मुस्लिम रक्षा के नाम परचीन में घुसा अल कायदा.
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मुस्लिम रक्षा के नाम परचीन में घुसा अल कायदा.

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Jan 18, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Jan 2014 15:18:39

.2014 में अमरीकी सेना भले ही अफगानिस्तान से लौटने की तैयारियां कर रही हो, लेकिन दुनिया की कोई न कोई ताकत इस क्षेत्र में फिर से सक्रिय हो सकती है। मध्य  एशिया में मुस्लिम राष्ट्रों का जमावड़ा प्राचीन काल से रहा है। इसलिए कोई भी आतंकवादी संगठन हो उसे फैलने और पनपने का जितना अच्छा अवसर यहां मिलता है किसी अन्य क्षेत्र में नहीं। विश्व शक्तियों को इस बात का भ्रम है कि अफगानिस्तान से अमरीका यदि चला जाता है तो  फिर इस क्षेत्र में आतंकवाद को कोई स्थान नहीं रहेगा। लेकिन आतंकवादी अब अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिम देशों की वह सेना हैं जो किसी न किसी रूप में बनी रहना चाहती है। भौगोलिक दृष्टि से आतंकवादियों के लिए यह स्थल सबसे अधिक आदर्शवादी एवं सुविधाजनक है। इसलिए अल कायदा की निगाहें बहुत पहले से इस पर टिकी हुई हैं। अमरीका का यह मानना था कि उसके चले जाने के बाद आतंकवादियों को यहां कोई पूछने वाला नहीं है। इस लिए उनका चलचलाव तय है। लेकिन इन दिनों जो समाचार आ रहे हैं उससे लगता है अल कायदा यहां से अपने अड्डों का स्थानान्तरण चीन के सिंक्यांग वाले प्रदेश में करने की योजना बना रहा है। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि भूतकाल में अमरीका ने जो कुछ भुगता अब वही भुगतने की बारी चीन की आने वाली है। चीन और अमरीका भले ही मित्र हों लेकिन दोनों के ही मन में सर्वशक्तिमान बनने की लालसा तो हर समय रहने वाली है। इसलिए अमरीका का प्रतिस्पर्धी चीन अल कायदा से पीडि़त होकर कमजोर होता है तो वह इसके लिए भला क्यों चिंता करने लगा?
सिंक्यांग चीन का रिसता घाव है। अभी कुछ समय पूर्व चीन ने अपने इस प्रदेश में रमजान पर प्रतिबंध लगा दिया था। कोई भी सिंक्यांग का मुस्लिम रोजा नहीं रखेगा और न ही रमजान में नमाज करने के लिए बार-बार मस्जिदों की ओर अपना रुख करेगा। सिंक्यांग में मुस्लिम बहुमत में हैं। वे अपने इस प्रदेश को स्वतंत्र कराने के लिए निरतंर प्रयास कर रहे हैं। अपनी आजादी की मांग को दुनिया के सम्मुख प्रस्तुत करने के लिए कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते हैं। चीन में जब ओलम्पिक आयोजित किए गए थे उस समय चीन की गुप्तचर एजेंसी ने सरकार को यह सूचना दी थी कि 122 उइगर (सिंक्यांगी) मुस्लिम किसी भी समय ओलम्पिक नगर पर हमला कर इस विश्व आयोजन में सेंध लगा सकते हैं। सिंक्यांग में बसने वाले मुस्लिमों को उइगर कहा जाता है। ओलम्पिक समाप्त होने तक तो चीन के सत्ताधीशों ने कोई कार्यवाही नहीं की। लेकिन जिस दिन ओलम्पिक समारोह का समापन हुआ उसके दूसरे दिन ही इन 122 उइगर आतंकवादियों को गोली से उड़ा दिया गया। पिछले अनेक वर्षों से वे अपने इस प्रदेश को चीन से स्वतंत्र करवा कर अपनी सत्ता कायम करना चाहते हैं। सिक्यांग के मुस्लिम अपनी मजहबी कट्टरता के लिए जाने माने हैं। लम्बी दाढ़ी उनकी सबसे बड़ी पहचान है। नमाज के बहाने वे मस्जिदों में चीन के विरुद्ध अपने षड्यंत्र रचने में माहिर हैं। इसलिए चीन सरकार उइगर मुुस्लिम को किसी प्रकार की मजहबी स्वतंत्रता प्रदान नहीं करती है। इसके बावजूद उइगर का कहना है कि हम एक दिन अपना देश स्वतंत्रत करवा के ही रहेंगे। पिछले दिनों 16 उइगर की काशकार टाउन में हत्या करके उन्होंने आग में घी डालने का काम किया है। पिछले दिनों जिस तरह से अमरीका ने ईरान को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया उसके पश्चात एक भी मुस्लिम देश ने इस हत्याकांड पर अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। कुछ उइगरों ने जब चीन सरकार के सामने आपत्ति उठाई तो बहुत बड़ी संख्या में उइगर जनता को गिरफ्तार कर लिया। अब उनकी रिहाई के लिए यह शर्त रख दी गई है कि उनके वकील इस बात का शपथ पत्र प्रस्तुत करेंगे कि उइगरों के परिवार में कोई दाढ़ी नहीं रखेगा और महिलाएं बुर्के का उपयोग नहीं करेंगी। मुस्लिम देश पिछले दिनों अमरीका के चंगुल से आजाद हो गए हैं तो अब चीन के शिकंजे में फंस चुके हैं। सऊदी अरब  अमरीका से दूरी बना रहा है और चीन उसके निकट सरकता हुआ नजर आ रहा है। चीन सऊदी अरब में धड़ल्ले से अपने उद्योग लगा रहा है। सऊदी अरब ने अब चीन को अमरीका के स्थान पर स्वीकार कर लिया है। इसलिए सिंक्यांग में चीन जो कुछ कर रहा है उस पर सऊदी अरब बिल्कुल मौन है। एक ऐसा समय था जब दुनिया के मुस्लिम देशों ने सऊदी अरब को अपना नेता मान लिया था। लेकिन जब फिलिस्तीन के मामले में सऊदी अरब कुछ नहीं कर सकता तो फिर सिंक्यांग की बात तो बहुत दूर की है। यही स्थिति ईरान की है। कल तक ईरान एक बड़ी शक्ति के रूप में अमरीका को आंखें  दिखाता था। सीरिया के मामले में तो वह मुस्लिम राष्ट्रों के एक बड़े हिस्से का नेता बन गया था। लेकिन पिछले दिनों अमरीका से उसने भी समझौता कर लिया। चीन के लिए इससे बढ़कर अच्छा अवसर क्या हो सकता है? इसलिए कुल मिलाकर चीन को खुला मैदान मिला गया है। उइगर  की ताकत को तोड़ने का इससे अच्छा अवसर चीन को और क्या मिल सकता है?
सिंक्यांग के यह उइगर  सबसे अधिक नाराज हैं तो पाकिस्तान से हैं। पाक सरकार ने उइगर  की कथा व्यथा न कभी सुनी और न ही उनके मामले को गहराई से समझा। इसके बावजूद पाक सरकार के उइगर  की संस्था को अवैध घोषित कर उस पर प्रतिबंध लगा दिया। जो इस्लामाबाद हर मामले में इस्लाम की दुहाई देता है। उसने यह भी नहीं समझा कि उइगर का मामला क्या है? पाक सरकार ने वहां रह रहे कुछ उइगर नागरिकों को देश से बाहर निकाल दिया। सिंक्यांगी उइगर को इस बात पर आश्चर्य है कि इस्लामाबाद तो हर मामले में इस्लाम का नारा लगाता रहता है। अपने आपको मुस्लिम रक्षक कहने वाला पाकिस्तान फिर चीन के सामने गिड़-गिड़ाकर कर घुटने टेकने पर मजबूर क्यो हो गया?

पिछले दिनों सिंक्यांग में अज्ञात लोगों ने दो चीनी पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। वर्दीधारी पुलिस को किसने और क्यों मारा इसका कारण अब तक मालूम नहीं हुआ है, लेकिन चीन सरकार का सोचना है कि यह कार्यवाही उइगर लोगों की है। बस फिर क्या था  उनसे बदला लेने के लिए पुलिस ने 14 उइगर की हत्या कर दी। इस घटना से सनसनी फैल गई। चीनी पुलिस और उइगर आमने-सामने आ गए। मुट्ठी भर उइगर शस्त्रधारी पुलिस के सामने क्या टिकते? लेकिन उइगर ने जिस बहादुरी से उनका सामना किया उसने पुलिस में भय पैदा कर दिया। उइगर के पास किसी प्रकार के आधुनिक हथियार नहीं हैं। लेकिन फिर भी अपने पारम्परिक हथियारों से वे चीन की नींद हराम किए हुए हैं। चीनी प्रशासन को विश्वास हो गया है कि इस हिंसा के पीछे केवल उइगर मुस्लिमों का ही हाथ है। चीनी सेना द्वारा पकड़े गए उइगर मुसलमानों को छोड़ने की शतंर्े इतनी कठोर रखी जाती हैं कि उन्हें स्वीकार करना मुश्किल होता है। केवल वित्तीय और राजनीतिक शर्तें ही नहीं बल्कि उनसे धर्म के मामले में भी समझौता करने के लिए दबाव डाला जाता है। इनमें पहली शर्त यह है कि वे अपनी पहचान मुसलमान की न रखकर चीनी नागरिक के रूप में रखें। इनमें दाढ़ी पर प्रतिबंध होगा और महिलाएं किसी भी प्रकार का पर्दा नहीं करेंगी। उनकी बातचीत की भाषा चीनी होगी। अपने समस्त धर्म ग्रंथों का उन्हें चीनी भाषा में अनुवाद करना होगा। कुरान भी चीनी भाषा में देनी होगी। उइगर के प्रवक्ता का कहना है है कि चीन की सरकार ने सख्ती से वकीलों को कह दिया है कि वे किसी उइगर मुस्लिम का मामला अदालत  में चुनौती देने के लिए स्वीकार नहीं करेंगे। सिंक्यांग में उइगरों को आतंकवादी बतलाकर खिन्न चीन वहां के मुस्लिमों पर अपने अत्याचारों को न्यायिक ठहराने का प्रयास कर रहा है। चीन में तुर्क भाषा बोलने वाले उइगरोंं की संख्या 90 लाख बतलाई गई है। उइगरअपने इस भाग को पूर्वी तुर्कमीनिस्तान के नाम से सम्बोधित करते हैं। उनका यह पक्का विश्वास है कि उनके बलिदान व्यर्थ नहीं जाने वाले हैं। एक दिन इस भूभाग पर उनका देश बनकर रहेगा। अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग जब चीनी सत्ता पर इस प्रकार का दबाव लाता है कि उइगर के अधिकारों के प्रति बीजिंग लापरवाही नहीं बरत सकता है तब वहां के सत्ताधीशों का उत्तर होता है कि क्या वे अपने देश के भीतर किसी नए देश को स्वीकार कर लें? एक-एक सत्ता के समानान्तर दूसरी सत्ता किस प्रकार हो सकती है? उइगर का कहना है कि वे तो 1955 से अपने स्वतंत्र देश की मांग कर रहे हैं। चीनीयों ने उन पर जोर- जबरदस्ती से कब्जा कर रखा है। उन्हें एक दिन जाना ही होगा। उइगरों का तर्क है कि चीन ने अपनी आजादी के बाद न जाने कितने देशों की सीमाओं में घुसकर जोर-जबरदस्ती से कब्जा किया है। उसी कड़ी में पर्वी तुर्कमीनिस्तान को भी उन्होंने दबोच लिया है। किसी के धर्म को प्रतिबंधित करके वे  की पहचान के नहीं भुला सकते हैं। अत्याचार की हद तो यह है कि कोई उइगर जब चीनी सेवा में से मुक्त होता है तो उसे पेंशन तक नहीं दी जाती है। पिछले दिनों पाकिस्तान ने जब सिंक्यांग के उइगरों से सम्पर्क बनाने की कोशिश की थी तो चीन ने पाकिस्तान को सतर्क किया था कि वह चीन के भीतरी मामलों में हस्तक्षेप न करे। लेकिन उइगरों ने अपना मामला अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम संगठन, जो समस्त मुस्लिम देशों के मामलों पर नजर दौड़ा कर उन्हें हल करने का प्रयास करता है, इसे चीन के सम्मुख उठाया था। लेकिन चीन ने उनको भी टका सा जवाब देकर मौन कर दिया। पाकिस्तान और सिंक्यांग की सरहदें मिलती हैं। उइगरों को इस पर दु:ख है कि पाकिस्तान ने पीठ दिखा दी। राजनीति की सूझ-बूझ रखने वालों का कहना है कि इस स्थिति का लाभ अल काइदा उठा रहा है। पिछले दिनों सीरिया से यह समाचार मिला था कि उइगरों की एक टोली बशरुल असद के विरुद्ध लड़ाई में शामिल हुई थी। इसका अर्थ यह है कि एक उइगर अल कायदा के कंधों पर चढ़कर अपना स्वतंत्रता आन्दोलन भी तेज कर देंगे।

मुजफ्फर हुसैन

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