपने कार्यालय बनाए रखने के लिए हजारों डॉलर खर्च करता है।
विदेशों से हथियारों की खरीद और भारी भर्ती के कारण इस संगठन का वार्षिक बजट कई गुना बढ़कर एक अरब रुपए प्रतिवर्ष से अधिक का हो गया है। खुफिया सूत्रों के अनुसार एनएससीएन के लगभग 25,000 सदस्य हैं। इसके सदस्यों का वेतन 2,000 रुपए से लेकर रैंक के अनुसार 15,000 रुपए तक है। संगठन धीरे-धीरे अपनी सदस्य संख्या बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
हथियारों के थाई तस्कर विली नारूए ने, जिसे बैंकाक में 30 अगस्त, 2013 को गिरफ्तार किया था, बताया है कि चीन से हथियारों की तस्करी करके बंगलादेश के रास्ते होते हुए पूर्वोत्तर भारत में आपूर्ति की जाती है। उसने बताया कि एनएससीएन-आईएम के नेताओं के साथ मिलकर उसने पूर्वोत्तर के लिए चीन से हथियार और गोलाबारूद की एक बहुत बड़ी खेप भेजने की योजना रची थी। विली ने थाई पुलिस को बताया था कि हथियारों की यह खेप वियतनाम के निकट दक्षिण चीन सागर में बेइहेई बंदरगाह से शुरू बंगलादेश होकर बंगलादेश में कक्स बाजार तक पहुंचनी थी। गहरे समुद्र में आने के बाद बंगलादेश तक पहुंचाने के लिए इसे मछली पकड़ने वाली छोटी नौकाओं में स्थानांतरित किया जाना था, और फिर इसे पूर्वोत्तर भारत भेजा जाना था। उसके बाद एनएससीएन (आईएम) इन हथियारों को अन्य विद्रोही गुटों को बेचने वाला था।
दिसंबर के अंतिम सप्ताह में देर रात नागालैंड के दीमापुर जिले में एक नाली से नौ शव अत्यंत सड़े-गले अवस्था में बरामद किए गए थे, जिन पर गोलियों के निशान थे। इनमें से एक शव कार्बी युवा का था और इससे पड़ोसी असम के कार्बीआंगलांग जिले में हिंसा का डर फैल गया था। अगले दिन कार्बी आंगलांग जिले में नागालैंड-असम सीमा बिंदु के खटखटी में मोटरसाइकिल सवार पांच युवकों ने कथित तौर पर एक कार्बी युवक को मार डाला। 27 दिसंबर को कार्बी आंगलांग जिले में कार्बी और रेंगमा नागा के बीच टकराव से जातीय तनाव भड़क गया। संघर्ष में चार रेंगमा नागा ग्रामीण मारे गए और तीन हजार से अधिक विस्थापित हुए, जिसकी नागालैंड में तीव्र आलोचना हुई। तनाव जारी रहने के कारण लोग दीमापुर यात्रा नहीं कर पा रहे थे और वे मोकुकचुंग में फंसे हुए हैं। मोकुकचुंग से नागालैंड के दीमापुर जाने के लिए असम के कार्बीआंगलांग जिले से होकर जाना होता है। नागा आबादी वाले मणिपुर के उत्तरी जिलों में भी समय-समय पर गड़बड़ी होती रहती है।
आइजैक-मुइवा के नेतृत्व वाले नागा विद्रोही गुट एनएससीएन (आईएम) के साथ बातचीत में कोई भी ठोस प्रगति नहीं हुई है। स्वू और मुइवा के नेतृत्व वाले एनएससीएन और केंद्र सरकार के बीच 80 से अधिक दौर की वार्ता आयोजित की गई, लेकिन संघर्ष विराम के पिछले 16 वषोंर् में इन वार्ताओं से ठोस कुछ हासिल नहीं हो सका है। संगठन की मुख्य मांगों को-नागा संप्रभुता और नागा बसाहट वाले क्षेत्रों का एकीकरण- केंद्र ठुकरा चुका है। जहां तक एनएससीएन का सवाल है, उन्होंने नागा एकीकरण की मांग कुछ समय के लिए छोड़ दी है और वह बाद में इसे सरकार के समक्ष रखेगा। फिलहाल संगठन का जोर नागा बसाहट वाले क्षेत्रों में स्व-प्रशासन पर है। मांगों के चार्टर में एक ह्यअखिल-नागाह्ण और ह्यसंघीयह्ण प्रणाली की मांग शामिल है। एक संघीय प्रणाली से नागा जनता का उद्देश्य पूरा होगा। पूर्वोत्तर के संयुक्त सचिव के अनुसार, एनएससीएन (आईएम) की मांगों के संबंध में मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड की सरकारों की सहमति और भागीदारी की जरूरत है और केंद्र ने नागा विद्रोही समूह को अभी तक कोई भी उत्तर नहीं दिया है। सरकार को यह भी विश्वास नहीं है कि एनएससीएन (आईएम) द्वारा उठाई गई मांगें नागा लोगों की सामूहिक आकांक्षाएं हैं भी या नहीं। हालांकि सरकार इन तीन राज्यों में रहने वाले नागाओं को और अधिक मान्यता देने की संभावनाओं की तलाश कर रही है।  21 नवम्बर, 2013 को, एक वर्ष के अंतराल के बाद दोनों पक्षों के बीच हुई वार्ताओं में दोनों पक्षों ने फिर से जल्द ही शांति प्रक्रिया को आगे ले जाने के लिए मिलने पर सहमत हुए। ऐसा प्रतीत होता है कि केन्द्र सरकार ने एनएससीएन-आईएम के नेतृत्व को कम महत्व देना शुरू कर दिया है। सरकार को सावधान रहना होगा कि शांति प्रक्रिया में ज्यादा देरी न हो सके, क्योंकि कुछ बेचैन नेता शांति प्रक्रिया में भी अड़ंगा डालने का प्रयास कर सकते हैं।
(लेखक  सीमा सुरक्षाबल के महा निरीक्षक रह चुके हैं। )

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