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शाश्वत मूल्यों के संवाहक: स्वामी विवेकानंद

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Jan 11, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Jan 2014 13:20:32

यह वर्ष स्वामी विवेकानंद की सार्द्ध शती के रूप में मनाया जा रहा है। इसके चलते पूरे वर्ष अनेक प्रकाशकों ने कई तरह की पुस्तकें प्रकाशित कीं। इसी क्रम में पूर्व राज्यपाल, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, राज्यसभा सदस्य एवं सविधान विशेषज्ञ डॉ.एम.रामा ज्वाइस द्वारा लिखित कुछ अलग तरह की पुस्तक ह्यबी इममॅारटलह्ण प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में लेखक ने स्वामी विवेकानंद के उन सभी विचारों और संदेशों कोे पुस्तक में संकलित किया है, जो एक सजक नागरिक और शाश्वत मूल्यों वाला मनुष्य बनाने के लिए आवश्यक है। पुस्तक की भूमिका में वह लिखते हैं कि हमारी यद्यपि जीवन शैली को दिशा देने  में स्वामी विवेकानंद की सबसे बड़ी सहभागिता यह रही है कि उन्होंने सेवा और त्याग के जरिए शांतिपूर्वक क्रांति के लिए प्रेरित किया है। उनका कहना था कि भारतीय संस्कृति के निहित यही वह शाश्वत मूल्य है, जो  की सर्वोन्मुखी प्रगति में सहायक सिद्ध हो सकती है।
स्वामी जी भारतीय शिक्षा व्यवस्था को यहां की सास्कृतिक और सामाजिक संख्या के अनुकूल नहीं मानते थे। उनका कहना था कि यूरोपीय शिक्षा पद्धति भारतीय परिवेश के सर्वथा अनुकूल नहीं है। मानवीय मूल्यों और चरित्र निर्माण में सहायक शिक्षा पद्धति से ही राष्ट्र के समक्ष तमाम संकटों का निवारण हो सकता है।
तीन भागो में विभाजित इस पुस्तक के पहले  खण्ड में कुल 6 अध्याय हंै, जिनमें लेखक ने स्वामी जी के संदेशों को विस्तार से व्याख्यायित किया है। संस्कृति राष्ट्रीयता की अवधारणा हो या कर्तव्यनिष्ठ समाज की संरचना के लिए जरूरी तत्व, प्रत्य्क स्त्री को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने की बात हो या सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में मानने की अवधारणा अनेक ऐसे ही बिदुंओं पर स्वामी जी के संदेशों को लेखक ने अच्छे ढंग से स्पष्ट किया है।
पुस्तक के दूसरे खण्ड में लेखक ने धर्म की अवधारणा और उसके व्यापक गहन अर्थो को अनेक  उदाहरणों के जरिए स्पष्ट किया है।  इसमें धर्म की प्रचलित संकीर्णताओं को खारिज करते हुए धर्माधारित मानवाधिकार को भी  विस्तार से बताया गया है। प्रसन्नता का अधिकार, मानवाधिकार, शिक्षा का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, सहिष्णुता का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, कर्मचारियों  को उचित पारिश्रमिक और वर्ताव का अधिकार, पुरुषों  के द्वारा स्त्रियों की जीवन पर्यन्त सुरक्षा का अधिकार, निरपेक्ष और तीव्र न्याय पाने  का अधिकार जैसे मानवाधिकार की चर्चा करते हुए लेखक ने स्पष्ट किया है कि ये सभी नीतियां हमारी संस्कृति और धार्मिक ग्रंथो में पहले से ही मौजूद हंै। कहने का स्पष्ट अर्थ है कि यदि हर व्यक्ति धर्मानुसार अपने भाषण को स्वैच्क्षिक रूप से सुधार लें और नीतियों की माने तो समाज में किसी तरह की अराजकता के लिए स्थान ही नहीं बचेगा। पुस्तक का तीसरा खण्ड सबसे महत्वपूर्ण है, जिसमें लेखक ने स्वामी जी के सम्पूर्ण संदेशों का सारांश लेते हुए कुल 29 धर्मानुसार उचित आचार संहिता को संक्षिप्त रूप में लिखा है। इन बिंदुओं में हम देश, समाज, व्यक्तिगत जीवन, व्यवहार, कर्त्तव्य और चरित्र जैसे जीवन के तमाम पहलुओं पर उनकी दृष्टि को समझ सकते हैं।  इन व्याख्यानों की एक बड़ी विश्वनीयता यह है कि लेखक ने पौराणिक ग्रंथो से उन सूक्तियों, श्लोकों क ो भी उद्घृत करते हुए उनकी व्याख्या की है। वास्तव में यह जीवन के वह बहुमुल्य सूत्र हैं, जिन पर आगे चलकर आगे न केवल सामाजिक व्यक्तिव बल्कि राष्ट्रीय और सम्पूर्ण विश्व की मानवता का भी उत्थान संभव है।  

पुस्तक का नाम    –    बी इममॉरटल
लेखक            – एम. रामा ज्वाइस
मूल्य              –    100 रुपए
पृष्ठ               – 148
प्रकाशक         –     विज्ञानेश्वर रिसर्च एंड ट्रेनिग      सेंटर इन    पॉलिसी, गुलबर्ग

अनुभूतियों के शब्द चित्र

कई पुस्तकों के रचनाकार हेमचन्द्र सकलानी का तीसरा कथा संग्रह ह्यमेरी प्रिय कहानियां अन्तर्मन की अनुभूतियांह्ण अभी-अभी प्रकाशित होकर आयी है। इसमें उनकी 11 कहानियां संकलित हैं। इनके अलावा उनकी ही व्यंग्य रचनाएं भी मौजूद है। हालांकि इन सभी कहानियों के पात्र और स्थितियां अलग-अलग है, लेकिन सभी में मूल स्वर प्रकृति से दूर होती मानवीयता के दुष्प्रभाव, विस्थापन का दंश झेलने की पीड़ा और मानवीय रिश्तों की पेंचीदगियां ही हैं। संग्रह की अधिकांश कहानियां पठनीय और किसी एक स्थिति विशेष का प्रभावी चित्रण करती हैं। विशेष रूप से संग्रह की गई पहली कहानी ह्यलौट आओ गौरैयाह्ण पर्यावरण और पशु-पक्षियों के प्रति आम जन में बढ़ती बेपरवाही को प्रमुख रूप से उभारा गया है। हम सभी अपनी सुख-सुविधाओं को भोगने में इतने अंतमुर्खी होते जा रहे है कि जीवन को किसी समय तक खुशनुमा और जीवंत बनाने वाले प्रकृति के तत्वों का हस्तक्षेप भी अब हमें अखरने लगा है। इसी भाव को इस कहानी में व्यक्त किया गया है। हालांकि कहानी में स्वत: प्रवाह की कमी है। कथासार का हस्तक्षेप प्रवाह को बाधित करता है। कुछ इसी तरह से जीवन के लिए सर्वाधिक आवश्यक प्राकृतिक संसाधन ह्यजलह्ण की महत्ता और उसके अंधाधुंध दुरुपयोग को व्यक्त करती है कहानी ह्यकहीं सूख गया पानी।ह्ण
पर्वतीय क्षेत्रों की प्राकृतिक रमणीयता के विलोपन के साथ ही विकास के नाम पर होने वाले क्षरण और काम की तलाश में वहां के लोगों के विस्थापन को बयां करती है कहानी ह्यजड़।ह्णइस कहानी में अपनी संस्कृति परिवेश में ही नहीं रिस्तों के रेशों के टूटने के दर्द को भी गहराई से महसूस किया जा सकता है। ये सभी कहानियां लेखक के अपने आस-पास के जीवन के प्रति सजगता को भी प्रमाणित करती है। इन कहानियों के बारे में प्रख्यात कवि लीलाधर जगूड़ी ने सही कहा है, वस्तुओं के भी रूप-आकार और अपने-अपने जीवन हैं। इसी वजह से हेमचंद्र सकलानी की कहानियों में जीवन में वस्तुओं की सहभागिता और पदार्थों का समागम सर्वाधिक आकर्षित करता है। इन कहानियों में भूगोल का उतना महत्व नहीं है, जितना मानसिक भूगोल में तर्क-वितर्क और मानसिक परिवेश में आरोप-प्रत्यारोप का यथार्थ काफी कुछ आदर्श स्थिति में ले जाता है। भाषा सरल और सुबोध है। संग्रह में व्यंग्य संकलित न होते तो यह पुस्तक पूरी तरह से कहानी संग्रह कही जा सकती है।
पुस्तक का नाम    –    अन्तर्मन की अनुभूतियां
लेखक            –    हेमचन्द्र सकलानी
मूल्य      –    100 रु., पृष्ठ – 76
प्रकाशक         –     शब्द-संस्कृति प्रकाशन
        देहरादून (उत्तराखण्ड)
        फोन-9219516566
बहुविध कविताओं का संकलन
निराला, मैथलीशरण गुप्त, नंद दुलारे वाजपेयी, अयोध्या सिंह उपाध्याय ह्यहरिऔधह्ण और श्याम सुन्दर दास जैसे हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य विद्वानों के सान्निध्य में रह चुके और उनसे साहित्य के संस्कार ग्रहण करने वाले गुलाब खण्डेलवाल आज भी रचनाकर्म में सक्रिय हैं। विभिन्न विधाओं में उनकी 60 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। लेकिन उनकी मुख्य पहचान कवि गीतकार के रूप में ही हुई है। उनकी अनेक काव्य रचनाओं में से चुनी हुई कुछ रचनाएं हाल में ही जुगल किशोर जैथलिया और महावीर प्रसाद बजाज के संपादन में प्रकाशित होकर आई हैं। इस पुस्तक में उनकी काव्य प्रतिभा के तमाम स्वरूप परिलक्षित होते हैं। फिर वह चाहे देशभक्ति गीत हों या फिर गजलें ही क्यों न हों। उन्होंने हर रूप में पूरे अधिकार और प्रभावशील शैली में लेखन किया है। इसमें उनकी कुछ उर्दू गजलें, फुटकर शेर के अलावा अंग्रेजी कविताएं भी संकलित हैं।
भक्तिपूर्ण कविताओं में हालांकि अनेक रूप विद्यमान हैं, उन्होंने भगवान के भक्त के रूप में अपने को  इन कविताओं में प्रस्तुत किया है। अधिकांश कविताओं में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और प्रेमपूर्ण समर्पण का ही भाव प्रकट होता है। एक बानगी देखें-ह्यमैंने जब-जब ठोकर खाई/ मुझको तो तेरी अहैतुकी कृपा बचाती आई। यद्यपि पूजा-भजन न जाने/ जग के भोगों में सुख माने। ह्यफिर भी प्रभु! तेरी करुणा ने मुझ पर प्रीति दिखाई।ह्ण
जहां गुलाब जी की भक्ति में डूबी कविताओं में हमें कोमलता और आत्मीयता की अनुभूति होती है, इसके उलट देशभक्तिपूर्ण उनके गीतों में भरपूर उत्साह और शौर्य के भाव महसूस होते हैं। इस तरह के कई गीत संग्रह में मौजूद हैं। ह्यजागो भारतवासीह्ण, ह्यसोने वाले जागह्ण, ह्यमेरे भारत मेरे स्वदेशह्ण और ह्यआज हिमालय के शिखरों से स्वतंत्रता ललकारतीह्ण शिशिर बाला, मेरी कविता जैसे कई गीतों में यह बानगी देख सकते हैं। कविता के विदेशी स्वरूप ह्यसॉ नेटह्ण में भी उनकी काव्य प्रतिभा ने नई ऊंचाइयों को स्पर्श किया है। साथ ही गजलों में भी उन्होंने बड़े ही सरल अंदाज में जिंदगी की सच्चाई को बयान किया है। कह सकते हैं कि समीक्ष्य कृति साहित्य से  पूर्णरूपेण समर्पित एक साधक की संपूर्ण रचनाशीलता की खूबसूरत वानगी पेश करती है।  विभूश्री

पुस्तक का नाम    –    महाकवि गुलाब खण्डेलवाल
           –    (चुनी हुई रचनाएं)
प्रकाशक- श्री बड़ाबाजार कुमार सभा पुस्तकालय
1-सी, मदनमोहन बर्मन स्ट्रीट,
कोलकाता-700007
संपादक        –     जुगल किशोर जैथलिया
        महावीर प्रसाद बजाज
मूल्य      –    250 रु., पृष्ठ -255

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