न्याय के मन्दिर में 'अन्याय'
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-अरुण कुमार सिंह
दिल्ली में कुछ मुस्लिम कानून को उसी के घर में ठेंगा दिखा रहे हैं और कानून के रखवाले उन्हें रोक नहीं पा रहे हैं। बात हो रही है दिल्ली उच्च न्यायालय की। उल्लेखनीय है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के गेट न -5 के पास न्यायालय परिसर में एक छोटा-सा खण्डहर है। हिन्दुओं का मानना है कि यह पांडव कालीन मन्दिर है, तो मुसलमानों का कहना है कि यह मुस्लिम स्थल है,जिसका निर्माण शेरशाह शूरी के कार्यकाल में हुआ था। नियमानुसार किसी भी प्राचीन स्थल,खण्डहर या भवन की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) करता है। स्वाभाविक रूप से इस खण्डहर की देखरेख की जिम्मेदारी भी एएसआई की है। इसकी मरम्मत की जिम्मेदारी भी एएसआई की ही है। कोई दूसरा संगठन न तो इस खण्डहर की देखरेख कर सकता है और न ही इसकी मरम्मत करवा सकता है,किन्तु दुर्भाग्य से इस खण्डहर की मरम्मत की जिम्मेदारी मुस्लिमों के एक समूह ने कागजी हेरफेर करके ले ली है। अब वह समूह उस खण्डहर की मरम्मत के नाम पर उस स्थान पर मस्जिद बना रहा है। वहां नियमित नमाज भी पढ़ी जा रही है।
पिछले दिनों उस समूह से जुड़े कुछ मुस्लिमों ने इस खण्डहर का एक बहुत बड़ा हिस्सा तोड़ दिया था और काफी ऊंची दीवार भी खड़ी कर दी थी। जब कुछ हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने इसका विरोध किया तो उच्च न्यायालय की 'भवन रखरखाव समिति' के सदस्यों ने स्थल का दौरा किया और उन्होंने कहा कि जो भी निर्माण हुआ है उसे हटाया जाए। इसके बाद उस निर्माण को तोड़ दिया गया है,किन्तु अभी भी कुछ मुस्लिम वहां रह रहे हैं। उस स्थान को टीन की चद्दरों से घेरकर निर्माण कार्य किया जा रहा है,जबकि उन्हें सिर्फ मरम्मत की आज्ञा मिली है। अनेक लोगों का मानना है कि मरम्मत की आज्ञा भी तथ्यों से हेरफेर करके ली गई है। हिन्दुओं का कहना है कि जो जिस सम्पत्ति का मालिक ही नहीं है उसे उसकी मरम्मत की इजाजत कैसे दी गई है?
इस खण्डहर को सुलगाने का काम मुस्लिमों का एक छोटा सा समूह कर रहा है। इस समूह की अगुवाई दिल्ली उच्च न्यायालय के एक मुस्लिम वकील मोबिन अख्तर कर रहे हैं। ये मोबिन वही हैं,जो प्रतिबंधित संगठन सिमी का मुकदमा लड़ते हैं। मोबिन की पहल पर ही कुछ दिन पहले वक्फ बोर्ड के ह्यलेटर हेडह्ण पर एक आवेदन उच्च न्यायालय में दिया गया था। उस आवेदन में कहा गया था कि उक्त खण्डहर जर्जर होता जा रहा है,इसलिए उसकी मरम्मत की इजाजत दी जाए। उच्च न्यायालय की भवन रखरखाव समिति ने उस आवेदन पर विचार किया और उसने उस खण्डहर की मरम्मत की इजाजत दे दी।
हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन यहां प्रश्न खड़े कर रहे हैं कि जो जिस स्थान का मालिक नहीं है उसे उसकी मरम्मत की इजाजत क्यों दी गई? लोग यह भी सवाल कर रहे हैं कि उच्च न्यायालय की सुरक्षा को ताक पर रखकर इस खण्डहर की मरम्मत की अनुमति क्यों दी गई? उल्लेखनीय है कि इसी गेट न-5 के पास कुछ समय पहले बम फिस्फोट हुआ था,जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय लुटियन्स जोन में आता है। नियम कहता है कि लुटियन्स जोन में कोई भी तोड़फोड़ या निर्माण के लिए नई दिल्ली नगरपालिका परिषद्,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन की अनुमति लेना आवश्यक है। किन्तु इस खण्डहर की मरम्मत के लिए इन तीनों से अनुमति नहीं ली गई। लोग यहां भी कई तरह के सवाल खड़े कर रहे हैं। पहला सवाल तो यह खड़ा हो रहा है कि आखिर जरूरी प्रक्रियाओं को पूरा किए बिना जल्दबाजी में इस खण्डहर की मरम्मत क्यों की जा रही है? दूसरा सवाल है कि उच्च न्यायालय की भवन रखरखाव समिति ने इसकी मरम्मत की इजाजत देते समय इन नियमों की अनदेखी क्यों की? जब लोगों को इन सवालों का जवाब नहीं मिला तो वे लोग जनहित याचिका के माध्यम से इन सवालों का जवाब मांगने के लिए आगे बढ़ गए हैं।
गत 20 दिसम्बर को एक जनहित याचिका(1978920) बाबा नन्दकिशोर और रविरंजन सिंह ने दायर की है। इस याचिका में कहा गया है कि यदि उस खण्डहर की जगह मस्जिद बन जाती है तो इससे उच्च न्यायालय की सुरक्षा को खतरा तो है ही,साथ ही वहां स्थित सेना के दो शिविर भी असुरक्षित हो जाएंगे,क्योंकि इस मस्जिद में नमाज की आड़ में असामाजिक तत्व आकर ठहर सकते हैं। यह भी होगा कि बिना पासधारी लोग भी नमाज के नाम पर उच्च न्यायालय के परिसर में आ जाएंगे। याचिका में यह भी कहा गया है कि उच्च न्यायालय की भवन रखरखाव समिति न्यायालय परिसर में किसी निर्माण की इजाजत नहीं दे सकती है। यह भी कहा गया है कि किसी भी पुरातात्विक भवन या ढ़ांचे की मरम्मत उसमें इस्तेमाल मसाले से ही हो सकती है। लेकिन यहां तो सीमेन्ट और सरिए का इस्तेमाल हो रहा है। याचिका में यह भी कहा गया है कि इस निर्माण के लिए नक्शा भी पास नहीं कराया गया है। इसलिए यह निर्माण अवैध है। इसे रोका जाए।
जबरन नमाज
दिल्ली में मुस्लिमों का एक ऐसा गिरोह है,जो हिन्दू-बहुल क्षेत्रों में सरकारी जमीन पर मस्जिद या मजार का निर्माण करता है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली के हजारों सरकारी भूखण्डों पर झुग्गी बस्तियां बस गई हैं। जिस भी झुग्गी बस्ती में थोड़े से भी मुसलमान हैं वहां मस्जिदें खड़ी हो गई हैं। इन मस्जिदों को बनाने के लिए पैसा कहां से आता है,यह जांच का विषय है। वहीं यह गिरोह दिल्ली के ऐतिहासिक स्थलों पर कब्जा करके वहां जबरन नमाज पढ़ना शुरू करता है। इस समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित दिल्ली की 9 मस्जिदों में जबरन नमाज पढ़ी जा रही है। यह खुद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ही कह रहा है। उसके अनुसार कुतुब मस्जिद,सराय शाहजी मस्जिद, लाल गुम्बद मस्जिद(चिराग दिल्ली),जामी मस्जिद(कोटला फिरोजशाह),रजिया सुल्तान मकबरा,कुदुसिया मस्जिद,सफदरजंग मस्जिद अफसर वाला की मस्जिद और खैरूल मंजिल मस्जिद में जबर्दस्ती नमाज पढ़ी जा रही है। जबकि ये मस्जिदें 80-81 साल से एएसआई के अधीन हैं। एएसआई ने यह जानकारी सूचना के अधिकार के तहत पाञ्चजन्य को दी है।
एएसआई में मौजूद हमारे सूत्रों ने बताया कि यदि इसी तरह संरक्षित मस्जिदों में मुस्लिम जबरन नमाज पढ़ेंगे तो प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दू भी संरक्षित मन्दिरों में पूजा-पाठ करने लगेंगे तब स्थिति गंभीर हो सकती है। इसलिए सरकार संरक्षित मस्जिदों में जबरन नमाज पढ़ने वालों को रोके।
मन्दिर तो तोड़ दिया
दिल्ली उच्च न्यायालय परिसर में कुछ साल पहले तक एक मन्दिर था। उसे अवैध बताकर तोड़ दिया गया है। अब उसी परिसर में मस्जिद बन रही है, तो कोई कुछ नहीं बोल रहा है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि न्यायालय के परिसर में मस्जिद की जरूरत क्या है?
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