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'आम आदमी पार्टी' के पीछे देश की नीतियों को प्रभावित कराने वाले विदेशी गुटों का हाथ

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Dec 28, 2013, 12:00 am IST
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'आप' के पीछे कौन!

दिंनाक: 28 Dec 2013 14:10:55

-डॉ़ भगवती प्रकाश शर्मा

भ्रष्टाचार के विरुद्घ एक लोक लुभावन आन्दोलन से युवा महत्वाकांक्षाओं की अभिव्यक्ति के रूप में उभरी 'आम आदमी पार्टी' के कुछ नेताओं के पीछे सक्रिय विदेशी प्रभावों पर नजर डालना आज के संदर्भ में अत्यंत जरूरी है। अण्णा हजारे के नेतृत्व में 'इण्डि़या अगेंस्ट करप्शन' द्वारा चलाये गए आन्दोलन के दौरान देश तब एकदम सन्न रह गया था, जब यह रहस्योद्घाटन हुआ कि 'इण्डिया अगेंस्ट करप्शन' की केन्द्रीय समिति के दो प्रमुख सदस्य, अरविन्द केजरीवाल व मनीष सिसोदिया न्यूयार्क स्थित फोर्ड फाउण्डेशन के पैसे से भारत में स्वैच्छिक संगठन चला रहे हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इसी केन्द्रीय समिति के दो सदस्यों, अरविन्द केजरीवाल व किरण बेदी को उसी फोर्ड फाउण्डेशन द्वारा प्रायोजित रमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी विशिष्ट प्रतिष्ठा प्राप्त हुयी थी।
'इण्डिया अगेंस्ट करप्शन' की कोर कमेटी के सदस्यों को विदेशी धन मिलने के आरोप की प्रतिक्रिया में अरविन्द केजरीवाल ने तब इण्डिया फर्स्ट को भेजे अपने एस़एम़एस़ में कोई टिप्पणी न कर, यह प्रश्न किया कि इसका क्या प्रमाण है? इस पर एक बार तो देश ने सन्तोष की सांस ली कि, सम्भवत: देश में आन्दोलन धर्मी संगठनों के अभियान कम से कम, विदेशों से प्रायोजित तो नहीं हैं। लेकिन, इसके प्रमाण सामने आते ही स्वयं केजरीवाल ने अगस्त 2011 में ही स्वीकार कर लिया कि मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर उनके द्वारा चलाये जा रहे एन.जी.ओ. कबीर को न्यूयार्क आधारित फोर्ड-फाउण्डेशन से धन मिला है। लेकिन, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह धन उन्हें दो वर्ष पूर्व मिला था।
सिविल सोसाइटी व वर्ल्ड सोशल फॉरम से वैश्विक नव वामपंथ का उदय
अस्सी के दशक में ब्राजील से प्रारम्भ हुये सिविल सोसाइटी संगठनों के लोक-लुभावन आन्दोलनों के पूरे लातीनी अमरीका में फैल जाने के फलस्वरूप, विगत दशक में एक दर्जन लातीनी अमरीकी देशों के 17 चुनावों में वामपंथी सरकारों के लिये सत्ता में आना सम्भव हुआ है। अन्य लातीनी अमरीकी देशों में भी क्रान्तिधर्मी कम्युनिस्ट दलों से भिन्न 'नव वामपंथी सिविल सोसाइटी संगठनों' के ऐसे ही लोक-लुभावन आन्दोलनों के माध्यम से वामपंथियों को समाज जीवन की मुख्य धारा में आने का अवसर मिला है। इसके फलस्वरूप आज दो तिहाई लातीनी अमरीकी देशों में एक नव वामपंथ की लहर चल पड़ी है, जिसे सामयिक समालोचक गुलाबी लहर कह रहे हैं। नब्बे के दशक में चली इस गुलाबी लहर से 1998 में वेनेजुएला और 2002 में ब्राजील सहित बाद की अवधि में एक दर्जन देशों में बनी वामपंथी सरकारों की सफलता के प्रयोग से पे्ररणा पाकर वामपंथियों ने सिविल सोसाइटी के लोक लुभावन आन्दोलनों और सिविल सोसाइटी के वैश्विक गठजोड़, वर्ल्ड सोशल फॉरम के माध्यम से यूरोप अमरीका, अफ्रीका व एशिया सहित अरब जगत में  नव वामपंथ की गुलाबी लहर को सबल बनाने में भी अपनी शक्ति लगायी हुयी है।
सिविल सोसाइटी का एकीकरण
विश्व के अन्य भागों की तरह भारत में भी नव वामपंथ के घटक अनेक सिविल सोसाइटी आन्दोलन देश में कई लोक लुभावन या अल्पसंख्यक वाद के अभियान विगत 20-25 वर्षों से चला रहे हैं। यथा बाबरी ढांचे के ध्वस्त होने के समय कई सिविल सोसाइटी संगठनों के गठजोड़ से बने अकेले 'नेशनल एलायन्स ऑफ पीपुल्स मूवमेण्ट' जैसे एक सिविल सोसाइटी समूह/आन्दोलन में, मेधा पाटकर के 'नर्मदा बचाओ आन्दोलन' जैसे लगभग 150 सिविल सोसाइटी संगठन एकजुट हुये हैं व सिविल सोसाइटी आन्दोलन के रूप मे सक्रिय हैं और पीपुल्स मूवमेंट आज 15 राज्यों में सक्रिय है। इसी प्रकार मूल निवासी वाद, एचआईवी-एड्स, अल्पसंख्यक सुरक्षा, सूचना के अधिकार, भूमि अधिग्रहण, साम्प्रदायिकता आदि अनगिनत मुद्दों पर अनेक आन्दोलन व उनके असंख्य संघटक सिविल सोसाइटी संगठन विगत दो दशकों से सक्रिय हैं। देश मे लक्षित एवं साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक, जो अत्यन्त विवादित रहा है, के प्रति भी कुछ सिविल सोसाइटी संगठन विशेष सक्रियता दिखाते रहे हैं। पोकरण के 1998 के विस्फोटों एवं देश के परमाणु कार्यक्रमों से भी सिविल सोसाइटी के मतभेद स्पष्ट रहे हैं। सिविल सोसाइटी की पहल पर देश में चले भ्रष्टाचाररोधी आन्दोलन में लगभग पूरा देश एकजुट हो गया था लेकिन सक्रिय दलीय राजनीति में प्रवेश के मुद्दे पर अण्णा हजारे सहित अधिकांश समूह, राजनीति में सक्रिय सिविल सोसाइटी के धड़ों से अलग हो गये हैं।

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