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निशाने पर हिन्दू और हिन्दी

by
Jan 25, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Jan 2014 17:25:07

.जगदम्बा मल्ल

अलगाववाद, आतंकवाद और घुसपैठ-उत्तरपूर्व के राज्यों विशेषकर असम में दिखने वाले भारत की आंतरिक सुरक्षा के ये तीन महत्वपूर्ण खतरे हैं। कुछ दशक पूर्व तक इन खतरों पर भारत सरकार तथा प्रभावित राज्य सरकारों द्वारा ध्यान दिया जाता था। प्राप्त जानकारी का विश्लेषण एवं समीक्षा करके इन खतरों से निपटने के लिए कुछ प्रयास नजर आता था। राष्ट्रविरोधी तत्वों को दण्डित करते हुए भी कभी-कभार देखा जाता था। किन्तु अब तो तीनों खतरों को केन्द्र सरकार तथा कुछ राज्य सरकारों द्वारा परोक्ष बढ़ावा दिया जा रहा है। वोट बैंक का लालच इसका एकमात्र कारण है। गृहमंत्री शिंदे द्वारा दिल्ली पुलिस को आईपीएल स्पाट फिक्सिंग मामले की जांच में आतंकी दाऊद इब्राहिम के करीबी मुम्बई के एक उद्योगपति से पूछताछ से रोकना तथा उनके द्वारा राज्य सरकारों को अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को गिरफ्तार करने में सावधानी बरतने के लिए लिखना – ये दोनों कुकृत्य केन्द्र सरकार की राष्ट्रघाती तुष्टीकरण नीतियों को दर्शाते हैं।
केन्द्र सरकार के ऐसे ही कदमों से आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। चीन तथा बंगलादेश जैसे देशों से सटा असम व अन्य छोटे-छोटे राज्य  बाहर व भीतर दोनों तरफ से राष्ट्र विरोधी शक्तियों के शिकंजे में फंस गये हैं। शत्रु तत्व स्थानीय युवकों को भड़का कर भारत विरोधी गतिविधियों में लगा रहे हैं और बदले में धन एवं विलासिता के संसाधन दे रहे हैं।
आतंकवादियों की एक बड़ी योजना के तहत उत्तर-पूर्वांचल के सातों राज्यों में समय-समय पर हिन्दीभाषियों को मारने से असली चोट दिल्ली को लगती है। इन हिन्दीभाषी लोगों पर प्रहार करने वाले आतंकवादी स्थानीय भूमिगत संगठनों से संबद्ध होते हैं। उत्तर पूर्वांचल के सातों राज्यों में लगभग 40 भूमिगत संगठन आतंकवाद में लिप्त हैं। इनमें कुछ आतंकवादी संगठन चीन प्रायोजित है तो कुछ पाकिस्तान व बंगलादेश द्वारा सहायता प्राप्त हैं। अमरीका, ब्रिटेन तथा इनके सहयोगी ईसाई देश तो आजादी के पूर्व से ही यहां चर्च के माध्यम से सक्रिय हैं। नागालैण्ड और मिजोरम के आतंकवाद व अलगाववाद की जननी ही चर्च है। अब मणिपुर भी चर्च प्रायोजित आतंकवाद के गिरफ्त में आता जा रहा है।
ईसाई- मुसलमान-कम्युनिस्ट- ये तीनों ही परस्पर विरोधी हैं व एक-दूसरे के शत्रु हैं। प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, जापान के नागासाकी व हिरोशिमा पर अणुबम वर्षा, अफगानिस्तान का विनाश, ईरान-इराक युद्ध, इस्रायल-फिलिस्तीन का सतत् संघर्ष, श्रीलंका में आतंकवाद अथवा अफ्रीकी देशों में नीग्रो बन्धुओं का नरसंहार एवं तिब्बत के बौद्ध लोगों का नरसंहार उपरोक्त तीनों शक्तियों-ईसाई- मुसलमान- कम्युनिस्ट के स्वार्थ की लड़ाई के परिणाम हैं। भारतवर्ष को मिटा देने के लिए गत हजार वर्षों से ये तीनों शक्तियां अपने दम पर प्रयास कर रही हैं। इन्होंने लाखों लोगों की बलि चढ़ाई है।
शत्रु का शत्रु मित्र होता है- इस सिद्धांत के तहत इन शक्तियों ने ताल-मेल बैठाकर उत्तर-पूर्वाचल को अपना संयुक्त निशाना बनाया है। इस उत्तर-पूर्वांचल की भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण है। अमरीका व ब्रिटेन की गिद्ध-दृष्टि यहां की भूमि के साथ यहां के खनिज व वन संपदा पर भी है। ईसाई देश यहां अपनी सैनिक छावनी स्थापित करना चाहते हैं ताकि चीन, पाक व बंगलादेश के साथ ही भारतवर्ष को अपनी मुट्ठी में रख सकें। इसे सैनिक युद्ध कर हासिल करना आज कठिन है। इसलिए यहां अदृश्य लड़ाई छेड़ रखी है। चर्च इन ईसाई देशों का बड़ा प्रभावी शस्त्र है। नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय और मणिपुर में अपना सिक्का जमा लेने के बाद अब अरुणाचल प्रदेश चर्च के निशाने पर है, जहां अबाध गति से मतांतरण कार्य में बिशप लगे हुए हैं। चांगलांग व तिरप जिले चर्च प्रायोजित नागा आतंकवाद के गिरफ्त में आ चुका है।
सारे पूर्वांचल में बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ निरन्तर बिना रोक टोक के हो रही है। नागालैण्ड, मणिपुर व मेघालय में भीतर के गांवों तक पहुंच गये हैं। मिजोरम व अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश कर रहे हैं। अन्तरराष्ट्रीय सीमा असुरक्षित व बाड़ रहित है, जहां बाड़ लगाई गई है वहां भी नदी-नालों तथा सुरंग बनाकर बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ जारी है। असम इस घुसपैठ की मार से कराह रहा है। केन्द्र सरकार घुसपैठ रोकने के बजाय सीमावर्ती इलाकों विशेषकर बंगलादेश की सीमा पर सीमा बाजार लगवा रही है। इस बाजार में आने के बाद बंगलादेशी मुसलमान भारत की सीमा में घुस कर खो जाते हैं। यहां के मस्जिद, मदरसे तथा दृश्य-अदृश्य मुस्लिम संगठन इनकी आगे की व्यवस्था करते हैं। इनके लिए जमीन के फर्जी कागज व फर्जी आवास प्रमाण-पत्र उपलब्ध करवाते हैं। असम के विभिन्न क्षेत्रो में बंगलादेशी मुसलमानों ने अनेक छोटे पाकिस्तान बना दिए हैं। वहां हिन्दुओं पर अत्याचार होते हैं और उनकी जमीन हड़प ली जाती है। केन्द्र सरकार की भांति ही तरुण गोगोई की सरकार इन मुसलमानों का ही पक्ष लेती है। दो साल पूर्व असम के उदालगुड़ी नामक गांव में इन मुसलमानों ने पाकिस्तानी झंडे फहराए। परिणामत: खींचतान हुई। दोनों पक्षों के दर्जनों लोग हताहत हुए सैकड़ों घर जला दिए गये। किन्तु राज्य सरकार व केन्द्र सरकार सिर्फ बयानबाजी करती रहे। त्रिपुरा भी इसी समस्या से ग्रस्त है। आईएसआई सहित अनेक जिहादी मुस्लिम संगठन यहां खुलेआम कार्यरत हैं। असम की आन्तरिक सुरक्षा जर्जर हो गई है। आतंकवादियों का मनोबल ऊंचा है तथा हिन्दू समाज असुरक्षित है। उत्तर पूर्वांचल को निगलने के लिए चीन अपनी योजना पर कार्यरत है। अल्फा तथा मणिपुर के आतंकियों को चीन शस्त्र उपलब्ध करवाता है। बंगलादेश के काक्स बाजार में रायफलें खुले में बिकती हैं। इनके अलावा इस क्षेत्र में माओवादी फैलते जा रहे हैं। इस पूरे क्षेत्र में प्रशान्त भूषण व स्वामी अग्निवेश जैसे मानव अधिकारवादियों की भरमार है, जो समय-समय आतंकवादियों की वकालत करते हैं। एक तरफ आतंकवादी संगठनों की समानान्तर सरकार है तो दूसरी तरफ रीढ़ विहीन केन्द्र सरकार के कारण राज्य सरकार इन आतंकवादियों से गुप्त समझौता कर अपने दिन काट रही है। आर्थिक विकास, उत्तम शिक्षा, उद्योग, स्वास्थ्य सुविधा, परिवहन की कठिनाई तथा अन्य अनेक कारणों से यहां के युवकों में क्षोभ है। इसका लाभ अन्तरराष्ट्रीय शक्तियां लेती हैं और उनको भारत विरोधी संगठनों में नियुक्त कर लेती हैं। इतना ही नहीं, पूरे क्षेत्र की शांति व्यवस्था को भंग करने के लिए यह संघर्ष कराती है, मतांतरण करके चर्च के जाल में फंसाती हैं और उनको अपने देश व समाज के विरुद्ध घातक शस्त्र थमा देती हैं।
कुछ समय से हिन्दी भाषियों के खिलाफ नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैण्ड के संगबिजित गुट का कहर 17 जनवरी से जारी है और 48 घंटे के अन्दर 8 हिन्दीभाषियों की हत्या कर दी गई है। ऐसे तनाव के समय मन्दिरों पर भी आक्रमण होता है किन्तु दंगा प्रभावित क्षेत्र के न तो किसी चर्च पर और न ही किसी मस्जिद पर कोई हाथ उठाता है।
कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स तथा रेंगमा हिल्स डिफेंस फोर्स के आपसी संघर्ष में 17 लोगों की जानें गईं है। इनमें से 9 कार्बी युवकों की लाशें थी नागालैण्ड के चौकी टोला क्षेत्र में यह उपद्रव चल ही रहा था कि बोडोलैण्ड में हिन्दीभाषियों का संहार किया जाने लगा। इसके पूर्व कार्बी-दिमासा संघर्ष, दिमासा-जेमी संघर्ष, दिमासा-मार संघर्ष, गारो-राभा संघर्ष तथा राभा समाज के आन्तरिक कलह में सैकड़ों लोग मारे गये हैं। अनेक गांव उजड़ गये तथा करोड़ों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ। इतना ही नहीं, पूरे उत्तर-पूर्वांचल की दिव्य संस्कृति, विभिन्न पूजा पद्धतियां तथा उनकी सांस्कृतिक विरासत दांव पर चढ़ गई हैं। लोग भयग्रस्त हैं, आर्थिक विकास को ग्रहण लग गया है। आन्तरिक सुरक्षा मानो है ही नहीं। केन्द्र सरकार तो 2014 के चुनाव पर टकटकी लगाये हुए है। राज्य सरकारें भी कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहती। इस प्रकार सारे उत्तर-पूर्वांचल का विकास एवं आन्तरिक/ बाह्य सुरक्षा भगवान भरोसे है।

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