सम्पादकीय : जाग रहा है देश
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सम्पादकीय : जाग रहा है देश

by
Jan 11, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Jan 2014 13:38:02

ज्ञानियों का प्रमाद ही अज्ञानियों की संजीवनी है। दूसरे शब्दों में कहें तो, सही बात करने वाले जब सोते रहते हैं तो गलत बात करने वालों की बन आती है। मगर अब लगता है कि सदियों से ऊंघते समाज की नींद टूटने लगी है। सही बात करने वालों के साथ देश खड़ा है और गलत बात अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बीते दिनों की दो घटनाएं इस संदर्भ में गंभीरता से संज्ञान लिए जाने योग्य हैं।
मध्य प्रदेश के जबलपुर में संघ के संकल्प-महाशिविर में राष्ट्रहित की शपथ लेते हुए एक लाख नागरिकों का अप्रतिम उद्घोष ना तो अनसुना करने वाली बात है और ना ही यह मानने की कोई वजह कि यह स्थान विशेष पर युवाओं द्वारा व्यक्त कोई तात्कालिक अथवा क्षणिक भंगिमा है। दूसरी घटना है आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता प्रशांत भूषण के कश्मीर पर भारत विरोधी बयान के बाद देश भर से मिली तीव्र-कठोर प्रतिक्रिया।
ठीक का सत्कार और गलत का प्रतिकार, समाज जागरण का यही तो लक्षण है। मध्य प्रदेश के संकल्प-महाशिविर का असर समापन के बाद भी स्मृति में अंकित रह जाने वाली बात है। अनुशासन और व्यवस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों में सदा ही उपस्थित रहने वाला तत्व है, विशेष है तो भारत के हित में जुड़े दर्जनों विषयों पर युवाओं द्वारा प्रदर्शित अप्रतिम उत्साह। 19 अलग-अलग दीर्घाओं में दर्शकों का अद्भुत प्रतिसाद। जिस पीढ़ी के लिए देश की बात छिड़ते ही छिटकने और ह्यबोरह्ण हो जाने की बात कही जाती थी यहां उसकी रुचि और सहभागिता बता रही थी कि जड़ों से जुड़ाव कितना गहरा है और वह सिर्फ तकनीक के तारों से नहीं बंधी।
अब बात आम आदमी पार्टी के नेता के उस बयान की जिसने देश भर में लोगों का गुस्सा भड़का दिया। हालांकि बयान के ठीक बाद पार्टी के कार्यालय पर हुए हमले की किसी भी घटना को, किसी भी तरह ठीक नहीं ठहराया जा सकता, किंतु युवाओं की यह त्वरित उग्र प्रतिक्रिया इस बात का स्पष्ट संकेत भी है कि पलभर पहले दुलारने वाली जनता बेढंगी बातों पर उन्हीं नेताओं को बुरी तरह फटकार भी सकती है।
प्रशांत भूषण ने अशांतिपूर्ण बयान देकर अपना मुंह तो जला ही लिया, उनकी पार्टी का यह भ्रम भी तोड़ दिया कि नई पीढ़ी सही-गलत हर मामले में झाड़ू उठाए आआपा के साथ है।
देश की इस टूटती नींद में कई भ्रम भी दरक गए। पहला, भले प्रशांत भूषण कितने ही ज्येष्ठ वकील हों, देश और इसकी भावनाओं से ऊपर वे नहीं हो सकते। दूसरा, बुद्धिजीविता के कलेवर में लिपटे अधकचरे तथ्य और मानवाधिकार के पर्दे का सत्य अब देश को पता चल चुका है।
लोग जानते हैं कि कश्मीर को समस्या बताने और बनाए रखने वाले कौन हैं, जनता जानती है कि लद्दाख और जम्मू का जिक्र करे बगैर सिर्फ कश्मीर को पूरे राज्य के तौर पर पेश करने वालों के मंसूबे क्या हैं। देश को पता है कि उसके एक हिस्से पर अलगाव का अलाव जलाए बैठे चंद चेहरे राज्य की पूरी जनता का ना तो प्रतिनिधित्व करते हैं और ना ही ऐसी क्षमता रखते हैं और सिर्फ पैरोकारों के बल पर खड़े हैं।
भारत के लिए यह शुभ लक्षण है कि इसकी नई पीढ़ी में देश के बारे में जानने-समझने की भारी भूख है। दशकों से दबे हजारों पन्ने हर पल पलटे जा रहे हैं। पाठ्यक्रम में खो गए सुभाष चंद्र बोस साइबर जगत में तलाश लिए गए हैं। सरदार पटेल को पीछे धकेलने की कहानी अभिलेखागार की धूल में दबने वाली बात नहीं 'व्हाट्स एप' का धधकता विचार है। विलय और विवादों की असली वजहें सोशल मीडिया पर विमर्श खड़ा कर रही हैं। आधी रात की आजादी का पूरा सच युवा अब समझना चाहते हैं। इसके लिए वे साथ आ रहे हैं, समझ बढ़ा रहे हैं और गलत बातों को एक झटके में खारिज भी कर रहे हैं। जय हो।

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