अलौकिक ऊर्जा का स्रोत है माघ मेला
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अलौकिक ऊर्जा का स्रोत है माघ मेला

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Jan 18, 2014, 12:00 am IST
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दिंनाक: 18 Jan 2014 14:24:24

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-हरिमंगल-

पौष पूर्णिमा के पावन पर्व से गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम तट पर विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम शुरू हुआ। मुख्य रूप से माघ मास तक चलने वाले इस धार्मिक मेले में देश-विदेश से करोड़ों लोग स्नान, दान, जप, तप, भजन, प्रवचन के लिए यहां आते हैं। हिन्दू समाज के पूज्य शंकराचार्य, श्री रामानुजाचार्य, श्री रामानन्दाचार्य, कबीर पंथी, सिख धर्म गुरु, जैन मतावलम्बी सहित विभिन्न मतों से जुड़े धर्माचार्यों, आचार्य, साधु-संतों के साथ-साथ उनके श्रद्धालुओं का विशाल समागम यहां होता है, जो माघ मेला के नाम से विख्यात है।
पौराणिक मान्यता है कि पावन संगम तट पर बसे प्रयाग का विस्तार चार योजन तक है। इस सीमा तक किये गये सारे पाप और पुण्य प्रयाग के खाते में आते हैं। संगम तट पर पूरे माघ मास तक चलने वाले धार्मिक आयोजनों के विषय में कहा जाता है कि माघ मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो वह पृथ्वी के समीप होता है, साथ ही चन्द्रमा भी पृथ्वी के समीप होता है, इसी समय चन्द्रमा की पृथ्वी से निकटता का प्रभाव संगम के जल पर पड़ता है, जो मानव जीवन के लिए शुभ और लाभकारी होता है। इसी विश्वास और मान्यताओं के चलते हर वर्ष करोड़ों लोग संगम तट पर पुण्य और मोक्ष की कामना लेकर यहां आते हैं।
संगम तट पर आयोजित होने वाले इस धार्मिक आयोजन का इतिहास सिन्धु घाटी की सभ्यता से भी प्राचीन है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि समुद्र मंथन में निकले अमृत कलश को छिपाने के लिए गरुड़ को मृत्युलोक में आना पड़ा था। गरुड़ ने जहां-जहां अमृत कलश रखा था और अमृत की बूंदे छलकीं वहां-वहां पावन तीर्थ बन गये। ये पावन तीर्थ प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन हैं। इन्हीं चारो तीर्थों में हिन्दुओं के सबसे पावन धार्मिक आयोजन कुंभ की परम्परा है।
संगम तट पर आयोजित होने वाले इस मेले के लिए 3 प्रमुख तिथियां स्नान, दान व अन्य शुभ कार्यों के लिए प्रचलित हैं। इनमें पौष पूर्णिमा, माघ अमावस्या और माघ पूर्णिमा है। यद्यपि इन पर्वों पर आने वाली भारी भीड़ ने स्थानीय लोगों के लिए अन्य तिथि वसंत पंचमी को मुख्य पर्व में शामिल कर दिया है। मुख्य तिथियों का अपना अलग-अलग इतिहास है। संगम तट पर 12वें वर्ष लगने वाले कुंभ मेले का इतिहास पहली बार 3464 ईसा पूर्व का मिलता है। इस समय नागा संन्यासी माघ मास की अमावस्या पर संगम स्नान को आते थे, ईसा पूर्व 2382 में महर्षि विश्वामित्र ने माघ मास की पूर्णिमा पर संगम स्नान का महत्व स्थापित किया। जबकि वेदांग के महर्षि ज्योतिष ने ईसा पूर्व 1302 में पौष पूर्णिमा पर संगम स्नान, दान के महत्व का उल्लेख किया है। आज प्रचलित इन पर्वों में माघ मास की अमावस्या सबसे बड़ा स्नान पर्व बन गया है।
धर्म ग्रंथों में माघ मास में प्रयाग का संगम स्नान व गंगा स्नान का महत्व अधिक तो संक्षिप्त रूप में पुराण में स्नान के महत्व के विषय में कहा गया है-
अश्वमेघादि कृत्वेको माघकृत तीर्थ नायके।
माघ स्नात्य नामोर्यध्ये पावनत्वेन लक्षयते।।
अर्थात माघ मास में तीर्थ राज प्रयाग में स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ करने जैसा फल प्राप्त होता है और मनुष्य सर्वथा पवित्र हो जाता है।
पदम् पुराण के अनुसार माघ मास में व्रत, दान व तपस्या से भगवान को उतनी प्रसन्नता नहीं होती है जितनी माघ मास में स्नान से होती है।
धर्म ग्रन्थों में तो प्रयाग का मान बढ़ाते हुए कहा गया है कि-
माघ मासे गमिष्यन्ति गंगा यमुनासंगमें
बह्मविष्णु महादेव रुद्रादित्य मरुदगणा:।।
अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रुद्र, आदित्य तथा मरुद गण माघ मास में प्रयाग राज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।
प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानरूप यद्धवेत।
दशाश्वेघसहस्त्रेण तत्फलम् लभते भुवि।।
प्रयाग में माघ मास के अन्दर तीन बार स्नान करने से जो फल मिलता है, वह पृथ्वी में दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है।
प्रयाग का धार्मिक, पौराणिक, अलौकिक और आध्यात्मिक महत्व आज के भौतिकवादी युग में भी कम नहीं हुआ है। मन में बैठा पाप का डर और पुण्य, मोक्ष, संकटों से मुक्ति की कामना लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ स्वमेव संगम की ओर खिंची चली आती है। इनमें लाखों श्रद्धालु ऐसे हैं, जो पूरे माघ मास संगम तट पर रह कर स्नान, दान, पूजा, पाठ के साथ धार्मिक आयोजनों में शामिल होते हैं। ऐसे श्रद्धालुओं को कल्पवासी कहा जाता है।
कल्पवास के अपने नियम हैं, जिसमें हमारे जीवन के नियम बनते हैं। वाघम्बरी मठ के आचार्य आनन्द गिरी कहते हैं, ह्यहमें क्या खाना चाहिए, कब और क्या करना चाहिए, हमें लोगों के लिए कैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, संत के सान्निध्य में कैसे बैठना चाहिए, धार्मिक आयोजनों, कथाओं और यज्ञों में कैसे भागीदार बनना चाहिए, यह सहज ज्ञान कल्पवासी को ही हो पाता है।ह्ण
वैसे तो मकर संक्रांति और पौष पूर्णिमा का पर्व अलग-अलग तिथियों पर पड़ता है परन्तु इस बार कालचक्र का ऐसा संयोग बना कि यहां दोनों पर्व एक साथ आये। लाखों लोगों की भीड़ संगम स्नान के लिए उमड़ पड़ी है उस आध्यात्मिक, अलौकिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए जिसे सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। यह क्रम अब पूरे माघ मास तक चलता रहेगा। मौनी अमावस्या (30 जनवरी), वसंत पंचमी (4 फरवरी) और माघी पूर्णिमा (14 फरवरी) को श्रद्धालुओं की संख्या करोड़ों में पहुंचेगी। संगम के तट पर लघु भारत की झलक दिखायी पड़ती है। जाति-पाति, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, गोरे-काले या भाषा का कोई भेदभाव यहां नहीं दिखता है। दिखती है तो लोगों की गंगा में डुबकी।  

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