रहा था। अगर अण्णा या अटल जी जैसे लोगों का जिक्र मन में एक सकारात्मक तस्वीर खींचता है तो यह अकारण नहीं है। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने सच की राह पकड़ी और तमाम संघर्षों के बीच देश को सही दिशा दिखाने के लिए डटे रहे। देश को लोकपाल मिलने की राह प्रशस्त हुई, सभी को बधाई। इसे ज्यादा पारदर्शी, लोकतांत्रिक और मजबूत स्वरूप मिले, ऐसी सदिच्छा। एक बात समझने की है..श्रेय चढ़ावा नहीं है, यह उसे ही मिलेगा जिसने कार्य के लिए सदिच्छा दिखाई और पक्ष में आवाज उठाई। अण्णा हजारे ने देश की संसद को जनजागरण का दर्पण दिखा लोकपाल की लड़ाई जीती तो दिमाग में वह दिन कौंध गया जब लोकतंत्र के मंदिर में अटल जी ने सब सांसदों से पूछा था- बरसों से लोकपाल बिल धूल खा रहा है, क्या प्रधानमंत्री कानून से ऊपर है? अगर प्रधानमंत्री पर आरोप लगे तो लोग कहां जाएं, किसका दरवाजा खटखटाएं? बहरहाल, संसद में लोकपाल विधेयक पर मुहर लगने के वक्त, प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने के प्रबल पक्षधर, पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी का जिक्र इस बार उनके जन्मदिवस पर सहसा हर बार से ज्यादा प्रासंगिक हो गया है तो ठीक ही है। आमतौर पर कहा जाता है कि पत्रकार और विशेषकर संपादक, हर विषय पर कहते बहुत हैं, लेकिन क्रियान्वयन के लिए आवश्यक ठोस दिशा उनके पास नहीं होती। मगर अटल जी के बारे में यह राय उलट जाती है। हर धड़कन-हर पल देश हित का वही भाव। पत्रकार के तौर पर कलम पकड़ने के पहले दिन से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक सचाई और रचनात्मकता का वही स्फूर्तिदायक मेल। लोकपाल एक बात है, लेकिन देशहित की हर बात, हर राह पर आगे बढ़ने की अदम्य इच्छा का अद्भुत उदाहरण हमें अटल जी के जीवन में दिखता है। पोकरण में भारत की परमाणु धमक की परख और प्रतिबंधों से डरे बगैर दुनिया को भारत की शक्ति का अनुभव कराना, विकास का मंत्र समझते हुए देश के चारों महानगरों को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुभुर्ज योजना शुरू करना, ग्रामविकास का आधार तैयार करने के लिए हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ने वाली प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना लागू करना। इस एक खाते में देशहित से जुड़ा कितना कुछ है, सूचना के अधिकार से खंगालना चाहें तो खंगाल सकते हैं, तथ्यों का पहाड़ मिलेगा। साथ ही अच्छा होगा कि सूचना के इस अधिकार की बुनियाद भी देख ली जाए। सूचना का अधिकार अधिनियम की जड़ें कहां जाकर टिकती हैं? 2002 में जनता को सूचना की स्वतंत्रता का अधिकार देने वाले प्रधानमंत्री अटल जी ही थे, संभवत: यह बात आज भी कई लोगों के लिए अनजानी है। शौर्य एक गुण है जो विरासत में नहीं मिलता और इसीलिए लड़ाई ऐसी चीज है जो हर बार हथियारों से नहीं लड़ी जाती। अटल जी ने राष्ट्रहित की यही लड़ाई संसद से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ और दिल्ली से लेकर देश के हर जिले के चौक-चौराहों पर खुद लड़ी है। देश की इतनी चिंता संयोग नहीं संस्कार की बात है। संस्कारों की समिधा से सजा जिनका जीवन ही यज्ञ रहा और जो देशहित की वेदी पर सर्वस्व होम करने को सदा तत्पर रहे उन रत्नों से ही तो यह लोकतंत्र आलोकित है।
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