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नई चुनौतियों के साथ बढ़ी जिम्मेदारी

by
Jan 4, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jan 2014 16:13:36

-रमेश पतंगे

हाल में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित हुए। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में जनता ने भाजपा को सत्ता सौंपी। दिल्ली में स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया मिजोरम में कांग्रेस को सफलता मिलनी अपेक्षित पहले से ही थी! लेकिन बाकी चार राज्यों में कांग्रेस का सफाया हो गया है जिसकी कांग्रेस ने कतई अपेक्षा नहीं की थी। जनमत यदि इसके विपरीत  होता तो देश में लोकतंत्र की साख पर प्रश्नचिन्ह लग जाता था, लेकिन इस परिदृश्य से कुछ बातें तो साफ हुई हैं। देश अब कांग्रेस के शासन से ऊब गया है। पूरे समाज को सहभागी बनाकर राष्ट्र उन्नति  की ओर बढ़ता है। ऐसे में भाजपा की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
जनादेश
जनता का जनादेश कांग्रेस के वंशवाद कांग्रेसी भ्रष्टाचार, कांग्रेस के कुशासन और कांग्रेस द्वारा बढ़ाई गई महंगाई के विरोध में रहा। देश का युवा वर्ग अब वंशवाद से ऊब चुका है। सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने देश में लूट मचाई हुई है। जनता यह सब देख रही है। इसलिए सोनिया गांधी के बारे में जो सहानुभूति की भावना थी वह दिन प्रति दिन घटती जा रही है। सोनिया ने राहुल को आगे किया है। कांग्रेस के अंदर इस घराने एक फरमाबरदार वर्ग है। उसमें मणिशंकर अय्यर, जयराम रमेश, दिग्विजय सिंह जैसे नेता हैं। लेकिन जनता ऐसे नेताओं को नापसंद करती है। जनता को वंशवाद  नहीं चाहिए।
महंगाई, भ्रष्टाचार और कुशासन के बारे में तो बहुत कुछ लिखा, कहा जा चुका है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिली सफलता भाजपा शासन पर लोगों के भरोसे का नतीजा है। राजस्थान और दिल्ली में कांग्रेस के विरोध में जनता ने वोट डाला। राजनीति की परिभाषा में इसे नकारात्मक मतदान कहा जाता है। मोदी के कारण भाजपा के वोट घटेंगे, ऐसा प्रचार किया गया था जिसे जनता ने झूठा साबित किया है। मोदी की सभा में भीड़ जुटी  और वोट भी मिले। उत्तर प्रदेश में  सत्ता की चाबी मुसलमानों के हाथों में सौंप दी गई, पर ऐसा अन्य राज्यों में नहीं हो पाया। मुसलमानों के तुष्टीकरण के बिना भी सत्ता मिल सकती है, यह बात इन तीनों राज्यों के परिणामों ने स्पष्ट कर   दी है।
तीन राज्यों में चुनकर आने पर भाजपा का दायित्व बढ़ गया है, इसमें नया कुछ नहीं है। अब भाजपा को भ्रष्टाचारमुक्त, विकासाभिमुख और सभी को न्याय देने वाला शासन चलाना है। भाजपा का प्रादेशिक एवं केंद्रीय नेतृत्व इसको भली भांति जानता है, ऐसा समझना चाहिए। सत्ता अर्थात सुशासन और सत्ता अर्थात समर्थ राज्य व्यवहार, लोगों को सुखी बनाने वाला शासन। इस दिशा में भाजपा की यात्रा चलती रहेगी। पिछले अनेक चुनावों के अनुभव से तथा सत्ता चलाने के अनुभव से यह मूलभूत सूझबूझ भाजपा ने  पाई है।
समस्या इससे कई गुना बड़ी है। सारा जग जानता है कि भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों में  पगी पार्टी  है। संघ का कार्य राष्ट्रीय है। संघ की सोच का केन्द्र बिंदु कभी भी पार्टी, सरकार, शासन, व्यक्ति, जाति, धार्मिक समूह ऐसा नहीं रहता है बल्कि सारी सोच का केन्द्र बिंदु केवल राष्ट्र ही होता है। यह संघ की अभिलाषा है। भाजपा को यह अभिलाषा राजनीति क्षेत्र में पूरी करके दिखलानी है। इस बात की अनुभूति भाजपा को सदा होनी चाहिए।
सत्ता के माध्यम से सब कुछ होगा यह संघ की सोच नहीं है। सत्ता राष्ट्रजीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है यह बात सच है लेकिन वह एक ही महत्वपूर्ण अंग नहीं है। राष्ट्रजीवन का महत्वपण्ूर अंग समाज की शक्ति होता है। संघ का मानना  है कि अगर समाज जागृत है तो देश जागृत, समाज बलशाली है तो देश बलशाली, समाज नीतिमान तो सरकार नीतिमान।  इसलिए  संघ हमेशा से बलशाली समाज खड़ा करने का करता आ रहा है। एक राजनीतिक पार्टी को बलशाली बनाने या किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने के लिए संघ का कार्य नहीं  चलता है।
यदि राजनीति दृष्टि से विचार किया जाए तो समाज में विभिन्न वर्ग हैं। इनमें अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग सबसे उपेक्षित रहा है। सैकड़ों साल समाज के इन गुटों पर विभिन्न कारणों से अन्याय हुआ है। इस वर्ग के विकास हेतु समीकरण की विभिन्न योजनाएं बनाई जाती हैं। उनको आरक्षण दिया गया है। लेकिन हर बार उन्हें  जताया जाता है कि उन पर उपकार किया जा रहा है। हम दाता हैं और वे लेने वाले,  ऐसी मानसिकता उन्हें आरक्षण दिए जाने के पीछे रही, इस मानसिकता के रहते उन्हें मिलने वाला लाभ लाभार्थियों में आत्मगौरव की भावना जागृत नहीं कर सकता है। अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग में भीख में कुछ प्राप्त करने की नहीं बल्कि आत्मसम्मान की      मानसिकता है।
हमारा देश सैकड़ों साल गुलाम रहा इसके कई कारण थे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण  हमारा असंगठित होना और जातपात में बंटे रहना।  हमने समाज के एक बड़े वर्ग को अछूत मान कर उसे दूर धकेला, इसलिए विदेशी आक्रांताओं को एकजुट होकर मुंहतोड़ जवाब नहीं दे पाए। अगर बलशाली बनाना है तो विभिन्न कारणों से दूर किए गए समूहों को पास लाना होगा और राष्ट्रजीवन में उनकी सहभागिता बढ़ानी होगी।
कांग्रेस ने आजादी मिलने से पूर्व ही भारत में बसे मुस्लिम समाज में फूट का बीज बोया और सींचा और उसका पोषण किया। इसलिए देश का विभाजन हुआ। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि अलगाववाद की वृत्ती मुसलमानों में पहले से ही थी, उसे कांग्रेस ने हवा नहीं दी, मगर इस तार्किक सफाई का कोई मतलब नहीं होता है।
आज भी इस परिस्थिति में कुछ फर्क नहीं आया है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने स्पष्ट कहा था कि इस देश के संसाधनों पर सबसे पहले मुस्लिमों का हक है। उन्होंने सच्चर आयोग, गठित कर मुसलमानों को आर्थिक और शैक्षिक रियायतों की खैरात करने के लिए रपट मंगवा ली। मुसलमानों के लिए अलग विश्वविद्यालय बनवाए। मुस्लिम व्यापारियों को बैंक से अल्प दर पर कर्ज देना आरंभ किया। मुस्लिम विद्यार्थियों के लिए विभिन्न स्कॉलरशिप की घोषणा की, लेकिन अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए उन्होंने क्या किया है? इस वर्ग को सक्षम बनाने के बजाए उनको करीब करीब मुफ्त में खाना खिलाने की योजना लागू की। मतलब हम खिलाते हैं आप खाओ। इस प्रकार की मानसिकता उन्होंने इस देश में पैदा की है। इसका यही अर्थ  है  कि आप जहां हो वहीं रहो, ज्यादा ऊपर मत आओ।
भाजपा को  इस मनोवृत्ति में परिवर्तन लाना होगा। ह्यहम देने वाले कौन होते हैं? यह सारा देश आप का है। आओ, सब मिलकर हम इस देश को खड़ा करेंगेह्ण। पहले इस भूमिका में स्वयं को लाकर बाद में सबको साथ लेना होगा। हमें ऐसा एक सामाजिक वातावरण बनाना है कि जिस में जैसी क्षमता है उसके पूरे विकास का अवसर उसे मिलेगा। अनुसूचित जाति और जमात के सभी लोग सत्ता में आना नहीं चाहते हैं, लेकिन सम्मानपूर्वक जीने की कामना अवश्य है। मुझे भी अपने देश की और समाज की सेवा करनी है, ऐसा विचार सभी के मन में हो सकता है।
भारत में अनुसूचित जाति की वर्तमान पीढ़ी को घरानेशाही से कोई लगाव नहीं है,  लेकिन देश में तेजी से बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या का खतरा उन्हें पता है और इस देश में कैसी लूट हो रही है यह भी उन्हें  पता है। नक्सलवाद का उनको आकर्षण नहीं है पर चुनाव के आधार पर ही परिवर्तन आ सकता है, इस बात पर उन्हें भरोसा है, लेकिन उन्हें हर मोर्चे पर बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अलग अलग राजनीतिक पार्टियां सत्ता के लिए अनुसूचित जाति-जनजाति का इस्तेमाल करती हैं। इस तबके के किसी नेता को बहुत बड़ा बनाती है। उसे विधायक, सांसद बनाया जाता है, ताकि वह अपने उनके साथ एकनिष्ठ रहने वाली फौज जमा करता रहे। अनुसूचित जाति में जो राजनीति चित्र का निरीक्षण और विचार करने वाली पीढ़ी है उसकी मानसिकता इस तरह की सारी चीजें ठोकर से उड़ा देने की है। वह सत्ता में सहभागिता चाहती है, लेकिन लाचारी से  हक नहीं चाहती, यदि  इस हक का विचार करते हैं तो देश की जनसंख्या में लगभग 25 प्रतिशत अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग है। लोकतांत्रिक संकेत के अनुसार उनकी सत्ता सहभागिता महत्वपूर्ण है। वह जनसंख्या के अनुपात में देना चाहिए ऐसा कहा गया तो यह पुन: जाति के आधार पर समाज का विभाजन करना सिद्ध होगा। लेकिन हम ऐसा अवश्य कह सकते हैं कि अनुसूचित जाति और जनजाति के सक्षम, कतृर्त्ववान लोगों को आगे लाना होगा और उनको सत्ता में सहभागिता दिलानी होगी।

अमरीका में अफ्रीकन- अमरीकन की समस्या है। अमरीकन गोरे शासकों ने एक राष्ट्रीयत्व निर्माण करना है तो राष्ट्र के सारे अंगों में कृष्णवर्णियों की सहभागिता आवश्यक है। यह सहभागिता प्राप्त करने हेतु उन्होंने सकारात्मक कृति का अवलंब किया। अमरीका में बनने वाले सिनेमा में नायक-नायिका के साथ कृष्णवर्णिय अभिनेता अवश्य होता ही है। वहां इसलिए कोई कानून बनाया नहीं गया है मगर हॉलीवुड ने यह तय किया है। अमरीकन मीडिया में कुछ साल पूर्व कृष्णवर्णी दिखाई नहीं देते थे। मीडिया के मालिकों ने यह तय किया कि, यह अच्छी बात नहीं है। उन्होंने योजनापूर्वक कृष्णवर्णी युवक-युवतियों को प्रशिक्षण दिया और उसी के कारण आज अमरीकन माध्यम में कृष्णवर्णियों की संख्या लक्षणीय हो गई है।
एक राष्ट्रीयत्व निर्माण करने के लिए क्या आवश्यक होता है? यह डा. अम्बेडकर के शब्दों में इस तरह बताया जा सकता है- किसी व्यक्ति को सामाजिक कार्य में सहभागिता मिलने पर उस कार्य का यश अपना यश है और असफलता भी अपनी असफलता है ऐसा लग सकता है। यह भावना ही मनुष्य को एक राष्ट्रीयत्व से जोडे़े रखती है। डा. बाबा साहब ने यह विचार जाति निर्मालून इस प्रबंध में लिखे हैं और यह अतयंत महत्वपूर्ण है। अनुसूचित जाति वर्ग को साथ लिए बिना और सत्ता में सहभागी किए बिना असली स्थानांतर हो गया है ऐसा मानने का कोई कारण नहीं दिखता। अपने देश की चुनाव पद्धति और मतदान  का गणित देखकर इन सबको  परे  रखकर सत्ता मिल सकती है। मगर यह सत्ता सही मायने में लोकतंत्र नहीं हो सकता है और समाजतंत्र भी नहीं कहा जा सकता है। यह समाजतंत्र नहीं होगा तो फिर राष्ट्रीय तंत्र भी नहीं कहा जा सकता है। हाल ही में हुए चुनाव ने भाजपा को  राष्ट्रीय तंत्र निर्माण करने का दायित्व सौंपा है। भाजपा के नाम में राष्ट्रीय नहीं है मगर संघ के नाम में राष्ट्रीय शब्द  है और संघ के नाम में इस शब्द का समावेश होने के कारण संघ को अभिप्रेत अर्थ राजनीतिक क्षेत्र में ले जाना भाजपा का दायित्व है। सत्ता चलाते समय इसका भान रखना होगा व आने वाले लोकसभा चुनाव में भी  भाजपा को इसका अवश्य  भान रखना होगा।   

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