लोकपाल कानून बना
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आखिर 45 वर्ष बाद संसद के दोनों सदनों ने लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक-2011 को पारित कर दिया। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा। सिर्फ कानून बना देने भर से काम नहीं चलेगा, जरूरत है इस कानून को सख्ती के साथ लागू करने की। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस कानून के डर से भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार करने से बाज आएंगे। आम आदमी भी इस कानून को लेकर बड़ा आशान्वित दिखाई दे रहा है। शायद यही वजह है कि कांग्रेस इस कानून का श्रेय अपने ह्ययुवराजह्ण को दे रही है, लेकिन सच तो यह है कि इस कानून को अस्तित्व में लाने में अहम भूमिका समाजसेवी अण्णा हजारे की है। यही बात लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कही। यकीन मानिए कि यदि अण्णा ने पिछले दो तीन साल में अनेक बार अनशन न किया होता तो यह कानून आज देश के सामने नहीं होता।
सबसे पहले 9 मई 1968 को लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक लोकसभा में पेश हुआ था और पारित भी हो गया था। इसके बाद संसद भंग हो गई और इस वजह से यह विधेयक राज्यसभा के पटल तक पहुंचा ही नहीं। इसके बाद से यह विधेयक सात बार संसद में लाया गया और किसी न किसी वजह से पारित नहीं हो सका।
इस कानून के अनुसार केंद्र स्तर पर एक लोकपाल होगा और राज्यों में लोकायुक्त का पद सृजित किया जाएगा। पहले से राज्यों में मौजूद लोकायुक्त कानून रद्द हो जाएगा। लोकपाल का एक अध्यक्ष होगा, जिसकी टीम में आठ सदस्य होंगे, जिनमें से आधे सदस्य न्यायिक प्रक्रिया को जानने वाले होंगे और आधे में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाओं से होंगे। लोकपाल में किसी सांसद या विधायक के लिए कोई जगह नहीं है। वह व्यक्ति भी लोकपाल में नहीं जा सकता है जो किसी मामले में दोषी ठहराया जा चुका हो। किसी पंचायत या निगम का सदस्य भी लोकपाल में नहीं रहेगा। केंद्र या राज्य सरकार की नौकरी से बर्खास्त व्यक्ति भी लोकपाल में नहीं रह सकता है।
लोकपाल की चयन समिति में प्रधानमंत्री अध्यक्ष की भूमिका में रहेंगे। इस समिति में सदस्य के रूप में होंगे लोकसभा के अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नियुक्त कोई न्यायाधीश और राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति। राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति समिति में मुख्यमंत्री अध्यक्ष रहेंगे। सदस्य के रूप में विधानसभा के अध्यक्ष, विधानसभा में विपक्ष के नेता, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या उनके द्वारा मनोनीत कोई न्यायाधीश और राज्यपाल द्वारा मनोनीत कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति। इस कानून को मील का पत्थर तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने की दिशा में एक कदम तो है ही।
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