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जैसे-जैसे मुजफ्फरनगर दंगे की जांच आगे बढ़ रही है, सनसनीखेज बातें सामने आ रही हैं। दंगों में जो मुकदमे दर्ज कराए गए, कई उनमें पूरी तरह फर्जी हैं और कई ऐसे हैं जिनमें नामजदगियां फर्जी हैं। कई मुस्लिम 'शिकायतकर्ताओं' ने माना कि उन्होंने महज गुस्से अथवा बहकावे में आकर फर्जी रपट दर्ज कराईं। नौ दिसम्बर को ऐसा ही एक मामला आईजी आशुतोष पाण्डेय के सामने आया जब ग्राम बहावड़ी के एक मुस्लिम वृद्ध ने अपने द्वारा दर्ज तीन मुकदमों को झूठा बताकर उन्हें वापस लेने की बात कही। बहावड़ी का अब्दुल रहमान शहर पुलिस लाइन पहुंचे आईजी से मिला। उसने बताया कि वह केवल तीन लोगों (हिन्दुओं) के खिलाफ रपट लिखवा रहा था, पर कैराना के जिस शिविर में उसने शरण ली थी, वहां कुछ लोगों ने उसे कम्प्यूटर पर बहावड़ी की मतदाता सूची दिखाई और फिर उसमें से दस लोगों को फर्जी तरीके से नामजद करवाया। रहमान ने बताया कि यही प्रक्रिया उसके दो बेटों ने भी अपनायी। उन्होंने भी दो मुकदमों में तमाम फर्जी नाम मतदाता सूची से लेकर डाले। उसके बेटों- नसीम व इसरार ने भी यह बात स्वीकार की है। तीनों कबूल रहे हैं कि दंगों में उनका नुकसान भी नहीं हुआ। रपट का उद्देश्य मुआवजे का लालच था।
फर्जी नामजदगियों से सैकड़ों हिन्दू युवाओं का भविष्य खतरे में है। अनेक नवयुवक सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षा दे चुके थे और इंटरव्यू देने की कतार में थे। थाना फुगाना, भौरांकला, शाहपुर, तितासी, बुढ़ाना, मंसूरपुर, भोपा और शहर कोतवाली में दर्ज 573 मुकदमों में नामजद 400 आरोपी, जिनकी आयु 18 से 25 वर्ष है, फर्जी तरीके से मुकदमों की लपेट में लिए गए हैं। दंगों की जांच कर रही एसआईटी को इन युवाओं ने शपथ पत्र देकर अपनी बेगुनाही के सबूत दिए हैं। हरियाणा व उ.प्र. में पुलिस भर्ती की प्रक्रिया चल रही है। यदि ये झूठे मुकदमे इन युवकों से वापस न हुए तो ये भर्ती के लिए योग्य होते हुए भी उससे वंचित हो जाएंगे। अजय मित्तल
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